Sandeep Kumar Keshari

Romance

5.0  

Sandeep Kumar Keshari

Romance

कैसा मिलन...!

कैसा मिलन...!

16 mins
422


मोबाइल की घंटी बजी। मनोज बाबू ने फोन उठाया-हेलो...!

“अंकल, मैं रमन बोल रहा हूं...नमस्कार”-उधर से आवाज़ आई।

“ बेटा, ख़ुश रहो! और बताओ क्या हाल है? पापा की तबियत कैसी है “-मनोज बाबू ने पूछा?

अंकल…अंकल…वो…रमन की आवाज़ अटकने लगी थी!

मनोज बाबू –“क्या हुआ रमन, सब ठीक तो है न?”

“...अंकल ...पापा की तबियत बहुत नासाज़ है। पता नहीं कब क्या हो जाए” - कहते-कहते रमन का गला भर्रा गया!

फिर संभलते हुए बोला- “...आपको याद कर रहे थे, इसीलिए आपको फ़ोन लगाया।“

फिर फ़ोन कट गया!

मनोज बाबू का चेहरा बदरंग हो गया। उन्होंने हड़बड़ा कर किशुन बाबू को फोन लगाया । एक घंटे में दोनों राजेश्वर के घर पर थे। राजेश्वर उर्फ राजू के घर के एक कमरे को ही उसके परिवार वालों ने छोटा अस्पताल बना दिया था। ऑक्सीजन मास्क के अंदर चेहरा कितना सपाट हो चला था! राजू ने मनोज और किशुन को देखकर उठने का प्रयास किया, पर उठ नहीं पाए। दोनों ने उन्हें लेटे रहने का इशारा किया।

मनोज, किशुनदेव उर्फ किशुन एवं राजू- तीनों बचपन के दोस्त थे। स्कूल से लेकर कॉलेज तक एक साथ पढ़े थे तीनों। राजू की सरकारी नौकरी थी। राजू के स्वैच्छिक सेवानिवृति के बाद तीनों एक ही शहर में आ गए थे। 10 साल पहले पत्नी के आकस्मिक निधन के बाद राजू ने वी.आर.एस. ले ली थी। मनोज का यहां अच्छा-ख़ासा बिज़नेस था। किशुन बाबू बच्चों को पढ़ाते थे। वे माध्यमिक विद्यालय के हेडमास्टर थे।

एक ही शहर में होने के बावजूद तीनों का मिलना बमुश्किल ही हो पाता था। हालांकि तीनों के पारिवारिक रिश्ते काफी अच्छे थे।

राजू को कैंसर था। डॉक्टर ने ज्यादा से ज्यादा आराम की सलाह दी थी। स्टेज IV तक पहुँच गया था उनका कैंसर। इसीलिए उनके बेटे रमन ने घर में ही सभी मेडिकल उपकरण को सेट कर छोटा-सा वार्ड बना रखा था। समय - समय पर डॉक्टर आते और देखकर चले जाते।

ख़ैर, राजू ने दोनों मित्रों को पास बुलाया और धीमे से लड़खड़ाते हुए बोला- “यार, पता नहीं मैं कितने दिनों का मेहमान हूँ। मेरा एक काम कर दोगे दोस्त?”

किशुन ने राजू के हाथ पर हाथ रखकर कहा-“हाँ भाई, बोल ना!”

उधर मनोज सर पर हाथ रखकर बोले-“क्या काम है, बोल!”

“ मुझे ऊपरवाले ने सबकुछ दिया -धन-दौलत, इज़्ज़त-शोहरत, यार-दोस्त, घर-परिवार…सबकुछ!...बस,एक अंतिम इच्छा है मेरी….! ..यार, मुझे एक बार...बस एक बार सपना से मिला दो, प्लीज!….ताकि मैं चैन से अंतिम सांस ले सकूँ” - कहते-कहते राजू का गला भर गया और सूनी आँखों से दो मोती निकलकर झुर्रिवाले धँसे हुए गालों में जा ठहरे।

ये बातें सुनकर मनोज और किशुन दोनों स्तब्ध हो एक दूसरे को देखने लगे।

जैसे काटो तो खून नहीं!!

“क्या हुआ ? नहीं कर पाओगे”-राजू ने पूछा?

