Average Girl

Romance

4.8  

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मिलते हैं फिर

मिलते हैं फिर

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"भैया रुकिए.. ये बस प्राचीन दुर्गा मंदिर ही जाएगी ना?"

"हां जी, जल्दी बैठिए"

सीट मिलते ही विधि ने घर पे कॉल करके मम्मी पापा को बताया कि उसे बस और सीट दोनों मिल गई हैं।

बस चल चुकी थी और संयोग से विधि को खिड़की की सीट भी मिल गई। बगल में एक अधेड़ उम्र की महिला बैठी थी। विधि आराम से अपने कानों में इयरफोन लगाया और गाने सुनने लगी। ३ घंटे का सफर इस खिड़की और इयरफोन के साथ आराम से कट जाएगा ये सोच के खुश थी विधि।

बहुत लड़ झगड़ के जा रही थी विधि प्राचीन दुर्गा मंदिर। कोई भेजने को तैयार ही नहीं था विधि को अकेले वहां। पर किसी के पास समय भी नहीं था। पापा अपने काम के व्यस्थ, मम्मी अपने और छोटी बहन पढाई में। पर विधि ज़िद पे अडी थी कि वो जा के रहेंगी। उसने मन्नत मांगी थी कि उसकी पसंदीदा जॉब लगते ही वो मंदिर जाएंगी। आज रविवार के दिन वो बिल्कुल जाने का मन मना ली थीं। उसको लग रहा था कि अब बच्ची वो रही नहीं तो क्यों जाने नहीं देते। अपना ख्याल रख सकती हैं वो। बस जाना हैं दर्शन करके आ जाना हैं। किसी तरह से घर वाले माने थे। तब जाके इस बस में बैठी थी वो। सुबह के ७ बज रहे थे। १० तक पहुंचाने का टाइम हैं। सोच के विधि आराम से आंखे बंद कर ली।

बस रुकी तो उसने आंखे खोली। किसी ढाबे पे रुकी थी बस। उसने पानी की बॉटल निकली और पानी पिया और बाहर देखने लगी।

"आप.."

विधि ने सामने देखा तो एक लड़का खड़ा था।

"आप रितेश जीजा की भांजी हैं ना?"

विधि हैरान होकर बोली, "आप..आप कौन?"

उसने बताया, "मैं मानस, रीति दीदी मेरी बुआ की लड़की हैं।"

विधि ने याद करने कि कोशिश की, "अच्छा हां शायद बाबू के फंक्शन में देखा था आपको।"

"आप अकेले जा रहीं हैं?"

"हां जी अकेले ही।"

तब तक बस चल दी, मानस ने कहा, "ठीक हैं मिलते हैं फिर।" कह के वो पीछे चला गया।

विधि ने सोचना शुरू किया, ' उसने मुझे कैसे पहचाना.. १-२ बार ही देखा हैं.. हां शायद बाबू का फंक्शन पिछले साल ही था इसलिए याद होगा.. चलो कोई तो पहचान का मिला.. अब आराम से सो जाती हूं.. एक डेढ़ घंटे और हैं।'

आखिर में विधि की बस मंदिर के परिसर में आ ही गई । विधि नीचे उतरी तो देखा मानस खड़ा था वहीं। विधि के पास आके बोला, "आप कुछ खाएंगी या दर्शन करेंगी पहले?"

विधि ने कहा, " पहले दर्शन ही"

"ठीक हैं फिर आप महिलाओं वाली लाइन में खड़ी हो जाइए.. काफी लंबी लाइन हैं.. टाइम लगेगा..मिलते हैं फिर।"

बोल के मानस चला गया।

' मिलते हैं फिर?क्या ये अब फिर से मिलेंगे?' विधि ने प्रशाद और फूल माला लिया और लाइन में लग गई। पूरे एक घंटे बाद वो गर्भगृह तक आ पाई थीं। ख़ैर दर्शन करके जैसे ही गर्भगृह से बाहर आयी, मानस वहीं खड़ा था।

" आपने काफी पहले ही दर्शन कर लिया था क्या?" विधि ने पूछा।

"हां वैसे भी महिलाओं की लाइन काफी लंबी होती हैं।" उसने मुस्करा के कहा। ' डिंपल पड़े इसके गालों पर' विधि ने गौर किया।

" आपको बुरा तो नहीं लगेगा अगर मैं साथ रहूँ तो.. आप रिश्तेदार हैं तो अकेले छोड़ देना सही नहीं लग रहा।" उसने कहा।

