काम वासना
काम वासना
काम वासना के भी देव रहे हैं, हमारे महान भारत मे। उन्हें काम देव कहा गया। काम देव, कामवासना के ज्ञानी और गुरु रहे होंगे।
यानी वो चाहे तो किसी में भी काम की अग्नि प्रज्वलित कर सकते थे। जिन दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति नही होती वो भी कामदेव की पूजा करते हैं ताकि उनकी कृपा से उनमें कोई कमी दूर हो और वो संतान सुख के भागी बने।
आप ईमानदारी से विचार करें और बताएं ,अगर कामदेव की शक्तियां आप में होती तो आप क्या करते? किसी को छूने मात्र से आप उसमें काम जगा सकते ,उसे अपना दीवाना बना सकते, मन चाही आरजू पूरी कर सकते।
अगर आप कोई भी हद लांघते या गलत राह पकड़ते तो आप कामदेव न रहते, फिर आप कामयुक्त दानव होते और हम आपको कामदानव कह सकते हैं।
कहने का अर्थ ये हैं कि हर भाव, वस्तु, बात का सदुपयोग या दुरुपयोग हो सकता हैं। आप कौन सी राह चुनते हैं वैसे ही आपका जीवन बनता हैं।
इतिहास पढ़ने पर यह पता लगता हैं कि कामदेव शादी शुदा थे, उनके अलग से किसी स्त्री के साथ संबंध नहीं थे और वो अपनी पत्नी रति से अत्यधिक प्रेम करते थे।
आयुर्वेद भी, स्त्री पुरुष की यौन संबंधी विकारों और कमजोरियों की कई औषधीय बताते हैं।
काम सूत्र भी पति पत्नी को भोग का पूर्ण आनंद लेने की कला सिखाते हैं। यानी संभोग के समय पूरा ध्यान संभोग में, ना कि ऑफिस, पैसे, लोन आदि आदि चिंताओं में आधा ध्यान भटका हुआ। और स्त्री पुरुष दोनों अपने शरीर को समझे, अपनी कामनाओं को समझे।
इन सब के बाद शास्त्र कहते हैं कि शरीर सुख की एक सीमा होती हैं, इससे आप सम्पूर्ण सुख या संपूर्णता को प्राप्त नही कर सकते। जैसे एक हद के बाद खाया नही जा सकता, कसरत कर भी शरीर को बढ़ाया नही जा सकता, उसी तरह सभी इन्द्रिय सुख की भी सीमा हैं। कान एक हद तक संगीत सुन सकते हैं फिर उन्हें भी विश्राम चाहिए। वैसे ही जिव्हा, नाक, आदि की समताये हैं।
आज के समय या विचारधारा को देख के ये लगता हैं कि इंसान सैक्स कर कर के ही परमात्मा की या अन्तिम लक्ष्य की या संतोष की या शांति की प्राप्ति करना चाहता हैं। उसके लिए इससे महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं, इसके लिए संयम भी नही, कोई मर्यादा ही नही। जैसे ये अनुभव न मिला तो जीवन व्यर्थ या जीवन में यह अनुभव ही सबसे ज्यादा जरूरी हैं।
फिर तो हनुमानजी का, विवेकानंद , आदि महापुरुषों का जीवन व्यर्थ ही था। उनके जीवन में शांति, संतोष व सुख न था क्या?
यहाँ किसी को ब्रह्मचारी होने के लिए उकसाया नहीं जा रहा। जीवन तो राम जी का भी था। नानक देव, कबीर का भी था।
आज हम काम दानव बनते जा रहे हैं, न कि देव। बड़े घर परिवार का सुख, बड़े कुटुम्भ का सुख, विभिन्न रिस्तो का सुख, सब सुख, सब अनुभव एक काम अनुभव की दासता के कारण खोते जा रहे हैं।
भुआ, बड़े पापा, काका, नाना, मामा, फूफाजी, ताईजी, मामीजी, बाईजी, धरम बहन, धर्म भाई, शादी में बड़ा जमावड़ा, ताश के पत्तों के रात भर खेल, बहुत सारी बाते, गप्पे और ढेर सारा आनंद, सारे बच्चे इक्कठे होकर ,उनकी एक फौज बन जाती थी। ये सारे अनुभव खराब या खत्म होने लगे क्योंकि कामनाये मर्यादा तोड़ दानव रूप लेती जा रही हैं।
कभी आपने सुना कि कामदेव ने किसी स्त्री को वश में कर उसके साथ गलत काम किया हो या बलात्कार ही किया हो। आप भी काम के ज्ञानी हो सकते हो पर ज्ञान पाकर काम देव बनो, आयुर्वेद बनो, ना कि काम दानव। दूसरे की स्त्री हथियाने की कोशिश करने वालों को रावण का , राक्षस का ही खिताब दिया गया।
ये बात आपके लिए बड़ी भारी हो सकती हैं, आप कह सकते हैं आदर्शवाद की बाते हैं और आप गैर जिम्मेदार ही रहना पसंद करते हैं या आपको उसमें ज्यादा आज़ादी, आनंद मिलता हैं ,तो ठीक हैं। पर ये अमर्यादित काम की आग जब आपकी बहन, बेटी, पत्नी या माँ तक पहुंचे तो फिर आपको शिकायत नही होनी चाहिये।
गलती सिर्फ मेरी नही थी, ये भी इंटरेस्टेड थी या चाहती थी, ऐसे केस आज कोर्ट का हिस्सा हैं। किसी के चाहने या इंटरेस्टेड होने से आपकी जिम्मेदारी कम नही हो जाती ,आपको मर्यादा लांघने की छूट नही मिल जाती। किसी के चाहने से आपका विवेक कैसे कमजोर पड़ जाता हैं या आप मर्यादा लांघना ही चाहते थे ,बस एक वजह मिल गयी और पकड़े जाने पर एक इंसान, जिस की तरफ इशारा किया जा सके कि गलती इसकी भी थी।
किसी भी वस्तु, बात या अनुभव की एक एस्थेटिक (aesthetic) वैल्यू होती हैं। अपनी मर्यादा, संयम तोड़ हम उसे गन्दा बना देते हैं। फिर मनुष्य की इच्छा शक्ति( will power) होने का कोई अर्थ नही रह जाता।