काश! काश! काश! (2) ...
काश! काश! काश! (2) ...
वह (सहकर्मी) करतूत तो कर बैठा था लेकिन जब युवती, उसका हाथ झटक दिया और बच निकली थी तब वह, आशा के विपरीत बन गई परिस्थिति से स्तब्ध रह गया था। वह अपने घर जाने का साहस नहीं कर पा रहा था।
वह अकेला स्वयं, हनुमानताल के किनारे एक बेंच पर बैठ गया था। ताल से होकर आ रही समीर, उसके संतप्त मन की शीतलता प्रदान कर रही थी। मन के शांत हो जाने से वह अब, इसे सिलसिले से सोचने लगा था।
युवती ने अपनी सजगता से स्वयं को बचा लिया था। ऐसे में वह उस पर बलात्कार का अवसर आगे पा सकेगा यह संभावना तो खत्म हो गई थी। मगर वह बेचारी युवती, उस पर जो विश्वास करती थी, उस विश्वास का तो उसने बलात्कार कर ही दिया था।
उसकी असफल कुचेष्टा के ख़राब परिणाम की गंभीरता इसलिए और बढ़ गई थी कि यह युवती, उसकी पत्नी नेहा की हाल ही में अच्छी मित्र हो गई थी। ऐसे में अगर वह, नेहा को उसके द्वारा किये निकृष्ट प्रयास के बारे में बता दे तब सहकर्मी के सुखी चल रहे परिवार, घर एवं गृहस्थी में तूफान उठने का अंदेशा हो जाता था।
वह पछताने लगा था कि उसने, अपने मित्र के उकसावे में आकर, युवती के ऐसे चरित्र हनन की दुश्चेष्टा कर डाली थी। वह उस घड़ी को कोस रहा था जिसमें उसने, अपने मित्र (जो उसे अब अपना शत्रु प्रतीत हो रहा था) की बात को गंभीरता से मान लिया था।
उसके मित्र ने कहा था -
युवती के मार्गदर्शन के माध्यम से तूने जितने एहसान, उस सहकर्मी युवती पर कर रखे हैं और जैसा मैंने, उसे हँस-हँस कर, तुझसे बातें करते देखा है। ऐसे में मुझे लगता है कि तू अगर, पहल करे तो वह, तेरे द्वारा उसको आलिंगन में भर लेने पर आपत्ति ना कर सकेगी।
तब सहकर्मी ने मित्र से असहमति जताई थी और कहा था - लेकिन, ऐसे अवैध संबंधों में मेरे और उसके लिप्त होने से लाभ क्या है? मैं, अपनी पत्नी के साथ सुखी हूँ और वह भी अपने परिवार में खुश है। तब अनुचित ही तो होगा मेरा, उसे ऐसे व्यभिचार का शिकार बनाना।
मित्र ने हँसते हुए कहा था -
यार तू, किस पुरातनपंथी को लिए बैठा है। मैंने, तुम्हारे में उसे, जिस तरह रुचि लेते देखा है उससे साफ़ है कि तू चाहे ना चाहे पर वह तो तुमसे लिपट जाना चाहती है।
सहकर्मी ने फिर असहमति दिखाई थी, कहा था -
लेकिन यार, वह चाहती भी हो तब भी उसे, क्यों ऐसी बातों की तरफ बढ़ाना जिसमें उसके, अपने पति ऋषभ से किये वचन भंग होते हैं।
पता नहीं, उसका मित्र गंभीरता से यह सब कह रहा था या उसके मजे ले रहा था। मित्र बोला था -
देख, वह तो विवाहेत्तर संबंध के तलाश में लगती है। अभी वह, तुमसे ऐसे संबंध को उत्सुक है। अगर तू ने संबंध नहीं बनाये तो वह, किसी अन्य को ढूँढ लेगी। तेरी सज्जनता को वह सज्जन होना नहीं मानेगी बल्कि तुझे नामर्द ही मान लेगी, समझा तू?
