रिक्शा
रिक्शा


तपती गर्मी की दोपहरी थी।जेठ का महीना सूरज अपनी प्रचंड किरणों के साथ सिर के ऊपर चढ़ आया था।मैं एक दुकान के शेड के नीचे खड़ी रिक्शा का इंतजार कर रही थी।घर थोड़ा दूर था वहाँ तक पैदल जाना असम्भव लग रहा था।
तभी एक वृद्ध रिक्शा वाला आकर रुका और बोला ,"बिटिया रिक्शा का इंतजार कर रही हो क्या?""
मैंने कहा,"हाँ बाबा।लेकिन इतनी गर्मी में आप इतनी दूर कैसे जा पाएंगे?""
""तुम चिंता न करो बेटी।यह तो मेरा रोज का काम है ।आदत हो गई है गर्मी सर्दी बरसात झेलने की।आओ बैठो,संकोच न करो।""
मैं रिक्शा में बैठ गई पर बाबा पर मुझे दया आ रही थी।
पसीने से लथपथ उन्होंने मुझे घर पहुंचा दिया।वह पसीना पोछते छाँव में खड़े होकर पैसे मिलने का इंतजार करने लगे।
मैंने कहा,""बाबा अंदर आ जाओ बरामदे में।पंखा लगा है कुछ देर सुस्ता लो।मैं तुम्हारे लिये पानी लेकर आती हूँ।"
कहकर मैं अंदर से ठंडा पानी और खाने के लिये कुछ मीठा ले आई।बाबा ने बहुत संकोच के साथ पानी पीकर सन्तोष अनुभव किया और जाने के लिये उद्यत होने लगे।
मैनें कहा ,"बाबा भाड़ा तो लेते जाओ और अगर देर न हो रही हो तो अपने बारे में कुछ बताओ।घर में कौन कौन है जो आपको इस उम्र में भी इतनी मेहनत करनी पड़ रही है।"
""घर पर मेरी पत्नी है वह भी अक्सर बीमार रहती है।उसकी दवा और अपने पेट के लिए मेहनत करता हूँ।दो बेटे हैं जो दूसरे शहरों में रहते हैं।उन्हें इसी रिक्शा की आय से पढ़ा लिखा कर इस योग्य बनाया कि वे आज अपने पैरों पर खड़े है।सर छिपाने को दो कमरों का ईंटों का बना एक छोटा सा मकान है।बच्चे कभी तीज त्योहार पर आ जाते हैं एक दिन के लिये।"
" बाबा तु
म उन लोगों के पास क्यों नहीं चले जाते?"
"मेरी पत्नी इस के लिये तैयार नहीं होती।कहती है मैं तुम्हारी जिम्मेदारी हूँ ,तुम जैसे रखोगे यहीं रहूँगी कहीं नहीं जाना मुझे।अच्छा मैं चलता हूँ बिटिया ,वह मेरा इंतजार कर रही होगी।""
और रिक्शा वाले बाबा चले गए।
एक दिन मैं शाम के समय बाहर बरामदे में बैठी कुछ पढ़ रही थी कि देखा वही रिक्शा वाले बाबा अपनी रिक्शा के साथ आ रहे हैं।
पास आने पर मैंने पूछा ,'बाबा सब कुशल तो है।""
वह बोले," बिटिया सब कुशल मंगल है।मुझे तुमसे कुछ काम था।"
मैंने कहा,"बोलो बाबा क्या काम है?कुछ चाहिए क्या?"
"नहीं नहीं बिटिया कुछ चाहिए नहीं।कल मेरा छोटा बेटा आया है हम लोगों को साथ ले जाने।अपनी माँ को बहुत मुश्किल से राजी किया है चलने के लिये।हम लोग कल जा रहे हैं।पता नहीं कब लौटना हो।तुमसे एक विनती है कि मेरी इस रिक्शा को अपने घर के किसी कोने में खड़ी करने की आज्ञा दे दो।इसने मेरा जीवन भर साथ दिया है।इसे खोना नहीं चाहता।उस मकान से तो इसे कोई भी खींच के ले जाएगा।इतना मुझ पर उपकार करदो मैं जीवन भर अहसान मानूंगा।तुम्हारे जैसा और कोई भी व्यक्ति यहाँ नहीं मिला इसीलिये बिना संकोच किये मैं तुम्हारे पास चला आया।बोलो बिटिया मेरा इतना काम कर दोगी।""
मैंने कहा," बाबा तुमने मुझसे अगर उम्मीद की है तो मैं भी तम्हें न- उम्मीद नहीं करूंगी।उधर सर्वेंट क्वार्टर बना है वहाँ खड़ी कर दो और यह बरसाती लो उस पर डाल देना।जब चाहो आकर अपनी रिक्शा ले जाना।"
बाबा ने रिक्शा खड़ी कर दी और बहुत आशीष देते हुए चले गए।
बहुत समय हो गया बाबा का कुछ पता नही चला और वह रिक्शा आज भी उनके इंतजार में वहीं खड़ी है।