शायद उसने उनके भावों को पढ़ लिया था।

किशुन ने कहा-“भाई, मेरे पास तो उसकी कोई ख़बर नहीं है- कहाँ है, कैसी है? उससे मिले भी तो 40 साल हो गए है! फिर तू आज...”

“ठीक है…ठीक है…., हम कोशिश करेंगे”- मनोज ने किशुन की बात पर कहा, सपना!!! अपने बैच की सबसे ख़ूबसूरत लड़की - कौन लड़का उसके पीछे पागल नहीं था - अचानक सबकुछ फिल्मों की तरह फ़्लैशबैक हो सभी चीजें दोनों को दिखाई देने लगी। यादें ताज़ा हो गयी दोनों की। राजू 2 साल के अथक कोशिश से पटा पाया था सपना को। दोनो की जोड़ी खूब जमती थी।

राजू की पढ़ाई चल रही थी कि एक दिन अचानक सपना की शादी हो गयी- इंजीनियर से। लड़का भी ठीक ठाक था, खाता पीता घर का था।

वो दिन राजू की जिंदगी का सबसे बुरा दिन था। सामाजिक बंधन…..रस्म-रिवाज….पैसा-शोहरत….सबकुछ हावी हो चुका था एक निश्छल, निष्कपट एवं निर्मल प्रेम पर! पहली बार राजू की आंखों से इतना झरना बहा था उस दिन!

ख़ैर, धीरे -धीरे सब सामान्य-सा लगने लगा था। दो साल बाद राजू की भी शादी हो गयी थी पारुल भाभी के साथ। सबकुछ ठीक था। उनका परिवार खुश था।...मगर आज! आज लग रहा था कि सब झूठ था- सब दिखावा…..सब छलावा!!

आज लगा जैसे राजू अपने दिल की आवाज़ और उसकी बातों को कह रहा हो, जिंदगी के अंतिम दौर में…..!! इसका मतलब राजू अभी तक पहले प्यार को भुला नहीं!! ...शायद, हाँ ! सामाजिक मजबूरियां और बंधन ने शायद अब तक उसे रोक रखा था, जो आज उसकी जुबाँ पर आ ही गया।

“...जी पापा”- ये शब्द सुनकर किशुन का ध्यान टूटा। ये शब्द रमन के थे। शायद राजू ने उसे अपने पास बुलाया था। रमन राजू के पास गया। राजू ने एक चाबी कमर के पास से निकाल कर दी, जो उसके पाजामे से बंधी थी, और रमन को कुछ कहा।

रमन उठा और अंदर से छोटा-सा संदूक लाया। उसे सबके सामने खोला गया। शायद ये भी एक राज़ था!! खुद रमन भी आश्चर्यचकित था। बक्सा खुला तो एक पुरानी-सी डायरी थी, और एक लाल गुलाब-जो वक़्त के साथ पुराना हो सूख चुका था। राजू ने डायरी को काँपते हाथों से सहलाया, थपकी दी और धीरे -से कांपते होठों से मास्क के ऊपर से चूमा और बाजू में रख दिया, फिर गुलाब को उसने चूमकर सीने पर रख दिया। हर कोई ये दृश्य देख रहा था- कोई आश्चर्य से, तो कोई भावुक होकर! रमन की पत्नी अपने 8 साल के बेटे के साथ राजू के पास आई और धीरे -से बोली- “पापा, ये डायरी और फूल आपको सपना ने दिया था?”

राजू ने सर हिलाकर हामी भरी।

बहू की आंखों में पानी आ गए, मगर खुद को संभालते हुए बोली- “इसको कहाँ रख दूँ (डायरी और गुलाब)?”

राजू ने उसे वहाँ से हटाने से मना कर दिया।

इधर ये सब दृश्य चल रहा था, उधर मनोज और किशुन आपस में गुफ्तगू कर रहे थे - यार कैसे होगा ये? तेरे पास है क्या उसका पता या फोन”- मनोज ने पूछा?

किशुन ने नकारात्मक जवाब दिया।

बड़ी मुश्किल थी, दुविधा भी!

