जनजाति
जनजाति
मानव को आदिमानव से मानव बनने मैं हजारों वर्षों का समय लगा इतिहास गवाह हे के विश्व मैं कितनी मानव प्रजातियां आज भी आदिमानव के स्तर का जीवन जी रही हें उनके विकास का समय आया ही नहीं लगता हे जैसे कोई कोशिश ही नहीं हुई.
मानव ने विकास के कई पायदान पार किये
कई सभ्यतायें विकसित हुई जिन्होंने अपनी छाप छोड़ी मोहन जोदारों, हड़प्पा आदि
आदिमानव कहें या उन्हें आदिवासी की संज्ञा दे एक ही बात हे इसमें कुछ प्रजातियां आज भी भारत के कई क्षेत्रों मैं निवास कर रही हें भयानक जंगल, कंद मूल फल भोजन पेड़ पत्ते वस्त्र,जंगली जानवर का शिकार पत्थर के हथियार, तीर कमान आदि हें
अंडमान निकोबार,उड़ीसा,बस्तर, मध्य प्रदेश के भिंड,मुरैना,राजस्थान बांसवाड़ा, झालावाड़ के कुछ क्षेत्र मैं आज भी आदिवासी निवास करते हें उन तक विकास की गंगा आज भी नहीं पहुँच पायी हे तमाम कोशिशों के उपरांत भी उनका जीवन स्तर उसी शैली का हे आदिवासी जातियों मैं मुंडा, सहरिया, बोडो, मीणा अन्य हें
भारतीय संविधान मैं इन्हे अनुसूचित जाती जनजाति कहा गया हे एवं इनके विकास के लिए कई कार्यक्रम विभिन्न विभागों, निगमों के माध्यम से राज्य सरकारें कर रही हें उसी के फलस्वरुप कई जनजातियों ने तरक्की भी की हे जिसका कारण उन्हें आरक्षण दिया जाना भी हे केंद्रीय एवं राज्य स्तर की सरकारी सेवाओं मैं उन्हें आरक्षण प्रदान किया गया हे
राजस्थान की मीणा जन जाती के आदिवासीयों ने बहुत तरक्की की हे देश के उच्च पदों पर आसीन हो कर देश की सेवा की हे ओर कर रहे हें जो आदिवासीयों के विकास होने का एक बहुत बढ़ा उदाहरण हे
जनजातियों के विकास में उनके नेताओं का भी बढ़ा हाथ हे जिसमे मुंडा जनजाति के बिरसा मुंडा झाडखण्ड के प्रमुख रहे हें जिम्होंने जनजातीय विकास के क्षेत्र में बहुत कार्य किया हे
राजस्थान के बारां जिले के दुरस्त किशनगंज एवं शाहबाद इलाके मैं सहरिया जनजाति के लोग निवास करते हें जिनका रहन सहन आज भी एक साधारण आदिवासीयों जैसा ही हे सहरिया जाती के हें
राजस्थान में जनजातियों का जीवन स्तर सुधारने के लिए जनजातीय विकास परिषद, विकास विभाग, जनजातीय विकास निगम राजस्थान सरकार के अधीन कार्यरत हें।
