पहला ऐहसास
पहला ऐहसास
ऑफिस से आज घर जल्दी लौट रही थी । वापसी में स्कूल के छात्र छात्राओं को देखते ही मुझे अपने स्कूल के दिन याद आ गए। घर वापस आकर मम्मी ने खाना दिया। खाना खा के जैसे ही बेड पे आराम करने बैठी तो स्कूल के पुरानी यादों में ढूब गई।
बहुत ज्यादा सीधी साधी सी थी मैं। मैं यहां अपनी तारीफ़ बिल्कुल नहीं कर रहीं। सीधी साधी से मेरा मतलब बिल्कुल दब्बू किस्म से था। डरी सहमी सी रहना, दोस्तों के अलावा किसी से बात करने की हिम्मत ही नहीं होती थीं मेरी। आत्मविशवास जैसी चीज तो थी ही नहीं मेरे में। नजरें मेरी उठती ही नहीं थीं। अब सोचती हूं तो लगता है कि काश उस समय से ही किसी ने बताया होता की ऐसे रह के कुछ नहीं मिलने वाला दुनिया में, तो शायद खुद को बदलना शुरू करती उसी वक़्त से।
किताबों के बाहर जो दुनिया थी उससे डर ही लगता था। २-३ दोस्तों के साथ खुश ही थीं। पर हाईस्कूल के बाद बाकियों की ज़िन्दगी में बहुत कुछ चल रहा था। सबको कोई ना कोई पसंद आ रहा था। शायद कई को पहले प्यार का एहसास होने लगा था। आकर्षण बढ़ रहा था एक दूसरे से। वहीं मैं थी। दूर से इन सबको देख रही थी और जानती थी कि मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं होने वाला। सिर्फ दोस्तों की कहानी सुनती थी कि किसने बात करने की कोशिश की उनसे, किससे बात हुई उनकी। फ़ेसबुक अभी भी नया ही था उस समय। तो ये सारी बातें बस सुनने भर थी मेरे लिए। मुझे पता था कि मैं किसी से बात नहीं कर सकती और ना कोई मुझसे। बहुत कम लोग जानते भी थे मुझे , बहुत साधारण सी दिखने में भी थी तो मैंने कोई किसी से उम्मीद भी नहीं की थी।
साइंस स्ट्रीम के बायो में थी मैं। लड़कियां ही ज्यादा थी और गिनती के लड़के। बहुत सारे प्रैक्टिकल ऐसे थे कि लड़कों को मदद लेनी ही पड़ती थी लड़कियों की। मैं किसी की मदद क्या करती मुझे तो खुद मदद लेनी पड़ती थी। पर लेती भी थी तो अपने दोस्तों की। उस दिन भी कुछ खास हुआ नहीं था। बस ब्लेड से जब एक तने का सेक्शन काट रही थी, तो हाथ ही काट लिया। खून बहने लगा। आंखो में आंसू आ ही गए थे, कुछ और समझती तब तक किसी ने लाइफबॉय साबुन सामने रख के और नल खोल के बोला " ये लाइफबॉय लगा के हाथ धो लो खून रुख जाएगा।" मैंने देखा कौन है तो ये वही था मेरे बाद का रोल नंबर वाला लड़का। मैंने वैसा ही किया तब तक टीचर आगई तो उन्होंने कोई क्रीम भी लगा दी।
बात बहुत बड़ी तो नहीं थी पर मेरी मदद पहली बार किसी लड़के ने की थी। या फिर मैंने पहली बार किसी लड़के की मदद ली थी। अजीब मुझे भी लगा पर अच्छा भी, कि किसी ने मेरे ऊपर ध्यान दिया था, शायद पहली बार। मैं तो वैसे भूलती नहीं पर दोस्तों ने तो भूलने ही नहीं दिया। उनको जैसे कोई चाभी मिल गई हो मुझे छेड़ने की। लैब से बाहर आते ही सब ने बोलना शुरू कर दिया कि देखो वो ध्यान दे रहा था तुमपे, हमलोग को तो पता ही नहीं था कि वो जनता है तुम्हे, कैसे दौड़ते हुए मदद करने आया तुम्हारी वगेरह वगेरह। इतना कुछ उन्होंने बोला की मुझे भी लगा कि ऐसा क्यों किया उसने। मैंने तो कभी बात ही नहीं की थीं उससे। फिर क्यों..
जब आप ने किसी चीज़ की उम्मीद ना की हो और वो हो जाए आपके साथ तो कैसा महसूस होता हैं.. अच्छी चीज़ हुई हो तो अच्छा ही लगता हैं वैसा ही कुछ हुआ था मेरे साथ। मुझे लगने लगा था की वो शायद ध्यान देता है मुझे। क्यों कि अक्सर ही कुछ ना कुछ पूछने आ जाता था। प्रैक्टिकल एग्जाम में एक दूसरे कि मदद करते थे। पढ़ाई को लेकर भी बात हो ही जाती थी। उसने मुझे से कोई बात की नहीं की , दोस्त लोग को मौका मिल जाता था चिढ़ाने का। मैं बस मना ही करती थी और वो लोग मुस्काती ही रहती थीं। पूरा २ साल इसी में बीत गया। मैं उनको यही समझती रहती थी कि ऐसा कुछ नहीं है पर वो सुनती ही नहीं थीं। मुझे नहीं लगता उस लड़के को इस बात की भनक भी थीआ। अच्छा ही था मेरे लिए वरना मैं फिर कभी बात ही नहीं कर पाती । वो सब कुछ बिल्कुल गुलाबी सा था पर बहुत कम समय के लिए था..
धीरे धीरे स्कूल का आखिरी दिन भी आ गया। मुझे उम्मीद थी कि शायद आज हमारी कुछ लम्बी बात हो। पढ़ाई के अलावा भी.. सारे घंटियां उस दिन बहुत जल्दी लग रही थी। सब अपने दोस्तों के साथ समय बिताने में लगे थे। सबको पता था कि अब हम ऐसे कभी नहीं मिलेंगे। सिर्फ स्कूल के दोस्त ही रह पाएंगे। मैं भी व्यस्त थी वो भी व्यस्त था। पर मैं इंतज़ार में भी थी। पर..फिर मैंने उसको क्लास की एक लड़की के साथ अकेले बात करते देखा.. दोनों मुस्करा रहे थे। मैं समझ गई.. खुद को संभाला और दोस्तों को दिखाया "देखो तुमलोग को कितनी बड़ी गलतफहमी हुई थी.. मुझे उसके साथ जोड़ती थीं ना देख लो..मैं मना करती थी ऐसा कुछ नहीं है.. अब तो विश्वास कर लो।" इतना कह के अपने आंसू को मज़ाक में छुपा दिया। एक एहसास ख़तम हो रहा था। और किसी को खबर भी नहीं होने दी।
६ साल बाद ये किस्सा अचानक से याद आया तो सिर्फ एक हल्की सी उदास मुस्कराहट आ गई चेहरे पे। अब वो कहां है पता नहीं मुझे। और उसको पता नहीं वो मेरे इस किस्से में शामिल है।