करें भी तो क्या करें? फिर दोनों ने फेसबुक में सर्च किया- SAPNA !!! लंबी लिस्ट आयी लेकिन वो सपना नहीं मिली। फिर उसी फेसबुक से दोस्तों के मोबाइल नंबर निकाल कर फोन किया गया।

शाम हो गई – कोई हल नहीं निकला। कोई छोर नहीं मिला उन्हें। लेकिन फिर अचानक उन्हें रूबी का नंबर मिला। फोन लगाया गया – संयोगवश रूबी ने ही फोन उठाया। मनोज ने रूबी को अपना परिचय दिया। मुश्किल से रूबी अपने बैच के लड़के को पहचानी। बातें करते- करते मनोज ने रूबी से सपना के बारे में पूछा!

“मनोज ,तू पागल है! 40 साल हो गए हैं हमे मिले हुए। मेरे पास उसका नंबर कहां से होगा? और तू अभी क्यों खोज रहा है उसे”- रूबी ने पूछा?

मनोज – “नहीं यार, मुझे उससे कुछ ज़रूरी काम था, इसीलिए नंबर ढूंढ रहा हूं।“

रूबी -“मेरे पास उसका तो नहीं, लेकिन संध्या का नंबर है। चाहो तो ले लो, शायद उससे कुछ पता चल जाए सपना के बारे में।“

मनोज झट से नंबर लिया और किशुन ने अपने मोबाइल से कॉल किया संध्या को।

संध्या! सपना की सबसे अच्छी दोस्त! उसे सपना – राजू के बारे में सब पता था।

मनोज को लगा जैसे वो सपना के क़रीब पहुंच चुके हैं।

किशुन ने संध्या से बात करना शुरू किया –“ हैलो! मैं किशुन बोल रहा हूं। क्या मैं संध्याजी से बात कर सकता हूं?”

उधर फोन किसी बच्चे ने उठाया था। वो चिल्लाते हुए बोल रहा था – दादी, दादी! कोई किशुन आपसे बात करना चाहता है। कुछ देर बाद,

“हैलो…(उधर से बूढ़ी की आवाज़ आई)!!

“हैलो… संध्या, मैं…किशुन बोल रहा हूं। पहचानी मुझे? कॉलेज में साथ में पढ़ते थे” – किशुन ने परिचय देने की कोशिश की!

....किशुन?....किशुनदेव!... ओ…ओह…हां…! वो मोटा किशुन!!अपने बैच का” – बूढ़ी ने हंसते हुए पूछा?”

किशुन – “हां…हां…वही किशुन!”( मुस्कुराहट आ गई थी उसके चेहरे पर)।

धीरे- धीरे बातें आगे बढ़ी। हंसी मज़ाक भी चल रही थी। रमन और उसकी बीवी ये सब देख रहे थे। इतने सालों बाद भी वही मुस्कुराहट, वही गरमाहट!! शायद यही दोस्ती थी! बचपन के दोस्त भुलाए नहीं भूलते। आज तो जैसे बच्चों का बचपना ही कहीं गुम हो गया है – किताब, कंप्यूटर और कॉम्पटीशन के बीच - दोनों मियां – बीवी यही सोच रहे थे शायद!!

तभी किशुन कि आवाज़ रमन के कानों में पड़ी – "अरे रमन, कहां खो गया? पेन – पेपर दे भाई, नंबर नोट करना है।” किशुन बाबू के चेहरे पर चमक थी। लग रहा था जैसे उन्हें सपना का नंबर मिल गया था। उन्होंने नंबर नोट किया और फिर संध्या को थैंक यूं बोला।

अब किशुन बाबू ने सपना का दिया नंबर डायल किया।…कोई जवाब नहीं!

दूसरी कोशिश!...कोई जवाब नहीं!!

तीसरी कोशिश!...काफी देर के बाद किसी बूढ़े ने फोन उठाया-“हैलो!”

“हैलो.. मैं किशुनदेव बोल रहा हूं। मैं सपना के परिवार से सदस्य से बात कर रहा हूं?”

“जी बोलिए । मैं सपना का पति मुकुंद बोल रहा हूं।”

किशुन ने कहा – “जी नमस्कार! मुझे सपना जी से कुछ बात करनी है ।”

बूढ़े ने कहा – “जी बोलिए क्या बात है? मैं उसे बता दूँगा!”