इस पर भी सहकर्मी ने मित्र से सहमति नहीं जताई थी और कहा था -
नहीं यार, तू ठीक नहीं कह रहा है। वह बहुत भली एवं अपने परिवार के लिए जिम्मेदार युवती है। मैं, जैसा तू कह रहा है वैसा कुछ नहीं करने वाला।
मित्र ने अंत में यही कहा -
जैसी तेरी मर्जी, मैं तो, कभी कभी बाहर के खाने में विश्वास रखने वाला मर्द हूँ। और सच बताऊँ वह, अगर मुझसे, ऐसे क्लोज होती तो मैं, निश्चित ही यही करता जैसा तुम्हें करने को कह रहा हूँ।
यह बात तो उस दिन खत्म हो गई थी। फिर अजीब संयोग यह हुआ था कि उस रात जब उसने पत्नी नेहा को अपने करीब खींचा था तब नेहा बहुत थक गई हूँ कह कर, बच्चों के साथ जाकर सो गई थी।
सहकर्मी को पहले भी कभी कभी, नेहा की ऐसी उदासीनता ने क्षुब्ध किया हुआ था। मगर उस रात, नेहा की अनिच्छा ने उसके दिमाग में, मित्र के डाले हुये कीड़े को सक्रिय कर दिया था। वह सोचने लगा था, हाँ! मेरे, अगर युवती से संबंध हो जायें तो, नेहा की कभी कभी की यह रुखाई उसे, व्यथित ना करेगी।
फिर वह कीड़ा, जब तब उसे काटने लगा था। मित्र को, सात दिन पहले उसने, जिस बात के करने को मना कर दिया था अब वह, उसे करने पर विचार करने लगा था।
फिर दो दिन बाद ही उसे, युवती ने अपनी स्कूटी का ख़राब होना बताया था। दिमाग में लग गए कीड़े ने सहकर्मी को, अनुभव कराया कि ‘यह तो इक बहाना है - युवती को उसके निकट आना है।"
उसने मन ही मन खुश होते हुए, युवती को बाइक पर पीछे बिठाया था और ताल के पास आकर अपनी कुचेष्टा कर ही डाली थी।
अब जब युवती ऐसी नहीं निकली थी तब, उसे पछतावा हो रहा था कि काश! वह उस (आदर्श के बैरी) मित्र की बातों में नहीं आया होता।
अब उसकी प्रथम चिंता यह थी कि वह डैमेज कंट्रोल कैसे करे? वह सोच रहा था कि उसने जब यह कर डाला है तब उसका, युवती से क्षमायाचना करना सहायक ना हो सकेगा। उसके द्वारा नए सिरे से स्थापित करने वाले विश्वास का विश्वास, युवती अब कर नहीं सकेगी।
अब उसने, कार्यालय में युवती के सामने पड़ने पर स्थिति के बारे में सोचा तो उसके शरीर में झुरझुरी दौड़ गई कि कैसे वे दोनों परस्पर एक दूसरे का सामना कर पाएंगे? यदि उनमें अब संभावित, अन बोला हुआ तो कार्यालय में सब संदिग्ध हो उन्हें देखेंगे कि इनमें कल तक तो खूब बातें होती थी, अब क्या हो गया है? निश्चित ही लोग तरह तरह की बात करेंगे।
वह सोचने लगा कि यदि युवती ने, कार्यालय में बॉस या किसी अन्य से कह दिया तो उसकी कितनी छीछालेदार होगी। एक नए विचार ने उसके शरीर में फिर झुरझुरी उत्पन्न कर दी कि कहीं वह, पुलिस में रिपोर्ट तो नहीं कर देगी या एचआर विभाग में लिखित शिकायत तो नहीं कर देगी?
अगर ऐसा हुआ तो वह तो कहीं का ना रह जायेगा। इस विचार ने सहकर्मी को भयाक्रांत कर दिया कि ऐसे में नेहा एवं बच्चों का क्या होगा?
नेहा का ध्यान आते ही वह इस विचार से घबरा गया कि अब तक युवती ने, नेहा को मोबाइल पर बता तो नहीं दिया होगा? अगर युवती ने ऐसा कर दिया हो तो, क्या बीत रही होगी नेहा के दिल पर?
