Apoorva Singh

Romance Action

4  

Apoorva Singh

Romance Action

जो भी है यही है।।

जो भी है यही है।।

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'रूही!रूही! कहां हो तुम। 'एक टू रूम रेटेड घर के दरवाजे से आते हुए मनीष ने अपनी पत्नी रूही को आवाज दी। 'रूही,रूही यार कहां हो तुम कबसे आवाज दिये जा रहा हूँ' मनीष ने कहा और जाकर छोटे से हॉल में पड़े लकड़ी के सोफे पर जाकर बैठ गया। 'क्या हुआ मनीष क्यों ऐसे बेसब्रो की तरह चिल्लाये जा रहे हो' यहीं हूँ बस काम में उलझी थी थोड़ा। तुम बताओ तुम क्यों चिल्ला रहे हो। रूही ने कहा तो मनीष खुश होते हुए बोला,'चिल्ला नही रहा डार्लिंग,बस तुम्हे खोज रहा था तुम्हे सरप्राइज जो देना है इसीलिए' मनीष ने कहा और रूही के चेहरे के भावों को ताड़ने लगा। सरप्राइज का नाम सुनते ही रूही उछलते हुए मनीष के पास आ बैठी और कहने लगी 'जल्दी बताओ मनीष,जल्दी बताओ क्या सरप्राइज है। ' रूही की बैचेनी देख मनीष ने अपना बैग उठाया और उसमे से दो ट्रेन टिकट निकाल कर रूही को दिखाते हुए कहने लगा,'रूही ये हमारी ट्रेन की टिकट्स,हम दोनो ही अब हनीमून के लिए मनाली निकल रहे है। मेरी छुट्टी बॉस ने अप्रूव कर दी!तो मैं आज रात की ही दो टिकट्स ले आया। और मनाली में भी रूम बुक कर लिया है। अब तो खुश हो न तुम मनीष ने रूही से कहा। तो रूही कहने लगी खुश नही बहुत खुश हूँ मनीष। शादी के तीन महीने बाद ही सही हम हनीमून पर तो जा रहे है यही बहुत है। 'कहते हुए रूही उठी और मनीष के गले लग गयी। कुछ याद आते ही रूही बोल पड़ी ओहो मनीष मैं तो भूल ही गयी कि अंदर रसोई का काम अधूरा पड़ा है कहते हुए हुए वो उठकर रसोई की ओर भागी। उसके जाते ही मनीष उठा और अपने कमरे में चला गया। वहां जाते ही उसने चेंज किया और पैकिंग करने लगा!कुछ ही देर में रूही भी चली आई और दोनो बातें करते हुए पैकिंग करने लगे। मनीष और रूही एक विवाहित जोड़ा है जो जॉब कर कारण अपनो से दूर एक मेट्रो शहर में रहता है। कुछ ही देर में दोनो की पैकिंग पूरी हुई और वो अपने शहर दिल्ली से मनाली के लिए निकल पड़े। दोनो ने एक सुपरफास्ट ट्रेन पकड़ी और अपनी आरक्षित सीट पर जाकर बैठ गये। मनीष और रूही अपने ही ख्यालो की दुनिया में उलझे हुए थे कि तभी एक आवाज ने दोनो को सामने देखने पर मजबूर कर दिया। 'ओह माय गॉड मनीष तुम यहां' ये आवाज एक कमसिन बला सी खूबसूरत रीवा की थी जो कभी मनीष की सहपाठी और उसका क्रश हुआ करती थी। रीवा को देख मनीष एक बार फिर असहज हो गया। रूही क्या सोचेंगी कि मनीष अब तक रीवा को मन में लिए घूम रहे है।

जबकि वो तो कब का उसे भूल कर आगे बढ़ चुकी है। ये सोचते हुए सहज होने की पूरी कोशिश करने लगा। लेकिन जब अतीत के जख्म हरे हो जाते है तो वो बिना दर्द दिये कहां शांत होते है। रीवा को देख मनीष के जख्म ताजा हो गये और वो फॉर्मल मुस्कान रख वहां से निकल ट्रेन के दरवाजे पर गया। दरवाजे से आते ठंडी हवा के थपेड़े उसके कुरेदे गये जख्म को राहत सी देते महसूस हो रहे थे। मनीष वहीं खड़े हो गुजरते रास्ते को देखने लगा और इनके साथ ही धीरे धीरे वो अतीत में सरकता चला गया। वही अतीत जो करीब डेढ़ वर्ष पहले उसके लिए वर्तमान हुआ करता था। जब वो कॉलेज के तृतीय वर्ष में था!और कॉलेज के सेकण्ड ईअर में अपना ट्रांसफर लेकर रीवा आयी थी। किस तरह रीवा के आने से कॉलेज में जैसे रौनक चली आयी थी। वो जहां से गुजर रही थी छात्र पलट जरूर रहे थे। लेकिन उस दिन वो व्यस्त था कॉलेज में फ्री टाइम में बैठे होने के बावजूद भी वो अपने मोबाइल पर एक प्रोजेक्ट में बिजी था जिस कारण वो पलट नही पाया यही एकमात्र उसकी गलती बन गयी। कहते है बला सी खूबसूरत लड़कियो में कहीं न कहीं थोड़ी बहुत अकड़ जरूर होती है। रीवा के साथ भी यही तो था!खूबसूरती में पूरे कॉलेज में कोई मिसाल नही जब सभी लड़के लड़कियां पलट कर देख रहे है तो फिर मनीष क्यों नही। वो एक पल उसके सामने रुकी!और बोली,'एक्सयूज मी!आर्ट सेकण्ड ईयर का लेक्चर रूम किधर है।

