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Renu Singh

Abstract Inspirational

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Renu Singh

Abstract Inspirational

अंधेरे रास्तों का उजाला

अंधेरे रास्तों का उजाला

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"रामरतिया ,मर्द का पेट इतना बड़ा होता है कि कभी नहीं भरता।"

"यह क्या कह रही है तू सत्तो ?"

"मैं क्या झूठ बोल रही हूँ ? वह देख वह मेरा मर्द है और कैसे उस छिछोरी के साथ रंगीन हुआ पड़ा है। "सत्तो आक्रोशित थी।

रामरतिया न समझाया ,"छोड़ सत्तो। तू अपने बच्चे देख कुछ दिन बाद सुधर जायेगा।"

"तो क्या मैं तब तक कुढती रहूँ और इसकी नाजायज हरकतें बर्दाश्त करती रहूँ। यह नहीं सुधरने वाला। इसका बाप भी तो रंगीला था। अपने चार बच्चे और बीबी को छोड़ दूसरी औरत बिठा ली और उसके भी चार बच्चे। पहली वाली कहाँ है,जीती है या मरती है किसी को नहीं पता। और अब सत्तर साल की उम्र में दो कुंवारी लड़कियों को छोड़ सिधार लिया ऊपर। उन बच्चों को कौन संभालेगा कौन उनकी शादी ब्याह करेगा किसी को होश नहीं। सब अपने में मस्त सांड से घूमते फिरते हैं। "

"तू क्यों परेशान है सत्तो ?"

"क्यों न परेशान हूँ मैं। उनकी जिम्मेदारी भी तो मुझे ही निभानी पड़ेगी। बड़ी और अकेली बहु जो हूँ उस घर की। बाप और भाई की आवारगी से क्या लड़कियाँ अछूती रह गई हैं। वह भी गांव भर में मनमानी करती घूमती हैं। पढ़ने का तो बहाना है आजादी चाहिए। माँ की ही जब नहीं सुनती तो मेरी क्या औकात उनसे कुछ कह सकूँ। कुछ कहो तो उनके भाई के सीने पर साँप लोटने लगते हैं और मेरी शामत आ जाती है। मैं तो तंग आ गई इस जिंदगी से। "

"ऐसा मत कह सत्तो ,देख तू थोड़ा तो पढ़ी लिखी है। गाँव में ही तो सरला बहनजी हैं जो समाजसेविका हैं और महिलाओं को आगे बढ़ने में उनकी सहायता भी करती हैं। एक बार चलकर उनसे मिल ले। "

"तू मेरे साथ चलेगी न रामरतिया।अकेले जाते घबराहट होती है। "

"हाँ जरूर चलूंगी। चल अभी चलते हैं। वह अभी अपने दफ्तर में ही होंगी। "

दोनों सरला बहनजी से मिलीं।

उन्हें अपनी समस्या बताई और उससे बाहर निकलने के लिये सुझाव मांगा।

सरला जी ने दोनों को ही अपने सहायता समूह में शामिल कर लिया। वहॉं औरतें बड़ी ,पापड़ ,अचार बनातीं, सूत कातती ,सिलाई जानने वाली सिलाई भी करती थीं।

सत्तो और रामरतिया भी समूह में शामिल हो कर काम करने लगीं। इस तरह उनकी आय का एक जरिया बन गया।

सहायता समूह की स्त्रियों से उनकी अच्छी दोस्ती हुई तो सत्तो के मर्द को अपनी हरकतों पर शर्म आने लगी। उसने सीधे अपनी राह खेतों की ओर मोड़ ली।

अब परिवार की इज्जत का सवाल था तो भाई ने बहनों की भी नकेल कस दी। बड़ी बहन को भी भाभी के साथ सहायता समूह में भेज दिया। छोटी बहन और माँ गृहस्थी संभालतीं और छोटे भाई भी खेत पर काम करने लगे। अनाज और सब्जी मंडी में पहुचाने लगे।

सत्तो अब खुश थी। उसने अपने लड़कों को भी स्कूल भेजना शुरू कर दिया। रामरतिया और सत्तो सरला बहन जी को धन्यवाद देते न थकती थी।


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