ओह! ओह! अब सहकर्मी को दिख रहा था, जिस मित्र ने उकसावे से सब करवा दिया था वह, कहीं भी उसकी कोई सहायता ना कर सकेगा। उसे अब लग रहा था कि वह ताल की तरफ मुंह करके चिल्ला चिल्ला कर कहे कि - मैं मूर्ख हूँ, मैं महामूर्ख हूँ, मैं दुनिया का सबसे बड़ा मूर्ख व्यक्ति हूँ।
इस तरह बेचैन होकर वह, ताल के जल के पास गया था। उसे विचार आया कि क्यों ना वह उसमें डूब मरे? फिर उसने सोचा कि इतनी ‘गंदी करतूत’ के बाद वह ताल में डूब मरेगा तो ताल का पानी कितना गंदा हो जाएगा।
तब स्वयं को उसने, किसी तरह दिलासा दी थी। फिर हाथों में ताल का जल लेकर अपने सिर पर डाला था। इससे मस्तिष्क में ठंडक पहुंची थी। तब उसके विचार, निराशा से थोड़े उबर सके थे।
अब वह सोचने लगा था कि सिर्फ हाथ पकड़ लेने की रिपोर्ट कराने युवती, ना तो थाने जाएगी और ना ही, वह एचआर में लिखित शिकायत देगी। राहत देने वाले इस विचार के साथ तब भी, पूरा अंदेशा यह था कि युवती, नेहा को तो अवश्य बता चुकी होगी या अभी नहीं भी बताया है तो जल्दी बता ही देगी।
अब वह ऐसे अपराधी जैसा सोचने लगा था जो, अपराध तो कर लेता है मगर अपने अपराध को स्वीकार करने का साहस नहीं करके, किसी बहाने की आड़ लेकर अन्य को जिम्मेदार बताता है।
अब उसे लगा कि उसे अपने घर लौटने में कोई विलंब नहीं करना चाहिए। यदि युवती ने अब तक, नेहा को नहीं बताया है तो उसे खुद नेहा को प्रथम सूचना देनी चाहिए ताकि नेहा, युवती द्वारा बताये जाने पर उसका विश्वास ना करे।
इस विचार से वह उठा था। बाइक स्टार्ट कर तेजी से घर की तरफ बढ़ गया था। कॉलबेल बजाते हुए अपने हाथ में उसने, कँपकँपी अनुभव की थी। नेहा ने नित दिन की तरह ही सहकर्मी को आया देख, ख़ुशी से मुस्कुरा कर स्वागत किया था फिर पूछा था - आज, आपने देर कर दी आने में?
तब उसे राहत अनुभव हुई कि कम से कम नेहा अभी तक कुछ नहीं जानती है। सहकर्मी ने उत्तर में कहा -
नेहा, चाय बना लाओ। चाय पीते हुए मैं, तुम्हें कुछ बताना चाहता हूँ।
नेहा ने कहा - जी, अभी बनाती हूँ आप मुंह हाथ धो लो और चेंज कर लो तब तक।
बच्चे आपस में दूसरे कमरे में खेल रहे थे। तब सहकर्मी, नेहा को बता रहा था -
नेहा तुम विश्वास ना कर सकोगी। मेरी सहकर्मी और तुम्हारी मित्र उस युवती ने आज, बहाना किया कि उसकी स्कूटी ख़राब हो गई है। मुझसे कहा, मुझे घर तक छोड़ दो। मैंने बाइक पर उसे, पीछे बिठाया था। वह पूरे रास्ते मुझसे ऐसे चिपटते रही जैसे कभी कभी कॉलेज के लव-बर्ड चिपटते दिखाई देते हैं। मेरा तो उसने बाइक चलना मुश्किल कर दिया था। कठिनाई से मैं जैसे-तैसे उसे, उसके घर पर ड्राप करके आया हूँ। मुझे देर भी इसीलिए हो गई है।
नेहा के चेहरे पर परेशानी के भाव आये थे। उसने कहा -
आप कपड़े वाशिंग मशीन में डाल दो। अभी ही स्नान भी कर लो। बिलकुल यूँ जैसे आप किसी अंत्येष्टि से लौट कर करते हो।
सहकर्मी ने कहा -
हाँ, यह सही कहा तुमने। मैं अभी यह करता हूँ। मगर हो सकता है तुम्हारे पूछने पर वह, अपनी हरकत की, तुमसे कोई मनगढ़ंत बात बनाने लगे। तुम, युवती से कुछ ना कहना।
सहकर्मी फिर, अपनी होशियारी की स्वयं मन ही मन दाद देते हुए नहाने चला गया था। यह उसका भ्रम था कि उसने, नेहा को बना दिया है।
पूरी बात सुनकर भी नेहा ने, पति की बात का विश्वास नहीं किया था। नेहा, युवती को अच्छे से जानती थी। युवती का टाइप, ऐसा था ही नहीं। नेहा ने क्राइम पेट्रोल के बहुत एपिसोड देखे थे। वह अपने पति को, झूठा अनुभव कर रही थी। तब भी पति के सामने नेहा ने यह प्रदर्शित नहीं होने दिया था। उसने भावना अधीन कुछ करने के स्थान पर बुद्धिमत्ता से समाधान खोज निकाल लेना तय किया था।
उस रात सहकर्मी ने पत्नी नेहा को अपनी और खींचा था। तब नेहा ने, युवती जैसे ही उसकी पकड़ से अपने को छुड़ा लिया था और कहा -
आपने शाम को जो बताया है उससे, मन ठीक नहीं है। आज नहीं …