इधर मनोज सोच रहे थे – किशुन तो आज कमाल कर के ही दम लेगा। वो हर मामले को अपनी ओर करने में माहिर था। मनोज के चेहरे पर चमक थी – लगा जैसे सपना के काफ़ी क़रीब पहुंच चुके थे!

पर, ये क्या? फोन कटने के बाद किशुन बाबू का चेहरा उतर गया था! शायद सपना ने आने से मना कर दिया था!?

किशुन बाबू सीधे राजू के पास गए और अपने दोनों हथेलियों के बीच राजू की हथेली को रखा और रुंधे गले से बोले –“दोस्त! आज तू हार गया! सपना ने तो तुझे पहचानने से भी इनकार कर दिया! कब का भूल चुकी है वो तुम्हें !”

अब रमन और उसकी पत्नी को ये सब नाटक लगने लगा था। रमन बोला –“छोड़ दीजिए अंकल। नहीं आना है तो ना आए। आखिर कोशिश तो की ना आपने!”

राजू ने कुछ नहीं कहा। ऊपर की ओर देखा, और धीरे से कहा –“वो आयेगी!” और फिर चुप हो गए।

अब रात हो चली थी। सब जाने लगे थे। मनोज और किशुन दुःखी थे। समझ नहीं आ रहा था – क्या करें? क्या सपना के घर चले जाएं, और राजू की स्थिति के बारे में बताएं! अगर वहां कुछ मामला गड़बड़ा गया तो? इस बुढ़ापे में इज़्ज़त की बैंड बज जाएगी। जो दो – चार दिन बाकी है जिंदगी के – वो भी बेइज्जती और फटकार में गुज़र जाएगी। सभी बोलेंगे कि देखो इन्हें ,इन बूढ़ों को! सठिया गए हैं! बुढ़ारी में चले हैं इश्क़ लड़ाने!!

बड़ी दुविधा थी – एक तरफ दोस्ती, तो दूसरी तरफ इज़्ज़त! क्या करें, क्या ना करें – कुछ समझ नहीं आ रहा था।

सारी रात करवट बदलने में बीती – वैसे भी इस उमर में नींद कहां आती है!

भोर हुई- 10 बज गए। मगर मनोज बाबू उठे नहीं। पत्नी ने आवाज़ लगाई – “अरे कितना सोना है? दस बज गए हैं, नहीं उठोगे क्या?”

बिना कुछ आवाज़ दिए मनोज बाबू उठे और बेमन– से अख़बार पलटने लगे।

“…साला, आजकल अख़बार में भी कुछ नहीं रहता” – बुदबुदाते हुए अख़बार को टेबल पर पटक दिया!

बेटे ने हेलमेट उठाते हुए पूछा –“पापा, आज नहीं जाना क्या दुकान?”

मनोज बाबू ने खीझते हुए कहा – “तू जा! मैं नहीं जाऊंगा। मन नहीं है।"

“पर पापा…!”

“तू जा ना, मेरा दिमाग़ मत खा”- बेटे की बात काटते हुए मनोज बाबू ने कहा।

उधर किशुन बाबू की लगभग यही मनोस्थिति थी। आज ट्यूशन छुट्टी कर दी थी। स्कूल भी नहीं गए। जब कोई निष्कर्ष नहीं निकला तो मनोज बाबू को फोन लगाया। बातें हुई, पर कोई हल नहीं निकला। फिर दोनों राजू के घर चलने का विचार किया – शायद राजू का मन बदल जाए!

दोनों अपने - अपने स्कूटी से निकल पड़े। मनोज बाबू पहले पहुंच राजू का हाल – समाचार पूछा। रात में तबियत बिगड़ गई थी राजू की – ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ा दी गई थी। रक्तचाप में भी बहुत उतार – चढ़ाव हो रहा था। उन्हें जीवन रक्षक दवाइयाँ दी गई थी। हिल - डुल भी नहीं पा रहे थे राजू।

उधर किशुन रास्ते में ही फँस गए। सावन की पहली बारिश – वो भी मूसलाधार! धीरे – धीरे किसी प्रकार स्कूटी रोकी और खीझते हुए एक शेड में रुके – “ये बारिश को भी अभी ही आनी थी!” बारिश बढ़ती ही जा रही थी। तभी किशुन का मोबाइल बजा। मनोज बाबू का फोन था, बोल रहे थे –“अरे कहां रह गया तू? 2 बजने वाले हैं, जल्दी आ!

