अजनबी
अजनबी
' कितने सारे लोग इस समय, अपने अपने घर से निकलते हैं। कोई ऑफिस, कोई कॉलेज, कोई स्कूल, कोई मेरे जैसे कोचिंग जाने के लिए।'ऑटो में बैठ कर अक्सर रीत अपने ख़यालो में ही गुम हो जाती हैं। लगभग १ घंटे लगते हैं उसको अपने घर से कोचिंग जाने में। उस एक घंटे में अपने ख़यालो की दुनिया में पता नहीं कहां कहां घूम आती हैं रीत। ऑटो में बैठ कर उसे फोन पे किसी से बात करना पसंद नहीं था। उस समय में वो खुद से ही बात करती हैं। खुद के साथ समय बिताती हैं। आस पास का शोर भी उस परेशान नहीं करता था। आदत हो गई थी उसको इस शोर की।
' ये आखिरी बार कोशिश करूंगी एग्जाम क्लियर करने की। वरना कब तक पैसे बर्बाद करूंगी पापा मम्मी का। कोचिंग की इतनी फीस ऊपर से आने जाने का खर्चा। कितने पैसे बर्बाद करवा रहीं खुद पे। नहीं बस ये आखिरी बार हैं। फिर कोई जॉब ढूंढ़ ही लूंगी। घर वाले चाहे जितना भी बोले.. पता हैं मुझे आर्थिक तंगी हैं। भाई को भी अच्छी जगह एडमिशन दिलवाना हैं। उसको कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं करने दूंगी।'
यही सब सोच रही थीं रीत की ऑटो रुक गई। कुछ लोग उतरे और एक औरत अपने २ बच्चों और एक रीत की उम्र की लड़की के साथ बैठी। रीत की उम्र की लड़की ने अपने गोद पे कुछ झोले रखे थे। उस औरत ने अपने ४ साल के लगभग बेटे को गोद में बैठाया था। वहीं ६-७ साल की लड़की ऑटो में खड़ी थीं। रीत को दया आई, उसने बोला, " आओ मेरी गोद में बैठ जाओ"
बच्ची ने एक बार रीत को देखा और फिर अपनी मां को। मां ने सिर हिलाया तो रीत के गोद में बैठ के बोली ," थैंक यू दीदी"। इतने प्यार से उसने बोला और उसके बोलने के ढंग से भी लगा की ये इस शहर की तो नहीं हैं। उसकी मां को भी देख के यही खयाल आया कि ये लोग जरूर बाहर किसी बड़े शहर से आए हैं। लोगों को देख के, उनके हाव भाव देख के, रीत को उनके बारे में कयास लगाना आदत थीं । कौन परेशान दिख रहा, कौन खुश, क्यों खुश होगा क्यों दुखी, ये सब खुद में ही सोचती थीं। लेकिन कब.. जब अपने ही विचारों से परेशान हो जाती। जब उसको लगता की अब वो नेगेटिव सोच रही जायदा ही।
" मम्मी मुझे मोबाइल दो ना, गेम खेलना है"
" आयुष, मैंने बताया ना की बैटरी कम है, मम्मा को बिल्कुल टाइम नहीं मिला चार्ज करने का। अभी जहा जा रहे, वहां चार्ज कर के दे दूंगी। तब तक चुप चाप बैठो, समझाया था ना मैंने।"
फिर वो बच्चा चुप ही था पर थोड़ी देर बाद फिर चुप्पी तोड़ के बोला, "मम्मा बहुत तेज़ प्यास लगी हैं, पानी दो ना"
उसकी मां ने, साथ आई लड़की से पानी के लिए पूछा तो उसने बताया की वो पानी का बॉटल रखना भूल गई। "बस थोड़ी देर में हमलोग वहां पहुंच जाएंगे आयुष फिर खरीद दूंगी मैं बॉटल।"
पर उस बच्चे को शायद बहुत तेज़ प्यास लगी थीं। वो रोने लगा तो रीत से देखा नहीं गया। उसने अपने बैग से बॉटल निकाल के, उसके मां को देते हुए कहा, " ये पिला दीजिए बच्चे को, ट्रैफिक है तो टाइम लगेगा और ये आरो का ही पानी हैं।"
उसकी मां ने झेप्ते हुए लिया बॉटल को अपने लड़के को पिलाया। लड़की, जो की रीत के गोद में बैठी थीं, उससे भी पूछा। उसने भी थोड़ा पिया। "थैंक यू" उसकी मां ने बोला अब
।
"आप कहां जा रही हैं?" उसने रीत से बात करना चाहा।
"जी, हनुमान जी के मंदिर के पास मेरी कोचिंग हैं वहीं,और आपलोग?"