विधि ने सोचते हुए कहा, " नहीं बुरा लगने वाली क्या बात है।" वो भी मुस्करा दी हल्का सा।

मंदिर में भीड़ बढ़ रही थी तो वो जल्दी से नीचे जाना चाह रहे थे। भीड़ में जगह बनाने के लिए मानस आगे था और विधि पीछे। लगातार धक्का लग रहा था भीड़ का। सीढ़ी के पास आते ही विधि को पीछे से किसी ने धक्का मारा तो वो संभाल नहीं पाई और गिरने ही वाली थी कि मानस ने पीछे मुड़ के उसको पकड़ लिया। बहुत अजीब सा लगा विधि को या फिर शायद दोनों को। मानस ने इशारा किया कि रेलिंग के पास चले फिर वहां आके वो पीछे हो गया और विधि को आगे कर दिया। आगे विधि पीछे मानस.. वो भी एक दूरी बनाए हुए अपने और विधि के बीच की। उस भयानक भीड़ में उसने कैसे वो दूरी बनाई थीं वहीं जानता था। वो पूरी कोशश में था की विधि और खुद को भीड़ से बचा ले। उधर विधि कुछ और ही सोच रही थीं। घर वालो और अपनी दोस्तों के अलावा वो पहली बार किसी के साथ खुद को इतनी भीड़ में भी महफूज महसूस कर रही थीं। ये सोच के ही उसका दिल जोरो से धड़क रहा था। पता ही नहीं चला कब वो लोग नीच आगाए।

"सॉरी" मानस बोला। विधि कुछ बोल ही भी पाई फिर उसने बोला, "कुछ खाने चले"। फिर वो वापस बस के पास आए तो आस पास बहुत सारे ढाबे थे। "उस ढाबे पे चलते हैं.. वहां काफी सही मिलता हैं।" मानस ने कहा और दोनों उधर चल पड़ें। चाय पीते ही विधि ने कहा," सच में बहुत अच्छी हैं चाय, लगता हैं आप कई बार यहां आए हुए हैं.." विधि ने कहा तो मानस ने बताया, "हां अक्सर मम्मी के साथ आता हूं.. इस बार वो तबीयत के चलते नहीं आपाई तो मुझे जबरदस्ती भेज दिया कि जाओ प्रशाद लेके आओ। इसीलिए इस बार अकेले आना पड़ा। और आप?" बस यहां से इनके बातों का सिलसिला जो चला वो रुका ही नहीं। बस में भी साथ बैठ के बातें ही किए ये लोग। मानस ने बताया की कैसे उसकी जॉब लगी और वो मम्मी को मना कर अपने साथ ले गया। पापा नहीं थे तो वो अकेले छोड़ना नहीं चाहता था।

उन दोनों की बीच की जो दूरी थी वो ख़तम होने लगी थी। ऐसा लग रहा था कि ये पहले से एक दूसरे को जानते हो और सालों बाद मिल हो। कितनी सारी बातें थी बताने के लिए। उन्हें समय का अंदाज़ा ही भी लगा कि कब वो अपने मज़िल तक आ गए थे।

तभी विधि ने भी बताया की वो कैसे पढाई ख़तम होने के बाद सरकारी नौकरी की तैयारी करने लगी। एक साल बीतने पर कुछ नहीं निकला तो रिश्तेदार शादी के लिए रिश्ते भेजने लगे कि अब शादी करवा दीजिए।

" पता है मानस.. एक रिश्ता तो रितेश मामा ने ही बताया था। सब लगे हुए थे मुझे मानने के लिए की मैं एक बार लड़के को देख लूं या मिल लूँ पर मेरा शादी का मन ही नहीं था।"

"अच्छा फिर तुमने साफ साफ लड़के को मना कर दिया?"

"नहीं मैं तो मिली ही नहीं। बहुत रोना गाना किया था घर पर तब जाके घर वाले मेरी बात सुने थे।"

"पर मेरे ख्याल से तुमको एक बार मिल लेना चाहिए था। क्या पता वो समझ था तुम्हारी बात और तुमको सपोर्ट ही करता।"

वो लोग अपने बस स्टॉप पे आने ही वाले थे।

"तुम क्या कह रहे हो मानस.. मैं कैसे किसी अनजान इंसान से मिलती। और उससे उम्मीद करती कि समझे वो मुझे।"

बस रुकी और सभी लोग बस से उतरने लगे। मानस ने जाते हुए बस इतना कहा, " अब फिर से वो लोग मिलने को कहें तो मिल लेना.. अब तो जानती हो तुम उस लड़के को.. मिलते हैं फिर.."



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