Renu Singh

Tragedy Inspirational

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Renu Singh

Tragedy Inspirational

वह आवारा बादल

वह आवारा बादल

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वह एक आवारा बादल था, तब कहाँ यह जानती थी।जब जाना तब बहुत देर हो चुकी थी।बड़ी उम्मीदों से एक घोंसला बनाया था।सोचा था हंसी खुशी जिंदगी गुजरेगी अपनी।लेकिन उसे यह कहाँ भाता था।

शाम को यूं ही नदी किनारे टहलती हुई कब वह अपने अतीत में पहुंच गई जान नहीं पाई।सब कुछ चलचित्र सा उसके सामने से गुजरने लगा।दुल्हन के लिबास में सजी उसने अपनी सासुराल में पैर रखा तो सास के साथ दुल्हन जैसी वेशभूषा में एक और लड़की खड़ी थी।सुन्दर लग रही थी।सास ने पूरी रीति रिवाज के साथ उसे घर में प्रवेश कराया।सभी रस्में पूरी की गईं। रात को उसे उसके कमरे में पहुंचा कर सभी पुरुष विश्राम करने लगे और स्त्रयों ने कुछ देर के लिए ढोलक सम्भाल ली।

तरुण ,हां यही नाम था उसके पति का,कमरे में आया ।कुछ गम्भीर सा जैसे दिल में कोई बात दबाये हो।कुछ देर औपचारिक बातों के बाद उसने एक ऐसा जहरीला तीर मुझ पर छोड़ दिया जिसका जहर आज भी मेरी रग रग में टीस मार रहा है।

उसने कहा, "वैष्णवी,मैं अपने साथ काम करने वाली अनुजा से प्यार करता हूँ। वह भी आज यहां आई है।यह बात तुम्हें हमेशा याद रखनी पड़ेगी।तुम मेरी पत्नी हो और वह मेरा प्यार।""

मैं इतना सुनते ही जड़वत हो गई।यह भी नहीं पूछ सकी कि मुझसे शादी क्यों की?सारी भावनाएं, आकांक्षाए,अपेक्षाएं सभी एक साथ धूल धूसरित हो गईं।

बस एक बात याद रही कि मैं इस शख्स की पत्नी हूँ।और उसने भी मेरे भावहीन शरीर से अपना अधिकार प्राप्त कर लिया।तब से लेकर आज तक मैं एक पत्नी की तरह उसके सारे काम पूरे करती रही कि कभी तो मेरा सेवा भाव इसके विचारों को बदल देगा। पर ऐसा नहीं हुआ।

 

मैं लोकलाज के लिये उसकी पत्नी थी और अपनी खुशी के लिये उसके साथ अनुजा होती थी।मैं घरवाली सिर्फ काम करने के लिये और वह बाहर वाली अय्याशी के लिये।

क्या मैंने विरोध नहीं किया था? किया था ,पर परिणाम उलटा ही हुआ।उसने मुझे समझा दिया कि अगर झगड़ा करोगी तो घर आना ही छोड़ दूंगा।

मैं भी लोकलाज के कारण सब सहती रही। किससे अपना कष्ट कहती।जिसे मेरा होना था जब वह ही मेरा नहीं हुआ तो किसी से भी आशा रखना मेरे लिए निरर्थक था।

दर्द सहने की भी एक सीमा होती है।मेरा मानसिक और आत्मिक कष्ट अब सीमाएं छूने लगा था।क्या करूँ विचार करते करते मैंने अपने सभी सर्टिफिकेट,कुछ जोड़ी कपड़े और कुछ पैसे एक एयर बैग में रख लिए और उचित समय का इंतजार करती रही।अगले दिन तरुण कुछ ज्यादा ही खुश नजर आ रहे थे ।जरूर अनुजा के साथ कुछ मस्त प्रोग्राम बनाया होगा ।अच्छे से तैयार हो आफिस के लिए निकल लिए।मैं इसी वक्त का इंतजार कर रही थी।

     

मैंने भी अपना बैग उठाया ,दरवाजे बंद किये और बाहर निकल गई।कहाँ जाऊँ?शाम होने से पहले कहीं दूर निकल जाना चाहिये जहाँ कोई जानने वाला भी न हो।

सबसे पहले अपना मोबाइल नम्बर बदला फिर चली आई रेलवे स्टेशन। वाराणसी जाने वाली गाड़ी प्लेटफार्म पर लगी थी।मैंने टिकट लिया और जाकर बैठ गई।कुछ राहत महसूस हुई।

     

गाड़ी में बैठे मैंने पिंजरे से छूटे पक्षी की तरह आजादी का अनुभव किया । बहुत हल्का महसूस कर रही थी।अपनी मर्जी से अपने लिए जीने की लालसा बलवती होने लगी।एक नये उत्साह से भर गन्तव्य का इंतजार करने लगी।

  

वाराणासी पहुंचते ही मैंने लम्बी गहरी सांस भरी और गंगा की ठंडी और पवित्र वायु को अपने अंदर समाहित कर लिया।अब अपनी नई जीवन यात्रा के लिये पूरी तरह तैयार थी।वीमेन होस्टल में एक कमरा लिया सामान रखा, थोड़ा आराम किया और चल दी नदी किनारे उसी की तरह आज़ाद और निर्बाध बहने के लिये।वैष्णवी अब अपने सही स्थान पर पहुँच चुकी थी।

     

    



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