कानून और व्यवस्था
कानून और व्यवस्था
करोना महामारी के कारण मंच पर सबको स्थान न मिल सका। देवी दयाल भी मंच पर स्थान न पा सके। बहुत से राजनेताओं का गुरूर उन के कद से बड़ा होता है। अतः देवी दयाल ने करोना को कम दोषी माना। संयोजक राधे लाल और स्थानीय विधायक शंभूशरण को अधिक दोषी माना। मुख्य मंत्री के साथ मंच सांझा करने और फोटो खिंचवाने का स्वर्णिम अवसर हाथ से निकल गया था।
यूं भी मुख्यमंत्री उन्हें और उनके गुट को भाव नहीं दे रहे थे । पार्टी में उन्हें अपना भविष्य उज्ज्वल नहीं लग रहा था । वे अपने गुट के साथ विरोधी पार्टी में चले गए। उस कार्यक्रम के बाद देवीदयाल गुट ने मुख्य मंत्री और शंभू शरण के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
देवी दयाल महत्वाकांक्षी तो थे किन्तु अभी तक व्यापक जनाधार न बना पाए थे। किन्तु वे भी राजनेता थे अतः उनके भी कुछ समर्थंक तो थे ही । फसाद तो करा ही सकते थे। वे ऐसे मौके की तलाश में रहने लगे ,जब विधायक शंभुशरण को परेशान किया जा सके।
थोड़े दिनों बाद शहर के एक मोहल्ले में दो पड़ोसियों के बीच झगड़ा हो गया। लट्ठ मारी हो गयी । एक व्यक्ति को अधिक चोट आयी और उसे अस्पताल में भर्ती करना पड़ा ।
देवी दयाल ने मौका लपका । तुरंत घायल व्यक्ति से अस्पताल में मिले । उसके घर वालों से उसके घर पर मिले ।उन्होने अपने समर्थकों के साथ सरकार के खिलाफ शहर की खराब कानून व्यवस्था का हवाला देते हुए प्रदर्शन किया । और शायद कानून व्यवस्था को ठीक करने के लिए उनके समर्थकों ने विधायक के निवास के सामने उग्र प्रदर्शन किया ,रास्ता रोका । कारों और बसों के शीशे तोड़े और पुलिस बल के मौके पर पहुँचते ही भाग गये । देवी दयाल की योजना में इतना ही कार्य शामिल था । देवी दयाल ने अपने समर्थकों को पुलिस से न उलझने की सलाह दी थी । उनका निशाना सिर्फ विधायक शंभूशरण थे। पुलिस भी खुश थी स्थिति आसानी से तुरंत काबू में आ गयी थी ।
शहर की कानून और व्यवस्था पुनः बहाल हो गयी थी ।