किशुन बाबू बोले –“अरे,बारिश में फंसा हुआ हूं, आधे रास्ते में हूं।”

“जल्दी आ ,राजू की तबियत बिगड़ रही है – उधर से आवाज़ आई।

किशुन ने कहा –“ठीक है, थोड़ा बारिश तो थम जाए!”

कम्बख़त बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी। 3 बज गए इंतज़ार में। अब किशुन बाबू का धैर्य जवाब दे गया। बरसात में ही स्कूटी स्टार्ट किया। कुछ लोगों ने मना भी किया, मगर वो नहीं माने और आगे बढ़ गए। आगे तो हालात और भी ख़राब थे। सड़कों पर पानी भर गया था। लग रहा था कि कहीं एक घंटा और इसी तरह बारिश होती रही तो घुटनों तक पानी भर जायेगा सड़कों में। 10 मिनट का रास्ता उन्होंने 40 मिनट में तय किया। राजू के घर पहुंचे तो राजू की बहू ने तौलिया दिया। बूढ़े बदन को कमज़ोर हाथों से उन्होंने पोंछा। ठंड भी लग रही थी। उन्होंने राजू के कपड़ों को ही पहन लिया, और रमन से एक कंबल मांग लिया। कंबल ओढ़ने के बाद कुछ आराम मिला। फिर सबके लिए कॉफी बनी। सभी ने पिया, पर कोई बात नहीं कर रहा था – अजीब सी ख़ामोशी और संताप था सबके चेहरे पर। कॉफी फीकी लग रही थी सबको। शायद कॉफी की तरह जिंदगी भी बे- स्वाद ,फीकी और बदरंग हो चली थी! 4 बज चुके थे। सभी ने हॉस्पिटलनुमा कमरे में प्रवेश किया।

राजू की सांसे अटक रही थी। चेहरा और जिस्म बेजान – सा पड़ा था। आहट होने पर कभी – कभी राजू आँखें खोलते थे, पर हिल – डुल नहीं पा रहे थे। कुछ देर बाद अचानक सीने पर एक झटका लगा, मॉनिटर में अजीबोगरीब बदलाव आए, और लगा जैसे सांसों की रफ्तार थम रही हो, लय लड़खड़ाने लगे, और साथ छोड़ने लगे थे! सभी घबरा गए। जल्दी से डॉक्टर को बुलाया गया। ये दृश्य देख सभी सहम गए – क्या ये बुलावा है ऊपर वाले का! सभी डॉक्टर के लिए भागे, मगर मनोज और किशुन को तो जैसे काटो तो खून नहीं! बुत बनकर खड़े थे दोनों – आखिर अपने सबसे अज़ीज दोस्त को दिया वादा जो अधूरा रह गया था और वक़्त भी दगा देने लगा था! 10 मिनट भी नहीं हुए होंगे कि राजू की आँखें खुली की खुली रह गईं, धड़कन थम गई, चेहरा शांत, निस्तेज और शरीर बेजान हो गया!!

तभी डॉक्टर आए, नब्ज टटोली, आला लगाया, और….. वही घिसा – पिटा फिल्मी डायलॉग बोल दिया- “आई एम सॉरी! ही इज नो मोर!”

रमन बेहोश हो ज़मीन पर गिर पड़ा, उसकी पत्नी रमन को संभालते- संभालते खुद गिर कर रोने लगी। ये दृश्य देखकर राजू का 8 साल का पोता भी रोने लगा! मनोज बाबू कोने में बैठ गए, आँखें पथरा गई! किशुन बाबू के आँसू ने तो आँखो का ही साथ छोड़ दिया! कमरे में रोने और सुबकने मिश्रित आवाज़ आने लगी। शाम 5 बजने वाले थे। बाहर सावन की झमाझम बारिश और अन्दर में एक चुप्पी, ख़ामोशी और….तन्हाई!!!


