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Arushi Srivastava

Drama Romance

3  

Arushi Srivastava

Drama Romance

अलग होते रास्ते

अलग होते रास्ते

5 mins
317

मीरा आज भी देर से ऑटो स्टैंड आई थी। एक ऑटो से उतर के दूसरे ऑटो को लेने तक वो ना जाने कितने लोगो के चेहरे को देख चुकी थी। उन लोगो में वो बस एक जाने पहचाने चेहरे को ढूंढ़ रही थी। वो जफर को ढूंढ रही थी। आज पूरे ५ महीने हो गए थे मीरा को जफर से मिले हुए। पता नही क्या हो गया था जफर को..वैसे तो हर दूसरे या तीसरे दिन ऑटो स्टैंड पे मुलाक़ात हो जाती थी उनकी और वो साथ में यूनिवर्सिटी जाते थे। पर इस बार इंतज़ार ज्यादा ही लंबा हो गया था मीरा के लिए। अब तो आखिरी साल के इम्तिहान भी पास आ रहे हैं और उसके बाद उनका मिलना शायद ही कभी हो पाए।


इतना सब सोचते हुए मीरा दूसरी ऑटो में बैठ गई। रास्ते भर उसको जफर याद आता रहा। एडमिशन के कुछ दिनों बाद ही वो पहली बार मिली थी उससे।


"क्या तुम संत जोंस स्कूल से पढ़ी हो? साइंस सेक्शन से?" ऑटो में अचानक पास बैठे लड़के ने मीरा से पूछा।


मीरा घबरा कर बोली, "हाँ पर आप कौन हो? कैसे जानते हो?"


लड़का बोला, "मैं भी वहीं से पढ़ा हूँ और हम एक ही साथ निकले हैं.. शायद तुम जानती नहीं होगी मुझे.. मैं रूही के साथ बस में जाता था और आर्ट्स सेक्शन में था। तुमको उसी के साथ देखा हूँ इसीलिए तुम जानी पहचानी लगी।"


मीरा याद करते हुए बोली, "तुम जफर हो क्या?"


जफर मुस्कराते हुए बोला," हाँ"


अब मीरा को याद आ गया कि ये वहीं जफर हैं जिसकी तारीफ रूही हमेशा करती रहती थीं।


"तुमने भी यही एडमिशन लिया हैं?" मीरा ने पूछा।


"हाँ आर्ट्स में, पर मैं अक्सर बस से जाता हूँ आज लेट हो गया था तो ऑटो ले ली। पर अच्छा ही हुआ कि लेट था वरना तुम मिलती ही नहीं।"


२ साल पहले की ये मुलाक़ात मीरा को आज भी ऐसे याद है जैसे कल की ही बात हो। उसके बाद तो दोनो अक्सर उस ऑटो स्टैंड से यूनिवर्सिटी तक साथ जाते फिर उसके बाद अपने अपने फैकल्टी। रास्ते भर उनकी कितनी सारी बातें हो जाती थी। देश दुनिया, साइंस, राजनीति, खेल हर तरह की बातों पे इन दोनों के बीच चर्चे होते जिसमें अक्सर ऑटो के और भी लोग शामिल हो जाते थे। इन दो या ढाई सालों में मीरा को जफर के बारे में सिर्फ इतना ही पता चला था कि उसका सपना हैं आईएएस ऑफिसर बनने का और पढ़ाई ख़त्म होते ही वो दिल्ली चला जाएगा तैयारी करने। मीरा और भी कुछ जानना चाहती तो थीं पर कुछ पूछने की हिम्मत नहीं हुई उसकी। और ना ही जफर ने उससे कुछ ज्यादा पूछा ही। मोबाइल नंबर तक नहीं था दोनो के पास एक दूसरे का। जफर का तो पता नहीं पर मीरा को, उस रास्ते के कुछ पलों का साथ ही, बहुत अच्छा लगता था। मीरा के लिए जफर अब तक दोस्त से कुछ ज्यादा हो गया था पर जफर का पता नहीं...


आज फिर से मीरा लेट आई और कुछ देर ऑटो स्टैंड पे इंतज़ार की। जैसे ही एक ऑटो में बैठने जा रही थी कि पीछे से जानी पहचानी आवाज़ सुन के रुक गई। पलट के देखा तो जफर खड़ा था। हल्की सी मुस्कुराहट दोनो के चेहरे पे आईं और जफर बोला, "मैं भी चलता हूँ।"


उस दिन ऑटो में जफर के होते हुए भी दोनो में बिल्कुल बातचीत नहीं हुई। अजीब सी ख़ामोशी थीं दोनो के बीच में। शायद उस दिन का ३० मिनट का रास्ता सबसे लंबा था दोनो के बीच। यूनिवर्सिटी के गेट के पास आकर फिर जफर बोला, "आखिरी पेपर वाले दिन मुझसे मिलोगी क्या? ट्रीट मेरी तरफ से रहेगी!" मीरा ने भी बिना दूसरी बार सोचे हाँ बोल दिया। उसको भी पता था ये शायद उनकी यह आखिरी मुलकात हो।


आखिरी पेपर देने के बाद जफर के बताए जगह पे और उसी टाइम पे मीरा आ गई थी। कैफे में जफर पहले से ही बैठ कर उसका इंतज़ार कर रहा था। मीरा गई, कुछ ऑर्डर करके दोनो एक दूसरे के पेपर के बारे में पूछने लगे। फिर कुछ खामोश पलों के बाद, जफर बोला, " मीरा, कुछ बताना था तुमको और कुछ पूछना भी था। इतने महीनों से इसी कशमकश में था कि ये करूँ या ना करूँ। बहुत हिम्मत करके ये बोलने आया हूँ। तुमको पता है ना कि कुछ ही दिनों में मैं दिल्ली चला जाऊंगा। जाने से पहले तुमसे पूछना चाहता हूँ.. हालाकि तुम्हारा जवाब मुझे पहले से पता हैं पर फिर भी एक कोशिश करना चाहता हूँ.. मीरा.. जानता तो मैं तुमको स्कूल से ही था पर अब पसंद करने लगा हूँ। पहली बार हमारा ऑटो में मिलना क़िस्मत में रहा हो, पर बाद का मिलना, नहीं था। उस रास्ते के कुछ पल इतने खूबसूरत थे की मैं शायद ही कभी भूल पाऊ..अगर मैं आईएएस ऑफिसर बन के वापस आऊँ तो क्या तुम शादी करोगी मुझसे?"


मीरा को पता ही नहीं चला कि कब इतना सुनते सुनते उसको आंखो में आंसू आ गाए थे। हिम्मत करके वो सिर्फ इतना ही बोल पाई, " सॉरी जफर.. तुमको पता हैं ऐसा कभी नहीं हो सकता पर मैं.."


उसकी पूरी बात सुने बिना ही जफर बोला, "मैं पहले से तैयार था इस जवाब के लिए मीरा।" कह के वो खड़ा हो गया.. हाथ आगे बढ़ा के बोला, "तुम परेशान मत होना.. और हो सके तो भूल जाना इस मुलाक़ात को.. इससे ज्यादा देर मैं रुक नहीं सकता..हमारे रास्ते अब अलग हो रहे.. अपना ख्याल रखना।"


मीरा भी हाथ मिलाते हुए, खुद के आंसू रोकते हुए बोली, "दिल्ली बहुत दूर हैं.. तुम भी ख्याल रखना।" सिर्फ इतना ही बोल पाई वो.. और जफर को जाता हुआ देख रही थी। उनके रास्ते अब सच में अलग हो गए थे.. चाह के भी मीरा एक नहीं कर सकती थी..

 


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