मनीष ने बिन गर्दन उठाये उसकी ही जवाब दिया,'स्ट्रेट,फिर सीढियां,उसके बाद गैलरी और सीढयों से राइट में थर्ड रूम है। ' ओके रीवा ने जवाब दिया और वहां से चली गयी। कुछ देर बाद मनीष का लेक्चर था सो मनीष वहां से उठा और अपने लेक्चर रूम की ओर बढ़ गया। चलते हुए सामने एक बार फिर रीवा खड़ी थी। इस बार मनीष के पास न देखने की कोई वजह नही थी। रीवा के व्यक्तित्व पर पहली मुलाकात में ही अपना हृदय हार गया मनीष। लेकिन जताया नही और वहां से बिन कुछ रिएक्ट किये ही आगे बढ़ गया। रीवा को एक बार फिर बुरा लगा और वो वहां से मनीष के पीछे पीछे चली आयी। उससे बात करने की कोशिश करते हुए रीवा कहने लगी,'हेल्लो मैं रीवा एम पी से। मनीष ने आदतन एक नजर डाली और कहा जानता हूँ रीवा मध्य प्रदेश में ही है। 'रीवा के लिए ये वाक्या हैरान करने वाला ही था। रीवा ने इसे इग्नोर किया और आगे कहने लगी अच्छा मजाक था मिस्टर..!रीवा ने वाकर अधूरा छोड़ा तो 'मनीष' मनीष ने वाक्य पूरा करते हुए कहा। रीवा मुस्कुरा दी। मनीष मन ही मन रीवा का साथ पाकर इतरा रहा था। क्योंकि आजकल कॉलेज में रीवा की सुंदरता गॉसिप का विषय बनी हुई थी। समय बदला रीवा अक्सर उससे बात करती जिससे कुछ छात्रों में उससे जलन की भावना आ रही थी। वहीं मनीष इन लम्हो को पूरी तरह एन्जॉय कर रहा था। रीवा से उसकी मुलाकाते कॉलेज के बाहर भी होने लगी। कभी किसी पर्यटन स्थल पर तो कभी एकांत में। समय गुजरा और मनीष को रीवा पर यकीन होने लगा। धीरे धीरे महीने गुजरे और एक दिन प्रेमियो के लिए उपहार स्वरूप वैलेंटाइन दिवस भी आ गया।

उस दिन मनीष कितना खुश था। घर से निश्चय कर के आया था कि उस दिन वो रीवा के प्रति अपने हृदय की भावनाये रीवा से व्यक्त कर देगा। मनीष खुशी खुशी घर से निकला। रास्ते में पड़ने वाली एक फूलो की दुकान से उसने एक लाल गुलाब लिया और मुस्कुराते हुए उसे थाम कर कॉलेज पहुंचा। मनीष रीवा को ढूंढने लगा!लेक्चर रूम,कॉरिडोर,लाइब्रेरी से लेकर कैंटीन सब जगह तो वो ढूंढ आया था लेकिन रीवा कहीं नही दिखी उसे। शायद कॉलेज के बागीचे में होगी सोचते हुए वो चारो ओर नजरे घुमाते हुए आगे बढ़ने लगा। तभी उसकी नजर कॉलेज के बगीचे में फोन पर बात करती रीवा पर पड़ी। रीवा बात करते हुए कहती जा रही थी,'अभी तक कामयाबी नही मिली है मुझे। बस उम्मीद है बहुत जल्द मैं कामयाबी का चेहरा देखूंगी मनीष बहुत जल्द ही मेरे रूप के मोह में पड़ ही जायेगा। तब कहीं जाकर मेरे मन को संतुष्टि मिलेगी। एक बार पलट कर न देखने पर मुझे इग्नोर किया था कभी मनीष ने उसे एहसास होना चाहिए किसी को इग्नोर करने पर कैसा लगना चाहिए। 'सुनकर ही मनीष सिहर गया था। उसके बढ़ते कदम वहीं थम गये और वो बिन कुछ कहे पीछे लौट गया और इस तरह लौटा कभी उसके सामने नही पड़ा। आज फिर यूँ अचानक से रीवा के सामने आने से असहज हो गया था मनीष। मन में ख्याल आया काश उस दिन पलट जाता तो उसके जीवन में ये रीवा नाम का कांटा कभी चुभता नही। कुछ देर तक जब मनीष लौट कर नही आया तो रूही रीवा से अभी आने का कह उसे देखने बढ़ गयी। मनीष को दरवाजे पर खुद में उलझा खड़ा देख रूही कहने लगी,'अतीत से भागने पर अतीत और पीछा करता है मनीष। बेहतर रहेगा भागने की जगह उसका सामना करो। 'रूही की बात सुन कर मनीष हैरान रह गया। उसने अपलक रूही की ओर देखा तो रूही कहने लगी मुझे रीवा के बारे में विवाह के दूसरे दिन से पता है और मुझे उससे कोई समस्या भी नही है क्योंकि रीवा अतीत की परछाई है और मैं वर्तमान का उजाला। रूही की बातों को समझ मनीष मुस्कुराते हुए बोला और अतीत को अतीत में ही रहने देना चाहिए रूही। हमे सिर्फ वर्तमान में जीना चाहिए जो भी है यही है। ' रूही मुस्कुराते हुए बोली जो भी है यही है और दोनो एक बार फिर ट्रेन के उसी डिब्बे में रीवा के सामने बैठे उससे बाते कर अपने खुशहाल जीवन का प्रमाण दे रहे थे। ।


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