तभी दरवाज़े पर आहट हुई। शायद कोई था! एक बूढ़ी लगभग 55-60 के वय की एक 12 साल की लड़की के साथ थी। दोनों पूरी तरह भींग चुके थे। लड़की के हाथ में टिफिन जैसा कुछ था, जो दरवाज़े के पास खड़ी थी। बूढ़ी ने धीरे – से कमरे में प्रवेश किया। राजू की बहू बिस्तर के पास बैठे रो रही थी, तो रमन अपने पिता के सीने से लिपटकर। किसी के पास शब्द नहीं थे – सिर्फ वेदना थी!

वो बूढ़ी उस बेजान पड़े शरीर के पास गई , बैठी और बहुत देर तक निहारती रही! उसके पश्चात गालों को अपने हथेलियों से छुआ, माथे को चूमा, फिर सीने पर पड़े सूखे गुलाब को देखा और फिर उसकी नज़रें बगल में रखी अधखुले डायरी पर पड़ी! वो चुपचाप बैठी रही! ये नज़ारा हर कोई देख रहा था। “ये कौन है” - रमन की बीवी ने धीरे– से रुंधे गले से पूछा? रमन ने अपनी पत्नी को ऐसे देखा जैसे कहना चाह रहा हो –“मुझे भी नहीं पता।”

मनोज बाबू और किशुन बाबू ने तो गोरे गालों में बड़ा – सा तिल देखकर ही पहचान लिया था, कि वो बूढ़ी सपना थी!!!

दोनों आश्चर्यचकित थे! किसी को उम्मीद नहीं थी, और किसी को भरोसा नहीं हो रहा था कि वाकई ये सच है!! क्या सच में 40 साल का बिछड़ा प्यार फिर से आ गया!! लगा जैसे कोई सपना देख रहा हो ! अब तक रमन और उसकी बीवी भी समझ चुके थे कि वो सपना ही थी!!!

इधर सपना ने अपने दोनों हथेलियों के बीच में बेजान राजू की हथेली को रखकर धीरे–से बोली – “इतना प्यार! ...इतना प्यार!! ...इतना प्यार करते थे मुझसे???” इतना कहते – कहते उसकी बड़ी-बड़ी काली आँखों से मोतियों का झरना फूट पड़ा! झरना ऐसे बहा जैसे रुकना ही नहीं था उसे! फिर भी अपने को संभालते हुए कहा – “जब भी मैं तुमसे मिलने को बोलती, तुम हमेशा देर से आते थे और मैं नाराज़ होती थी, और आज जब इस बारिश ने मुझे देर करा दिया तो मुझसे नाराज़ नहीं होगे? लो मारो मुझे” – और उस बेजान हथेली को अपने गालों में मारने लगी। “लो मारो मुझे। मैं जानती हूं कि तुम नाराज़ हो मुझसे, मगर इतने नाराज़ मत हो कि इतने दूर चले जाओ! देखो,आँखें खोलो…मैं आ गई, तेरी चॉकलेट! अब तो उठ जा कैंडी!! प्लीज,अब और मत रुलाओ मुझे” – कहते–कहते फफक पड़ी। उसके आँसू के मोती राजू के सीने पर रखे गुलाब को भिगोने लगी (सपना राजू को कैंडी और राजू उसे चॉकलेट बुलाता था)! ऐसा लग रहा था जैसे सपना अपने अश्रुओं की धार से गुलाब को फिर से खिलाना चाह रही हो! उसने अपने हाथों से राजू के खुले आँखों को बंद किया, जैसे कहना चाह रही हो कि जिसके इंतज़ार में तेरी आँखें खुली रह गई, वो इंतज़ार खत्म हो गया है!!

ये दृश्य देख सभी चीत्कार के उठे। लगा जैसे ये बिछड़न 40 साल का नहीं, 40 सदी का हो, और दिल मे आँसू आज के लिए सिलकर रखे थे, जिसकी गिरह अब खुल चुकी थी। आंसूओं के सैलाब से राजू का कुर्ता भीगने लगा था। बहुत कुछ कहना था सपना को शायद! बहुत सी बातें करनी थीं राजू से उसे - पर जुबाँ साथ दे तब ना! आँखों को बरसने से फुर्सत मिले तब तो कुछ कहा जाए! कोई किस प्रकार प्रेम के पनघट पर आकर प्यासा रह जाता है, यहां हर कोई देख रहा था – आखिर मिलन का घड़ा जो टूट चुका था!! ऐसा मिलन- वीभत्स!!! हृदयविदारक!!!!

