Average Girl

Romance

5.0  

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कार का शीशा- अन्तिम कड़ी

कार का शीशा- अन्तिम कड़ी

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साधना थोड़ा सोचते हुए बोली, "तिवारी जी के यहाँ से ?" फिर नील गेट के पास आके बोला, "जी हमें तिवारी जी ने कहा है कि आस पास वालों से पूछ ले कि सबके पास वोटर कार्ड है या नहीं, वरना हम लोग मदद करके बनवा दे।" इतना कहने में ही नील के हाथ पैर काँप रहे थे। कुछ रैलियों में उसने भाषण दिए थे उसमे भी उसको इतना डर कभी नहीं लगा जितना कि आज लग रहा था। कुछ सोच के साधना ने गेट खोला और बरामदे में रखी कुर्सी पे बैठने का इशारा किया। मैं और मेरा ड्राइवर दोनों ही बैठ गए। दिल की धड़कनें अभी भी तेज़ ही थी। साधना ने सन्नाटा तोड़ते हुए कहा, "हाँ, तो क्या पूछने था हमसे ?"

नील ने एक लम्बी साँस ली और ड्राइवर को नोटबुक खोले का इशारा किया। "हाँ तो कितने लोग हैं घर में ? सबके पास वोटर्स कार्ड हैं ?" नील ने पूछा। " जी, हम पाँच लोग हैं.. मम्मी, पापा, मैं, दादी और मेरा बड़ा भाई जो दिल्ली में रहता हैं और हम सबके पास कार्ड है पर अभी मैं नहीं दिखा सकती क्यों की सब पापा के पास हैं और मम्मी पापा अभी बाहर गए हैं।"

साधना ने भी एक साँस से सब बोल दिया। फिर सबके नाम अभी नोटबुक पे लिखवा ही रहा था कि अंदर से आवाज़ आई, "दीदी, कहाँ को कब से ?" और सामने वहीं छोटा लड़का खड़ा था। मुझे देख के वो थोड़ा घबराया और अपनी दीदी के तरफ देखा। दोनों में आँखों से कुछ इशारे बाजी हुई जो कि नील ने देख के अनदेखा करने की कोशिश की पर हाँ उसने इस बात पे ध्यान जरूर दिया। साधना फिर बताया कि वो अभि है उसके बुआ का लड़का, छुट्टियों में आया हुआ है। घर बहुत दूर नहीं है इसीलिए अक्सर ही आ जाता है। अभि थोड़ा नोटबुक में देख के बोला, "आप मेरा कार्ड बनवा सकते है क्या ?" नील मुस्कुराते हुए बोला, "बिल्कुल बस आप १८ साल के हो जाओ तो मैं ही बनवा दूँगा।" "पर मुझे अभी वोट देना है, मेरा फेवरेट नेता अभी चुनाव लड़ रहा, मेरे बड़े होते होते वो संन्यास ले लिया तो.." उसकी बातें सुन के सभी हँस पड़े। उसकी बातों से माहौल थोड़ा हल्का हो गया था। "चुप कर, कुछ भी बोलता हैं।" साधना भी हँसते हुए बोली। अभि उसका सबसे अच्छा दोस्त लग रहा था। फिर तो बस अभि ही बोल रहा था हम लोग सुन रहे थे उसकी बात और मुस्करा रहे थे। थोड़ी देर बाद नील उठा और अपना कार्ड साधना को देते हुए बोला, "कोई भी जरूरत हो तो बता दीजिएगा।"

"और एक कार्ड आप भी रखिए अभि जी, भविष्य में काम देगा।" कह के नील ने कार्ड अभि को भी पकड़ाया। वो दोनो नील को गेट के बाहर छोड़ने आए। "बाय बाय नील भैया, फिर से आइएगा" अभि ने चिल्ला के बोला। नील ने भी पीछे मुड़ के हँसते हुए हाथ हिला दिया।