" मंदिर के कुछ दूरी पे जो हॉस्पिटल और मेडिकल कालेज हैं वहां"
"कौन एडमिट हैं वहां?"
"मेरा छोटा भाई"
रीत ने आगे कुछ पूछना सही नहीं समझा। वो पूछना तो चाह रही थी पर पूछ नहीं पाई। तभी उन्होंने खुद बताया कि"किडनी फेल हो गई है उसकी। किसी ने कभी सोचा भी नहीं था कि घर के सबसे छोटे सदस्य के साथ ऐसा होगा। पिछले १ हफ्ते से डायलिसिस पे है पर पता नहीं क्यों उसकी हालत इतनी खराब हो गई। मुझे कोई कुछ बताया ही नहीं बस कल बोला गया कि आके देख लो उसे वरना फिर देख नहीं पाओगे।"
ये बोल के उनका गला रूंध गया। उन्होंने रीत को ये सब कुछ क्यों बताया, ये रीत को भी समझ नहीं आया। शायद वो खुद भाप गई होगी रीत के हाव भाव से।
"मैंने कैसे कैसे फ्लाइट का इंतजाम करके, कल रात को अहमदाबाद से यहां रात में आयी हूं। इन दोनों को अकेले लेके। आखिरी बार छोटे भाई को देखने। रास्ते भर बस प्रार्थना कर रही थी कि कोई जादू हो जाता, भगवान दया दिखा देते और ठीक कर देते उसको। पर घर आके पता चला कोई चांस ही नहीं। सारे डॉक्टर जवाब दे दिए हैं।"
ये कह के वो थोड़ी देर रुक गई जैसे हिम्मत जुटा रही हो बोलने के लिए।
"जनवरी में आया था मेरे ससुराल गुजरात में। बोला था दीदी, तुम मुझे प्रोमिस करो की मुझे तुम भेजोगी बाहर कहीं घूमने के लिए। कॉलेज ख़तम होने के बाद और नौकरी ज्वाइन करने से पहले, मैं एक बार एक महीने के लिए बाहर घूम आना चाहता हूं। ये सिर्फ तुम ही पूरा कर सकती हो। बाकी लोग मुझे बच्चा ही समझते है। जाने ही नहीं देंगे। घूम के लौटकर सीधे तुम्हारे पास आउगा राखी वाले दिन। ढेर सारे गिफ्ट्स के साथ। पर राखी तो पिछले हफ्ते ही बीत.. हॉस्पिटल में ही था वो।"
रीत को बिल्कल समझ में नहीं आराहा था कि वो क्या बोले कैसे समझाए उनको। वो तो खुद अपने आंसू रोक रही थी।
"आप जाइए मिल आइए उनसे। क्या पता आप के जाने के बाद हालात में सुधार आ जाए। कब कौन सी दुआ कब काम आजाए नहीं बोल सकते। कभी कभी देर हो जाती है भगवान को सुनने में।"
बस इतना ही बोल पाई रीत। उस औरत ने रीत की तरफ देखा कर एक फिक्की सी मुस्कान दी। तभी ऑटो चालक ऑटो रोक के बोला, "हनुमान मंदिर आगया है।""मुझे यही उतरना है अब। खयाल रखियेगा अपना भी सबका भी।" रीत उतरते हुए बोली।
बच्चो ने और उनकी मां ने हाथ हिलाते हुए बाय बोला। रीत भी, मुस्कराने की नाकाम कोशिश करके, हाथ हिलाया। फिर ऑटो आगे बढ गई।हनुमान मंदिर के बाहर खड़े होकर, रीत ने हाथ जोड़े और बस यही मांगा भगवान से की उनके छोटे भाई को ठीक कर दीजिए।
बहुत कम होता है कि हम किसी अजनबी के लिए दुआ करते हैं। अपने परेशानियों में इतने उलझे रहते है की दूसरों की परेशानी के तरफ नजर भी नहीं डालते। पर कभी कभी उनका दुःख हमारे से बहुत ज्यादा होता हैं।उस दिन रीत ने यही सोच के भगवान से मांगा। क्या पता भगवान किसी अजनबी की प्रार्थना जल्दी सुन ले, उनके छोटे भाई के लिए। रीत का निस्वार्थ भाव देख के।