कार का शीशा - अंश १
कार का शीशा - अंश १
नील के घर में हमेशा से ही राजनीतिक माहौल था इसीलिए उसका भी मन उसी मे रमा हुआ था। कालेज पास करते ही उसने अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उसी पार्टी में सदस्यता ली जिसमें उसके परिवार के अधिकतर लोग थे। पच्चीस बसंत देख चुका नील अपने काम को लेकर बहुत गंभीर था चाहे वो पढ़ाई ही क्यों ना थी। यहां तो बात उसके अपने मन के काम को लेकर थी तो वो और गंभीरता से काम करता था। जल्द ही उसने पार्टी के मुखालय में सभी को मन जीत लिया था। अब तो वो आस पास के शहरों में अकेले ही पार्टी के कार्यालय का काम देखने चला जाता था।
अक्सर उसका प्रयागराज से वाराणसी जाना होता था। कार्यालय के काम के बाद वो कुछ समय के लिए पार्टी के एक बड़े और पुराने नेता के घर अक्सर चला जाता था। अपनी कार को उसको ड्राइवर सहित एक घर के पास खड़ी करके पैदल जाना पड़ता था। वो पहले भी उस घर के पास कार खड़ी करता था, पर उस दिन उसने किसी को छत पे खड़े देखा। एक लड़की को जो की देखने में २३-२४ की लग रही थी और साथ में खड़ा था एक १२-१३ साल का लड़का जो कि उसका छोटा भाई लग रहा था। वो दोनो अपनी छत पे खड़े होकर बात कर रहे थे कि मेरी कार कौन से होगी और उनको कौन सी कार पसंद है। जब तक मेरा ड्राइवर कार घूमा रहा था मेरी नजर उनपर पड़ी। लड़का तो नहीं पर लड़की तुरंत ही लड़के के पीछे छुप गई। मैं जैसे ही कार में बैठा वो सामने की तरफ वापस आ गई। कार के शीशे से मैंने उसको देखा बिल्कुल समान्य सी शक्ल सूरत थी उसकी, बाल बिखरे हुए थे, कपड़े में शर्ट पहनी हुई थी। देख के ही लग रहा था कि खुद पे ध्यान काम ही देती होगी या फिर सजना संवरना पसंद नहीं होगा। जाती हुई कार को खड़ी होके ऐसे देख रही थी जैसे ढूंढ रही हो उसमे किसी को। फिर उसके भाई ने कुछ कहा तो अनायास ही मुस्करा पड़ी। उसकी मुस्कान.. शायद उस लड़की की यही चीज इकलौती नील को अच्छी लगी। तब तक शीशे में देखता रहा जब तक कि आँखो से ओझल नहीं हो गई।
वाराणसी से वापस आए नील को करीब २ महीने से ज्यादा हो गए है। पर वो अब भी उस मुस्कान को भुला नहीं हैं। पता नहीं जब उसके बारे में सोचता तो वो भी मुस्करा देता। आखिर में एक दिन फिर उसको वहां जाने को मिल गया। इतना खुश वो कभी नहीं हुआ था वहां जाने को लेकर जितना आज था। रास्ते भर और वाराणसी के कार्यालय में भी वो यही सोच रहा था कि इस बार वो लड़की उसको दिखेगी या नहीं। कार उसके घर के पास पार्क की तब कोई नहीं दिखा कहीं। दिखता भी कैसे अभी तो धूप थी काफी। ड्राइवर को वहीं छोड़ के नील पैदल नेता जी के घर के तरफ बढ़ा। उनसे मिलने और बात करने में समय का पता ही नहीं चला की शाम के ५:३० कब हो गए। जल्दी में वो वहां से निकला और दूर से उसको आता देख ड्राइवर कार घुमाने लगा। हल्का अंधेरा होना शुरू हो गया था। नील ने छत के तरफ नजर उठा के देखा तो फिर से वहीं लड़की खड़ी थी। पर इस बार उसका ध्यान रोड पर ना होकर कहीं और था। किसी और ही खयाल में खोई हुई थी शायद। कार में बैठ कर मैंने कार के शीशे से फिर उसको जब देखा तो वो रो रही थी..