नील सिर्फ इतने में ही खुश था कि कम से कम उसने उससे बात की। अब वो दोनों एक-दूसरे से अनजान नहीं थे। साधना से मिल के उसको लगा कि वो बिल्कुल वैसी ही लड़की थी जैसे उसने पहली बार देख के अंदाज़ा लगाया था। शांत थी स्वभाव की थोड़ी। ज्यादा बात करना उसको पसंद नहीं था। वो तो घर के अंदर सिर्फ तिवारी जी के नाम पे आने दिया वरना तो गेट से ही विदा हो जाते वो लोग। कभी कभी कोई चीज हमें दूर से ही बहुत अच्छी लगती है पर हम उसको पाने की इच्छा नहीं रखते। जैसे रात के चाँद और तारे हो, हम उन्हें दूर से ही देख के खुश रहते हैं और उनके पास कम ही लोग जाना चाहेंगे। वैसे नील अपनी उस बहादुरी वाले काम से इतना खुश था कि अब उसको कोई कामना नहीं बची थी। वो इतने में ही खुश था कि अब अगर साधना से कभी आमना सामना होगा हुआ तो दुआ सलाम तो हो ही जाएगी। इसी ख़ुशी में ३ महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला उसे। एक दिन दोपहर में किसी बिना नाम वाले नंबर से नील को कॉल आया। वो ऑफिस से बाहर आके कॉल उठाया तो उधर से आवाज़ आई, "हेल्लो कौन बोल रहा हैं ?" किसी बच्चे की आवाज़ लगी नील को, "आप बताइए, कॉल आपने किया है, किस से बात करनी है आपको ?

मैं नील दिवेदी बोल रहा हूँ।" इतना कहना था कि उधर से आवाज़ आई, "अरे नील भैया आप है, मैं अभि बोल रहा हूँ। तिवारी जी के घर के पास से। ये नंबर ना..." तभी पीछे से उसको किसी ने आवाज़ दी, "मेरा मोबाइल लेके किसको कॉल कर रहे अभि, दो मुझे कुछ काम हैं..." तभी कॉल कट हो गया। नील बिल्कुल आश्चर्यचकित था.. क्या ये साधना का नंबर था ? अभि ने मुझे क्यों कॉल किया ? क्या जरूरत पड़ी थी ? और ना जाने क्या क्या सवाल उठ रहे थे उसके मन में।

नील के उन सवालों का जवाब शायद बस साधना या अभि के पास ही मिले। पर नील में ये बिल्कुल हिम्मत नहीं थी कि वो उसी नंबर पे दुबारा काल करे। उसमे ये हिम्मत उस घटना के २-३ हफ्ते बाद भी नहीं आई। फिर उधर से भी कभी कोई कॉल नहीं आया। एक दिन फिर नील को उस शहर जाना हुआ। बढ़ा मिला जुला एहसास हो रहा था उसे। ना खुश था वो और ना दुखी। हाँ पता नहीं पर डर जरूर लग रहा था उसे। कार जब एक बार फिर साधना के घर पास रुकी तो सामने से दो बच्चों के हाथ पकड़ के जाते हुए वो दिखी। इस बार कार देख के वो भी रुक गई थी। बच्चों को गेट के अंदर भेज के वो कार के पास ही खड़ी हो गई। नील जैसे कार से निकला उसने पास जाके "हेल्लो" बोला। साधना ने भी मुस्करा के जवाब दिया और बोली, " मुझे सॉरी बोलना था उस दिन अभि ने आपको कॉल कार दिया था।" नील बोला, " इसमें सॉरी की कोई बात नहीं है, पर वो कॉल करके ये क्यों पूछा की किसका नंबर है.. नंबर तो कार्ड से देख के मिलाया होगा ना" नील किसी जवाब का इंतज़ार था.. उसने जान बूझ के पूछा था ये।

साधना शर्माते हुए बोली, "नंबर मोबाइल में न नाम से सेव था इसीलिए वो चेक कर रहा था..." ये सुन के नील मुस्कराने लगा, " उसने पूछा एक दिन आप रो रही थी छत पे, क्यों ?" साधना ने आश्चर्य से पूछा, "आपको कैसे पता ?" नील, " पहले जवाब"। साधना बोली, "उस दिन बेहस हुई थी मेरी सबसे घर में, शादी के बात पर। मेरा गुस्सा देख के अब सब शांत है। आपने कब देखा था.."नील ने पूरी बात सुनने से पहले ही बोला, "आपको क्या लगता सिर्फ आप ही छत पे खड़ी होकर मेरा इंतज़ार करती थी..."


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