कार का शीशा - अंश २
कार का शीशा - अंश २
उसको रोता देख के पता नहीं क्या सोच के नील ने ड्राइवर को कार रोकने को कहा। कार कुछ देर वहीं खड़ी थी और नील शीशे के जरिए उसको रोते हुए देख रहा था। फिर लड़की को नीचे से किसी ने आवाज़ दी तो वो चिल्ला के बोली "आ रहे हैं"। आपने आँसू पोछते हुए और लंबी लंबी सांस लेके वो नीचे चली गई। नील ने भी ड्राइवर को चलने के लिए कहा।
वाराणसी से आए हुए उसको एक महीने से ऊपर हो गया है। पिछली बार वो वापस आकर जितना खुश था इस बार बिल्कुल नहीं था वो। भूलने की कोशिश बहुत करता था उस छत वाली लड़की को पर हमेशा यही सोचता रहता कि वो रो क्यों रही होगी। क्या घरवाले उसके साथ अच्छा बर्ताव नहीं करते है? या फिर किसी से झगड़ा हुए होगा?? या फिर कोई खास दोस्त... हर दिन नए नए वजह सोच लेता था नील की क्यों रोई होगी वो। पर फिर उसको लगा कि इतना एक अनजान लड़की के बारे में क्यों सोच रहा है वो। क्या फर्क पड़ता है उसको। किसी तरह वो खुद को ये सब बातें बता के समझा के उसको भूलने की कोशिश करने लगा। अभी चंद हफ्ते हुए ही थे कि फिर से उसको उसी शहर में जाने को कहा गया जहां उसका जाने का इस बार तनिक भी इच्छा नहीं थी। पर वहां के नेताजी यानी तिवारी जी से कुछ जरूरी सिग्नेचर कराने थे तो इसके लिए उसी को चुना गया। बेमन से बिल्कुल जा रहा था नील इस बार।
तिवारी जी से मिल के नील वापस अपनी कार के तरफ बढ़ रहा था कि सामने के मोड़ से वहीं लड़की आ रही थी। इस बार उसने सलवार कुर्ता और बड़ी शालीनता से दुपट्टे को रखा था। बाल भी खुले थे उसके.. पिछले दो बार से जिस लड़की को वो देखा था उससे अलग दिख रही थी आज वो। अभी नील उसको पहचान ही था कि पीछे से कोई औरत उसको बुलाई.."अरे साधना बेटा सुनो"। नील जहां था वहीं खड़ा हो गया। और अपना मोबाइल निकाल के चलाने लगा कि वो व्यस्त दिखे। "साधना" नील ने सोचा। इधर साधना भी उस औरत से बात करके अपने घर के तरफ बढ़ गई थी। और जल्दी वो अपने घर के अंदर चली गई। नील भी कुछ सोच के मुस्कराता हुए अपने कार के तरफ बढ़ गया।
उसका नाम जान के नील इतना खुश था जैसे किसी ख़ज़ाने की चाभी हाथ लग गई हो। अभी कुछ हफ्ते पहले खुद को जो बातें बता के वो समझा रहा था ताकि वो दूर रहे इन बातों से अब वह सब धराशाई होते नजर आ राहे थे। अब तो वो ये सोचने लगा था कि कैसे वो अगली बार जाए तो बात करके आए। बहुत हिम्मत चाहिए थी उसको क्यों की उसने कभी ऐसे किसी लड़की से बात ही नहीं की थी। स्कूल में सवाल ही नहीं था क्यों की लड़कों का ही था बस और यूनिवर्सिटी में भी राजनीति में सक्रिय होने के कारण मौका ही नहीं मिला। कभी कभी कुछ चीज़े अपने आप हो जाती है जिनके बारे में आप कभी सोचे ही नहीं होंगे। नील का भी यही हाल था उसने सोचा ही नहीं था कभी की वो इस चीज के लिए इतना बेचैन रहेगा। खैर होली मिलन का बहाना उसे मिल गया वहां फिर से जाने के लिए।
इस बार तो नील सब कुछ सोच के रखा था कि कैसे क्या करेगा। आखिर में वो दिन आ ही गया। तिवारी जी के यहां होली मिलने इस बार काफी लोग जा रहे थे। नील के पिताजी और बड़े भाई भी थे साथ में। नील को इस बार काम थोड़ा मुश्किल लग रहा था पर वो सोच लिया था कि कुछ ना कुछ इस बार वो ज़रूर करेगा। मोबाइल पर किसी से बात करने के बहाने से वो बाहर आया और सीधे साधना के घर बाहर खड़ा हो गया। ड्राइवर को इशारा किया तो वो भी पेन और एक नोटबुक लेके आके खड़ा हो गया। ड्राइवर ने फिर सीढ़ी चढ़ के बेल बजाई तो आगे के रूम का दरवाज़ा खुला और आवाज़ आयी "कौन हैं"। ये साधना ही थी। ड्राइवर ने कहा कि हम तिवारी जी के पार्टी के कार्यकर्ता है। कुछ पूछना था आपसे...