उधर सपना ने कुछ देर रुककर कहा –“आई एम् सॉरी, कैंडी। मुझे बहुत देर हो गई ना!” फिर अचानक फर्श पर गिर पड़ी! सभी उसे उठाने को दौड़े। पानी छींटा गया उसके चेहरे पर। अजीब दृश्य! अजीब मुसीबत! अजीब भावनाएं! एक और दुर्घटना! हाथों में मालिश हुई!! इसी बीच उसकी पोती, जो अब तक चुपचाप सारा नज़ारा देख रही थी, दौड़ते हुए दादी की ओर भागी। इसी दरम्यान उसके हाथों से टिफिन छूटकर ज़मीन पर गिरा, और इडली – सांभर और चटनी बिखर गए! इडली – सांभर और चटनी – राजू का पसंदीदा खाना!! सपना इसी उम्मीद से टिफिन लाई थी कि राजू को अपने हाथों से खिलाएगी…..लेकिन…..!!!!!

उधर उसकी पोती ने दादी का सर अपने गोद में रखा और नाज़ुक हाथों से सर हिलाते हुए बोली –“दादी! उठो ना दादी! दादी!” डाक्टर को फोन लगाया गया। नहीं लगा – शायद बारिश की वजह से मोबाइल भी काम नहीं कर रहा था। तभी दादी ने धीरे – से आँख खोला और अपने झुर्रीदार हाथों से पोती की गालों को प्यार से फेरा और……!!! सपना का हाथ फर्श छूने लगा। पोती की चीख निकल गई –“दादीईईईईई!!!”

सब सन्न थे। कोई चीख रहा था, तो कोई सुबक रहा था, किसी के आँखों से बदर होने के बाद आँसू गालों में पनाह मांग रहे थे, तो कोई झरना बहा रहा था।

मनोज बाबू सोच रहे थे –“साला, यहां कोई विरह की वेदना को नहीं सह सकता और इन्हें देखो – मिलन का दर्द नहीं झेल पाए!”

किशुन बाबू के मन में ढेर सारे प्रश्न तैर रहे थे, मसलन जीता कौन? ये प्रकृति जो इन्हें अलग करने हेतु इतने पैतरे आजमाए, या ये प्रेम जो जाते-जाते अपनी बाज़ीगरी दिखा गया! ये रस्म-रिवाज, समाज, बंधन, रीतियां जिन्होंने इन्हें 40 साल तक दूर रखा, या फिर ये 4 मिनट का मिलन, जो 40 साल के फासले को तय कर लिया था!!”

भले दोनों जीवन के इस पार ना मिल पाए, मगर जिंदगी के आगे ,उसके पार तो मिल ही गए थे – अजर,अनुपम, अद्वितीय और अनोखे प्रेम – मिलन को सब देख रहे थे – ख़ामोशी से!

शायद यही सच्चा प्रेम था, और उससे भी सच्चा मिलन!!!

हवाएँ जोर से चलने लगी थी – बारिश भी अब तक थमी नहीं थी। हवाओं के कारण डायरी के पन्ने उलटने लगे थे। अंतिम पृष्ठ पर आकर पन्ना पलटने का सिलसिला थमा जिसमें बड़े – बड़े शब्दों में लिखा था –

“आसमां को ज़मीं कहां मिलती है,

तन्हाई को महफिल कहां मिलती है?

इश्क़ चाहे कितना भी गहरा क्यों ना हो,

सच्चे इश्क को मंज़िल कहां मिलती है?”

मगर ये पंक्तियां किशुन बाबू को झूठी लग रही थी – आखिर जीवन के उस पार तो दोनों मिल ही चुके थे। बारिश थमी नहीं थी। तभी किसी के मोबाइल की घंटी बजी –

.आओगे जब तुम वो साजना, अंगना फूल खिलेंगे।

बरसेगा सावन झूम-झूम के…दो दिल ऐसे मिलेंगे…!!!


“जब आप किसी को सच्चे दिल से प्यार करते हो,और आपका प्यार यदि बिछड़ गया है, तो जिंदगी के किसी मोड़ पर वो आपको ज़रूर मिलेगा, और अगर ना मिला, तो समझ लेना कि आप दोनों के बीच प्यार था ही नहीं!!”



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