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Dr.Deepak Shrivastava

Tragedy

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Dr.Deepak Shrivastava

Tragedy

काम की इज्जतचाम की नहीं

काम की इज्जतचाम की नहीं

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दुनिया में जीने के लिए आदमी को कुछ ना कुछ करते रहना चाहिए नहीं तो इंसान की कीमत कम हो जाती हे. दूसरे क्या घर के लोग भी उसे बेकार समझकर उसकी इज्जत करना कम कर देते हें


लेकिन एक इंसान जो परेशानियों के दौर से गुजारा हो जीवन मे संघर्ष ही उसकी कहानी रही हो क्या करे. काम करते करते जो थक गया हो यदि उसके बाद भी उससे कोई काम करते रहने की उम्मीद करे तो कहाँ तक सही हेऐसा ही कुछ प्रदीप के साथ हुआ इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद नौकरी की तलाश में कितने जूते घिसने पड़े ये वो ही जानता था. पिता की मृत्यु होने के बाद घर की सारी जिम्मेदारी उसी की थी माँ दो छोटे भाई बहन.उनकी पढ़ाई का खर्चा, खुद की पढ़ाई के साथ साथ ट्यूशन्स करके, पार्टटाइम छोटी मोटी नौकरी करके घर और पढ़ाई का खर्च उठा

इंजिनियरिंग की पढ़ाई करते सोचता था निकलते ही नौकरी लग जायेगी. लेकिन नौकरी के लिए दफ़्तर दफ्तर कंपनी कंपनी धक्के खाते हुए साल दर साल निकलते जा रहे थे.

दीपा को ट्यूशन पढ़ाते हुए दोनों में कब प्यार हो गया था पता ही नहीं चला था. दीपा प्रदीप के घर के पास ही रहती थी. दोनों ने साथ साथ जीने की कस्मे खाई थी दोनो अपने प्यार को शादी के बंधन में बंधनेके सपने देख रहे थे दोनों को नौकरी लगने का ही इंतजार था. इधर दीपा की पढ़ाई भी ख़त्म हो गई थी. दीपा ने भी अपनी B.scकी पढ़ाई करके कॉम्पीटिशन की तैयारी शुरू कर दी थी.दीपा के कई शादी के रिश्ते आ रहे थे.इधर उसके माता पिता शादी का दबाव बना रहे थे.ऐसे मे दीपा भी दुविधा मैं थी क्या करे क्या ना करे. प्रदीप की नौकरी का कोई ठिकाना नहि था. दोनों का मिलना प्यार के वादे करना शादी के सपने देखना बदस्तूर जारी था.


जैसे जैसे समय बीत रहा था दोनों को ही चिंता सता रही थी. आखिर को दीपा को अपनी माता पिता की शादी करने की जिद और जल्द बाजी के आगे झुकना पड़ा.

सुरेश जो एक कंपनी में एग्जीक्यूटिव था अच्छी तन्ख़्वाह घर कोई जिम्मेदारी नहीं माँ बाप का इकलौता लड़का. माँ बाप का शादी का दबाव वो सह ना सकी इन्ही सबने आखिर दीपा को अपने प्यार को छोड़ने को मजबूर कर दिया.दीपा ने शादी के लिए हाँ कर दी.शादी का वो दिन भी आ गया और दीपा सुरेश के साथ सात फेरे ले कर कार में बिदा हो गई अपना नया घर बसानेके लिए

चांदी की दीवार ना तोड़ कर प्यार को तोड़कर विदा हो गई प्रदीप की जिंदगी से दूर चली गई. प्रदीप बहुत दुखी मन से उसे जाते हुए देखता रहा कुछ कर ना सका करता भी क्या मन मसोस कर रहा गया. आत्महत्या करने के विचारों से घिरा लेकिन माँ भाई बहन की जिम्मेदारी ने उसे ऐसा करने से रोक दिया

इसी के साथ समय बीता प्रदीप की एक सरकारी दफ़्तर में नौकरी लगी. जैसे तैसे जिंदगी पटरी पर चल रही थी की माँ भी चल बसी. भाई बहन की शादी की दोनों ने अपना घर बसाया. प्रदीप अभी भी अकेला ही था. सब जिम्मेदारियां पूरी करते करते कब वो चालीस का हो गया पता ही नहीं चला. शादी की उम्र निकल गई थी. फिर भी कहते हें प्यार करने की कोई उम्र नहीं होती है कब किससे हो जाये कह नहीं सकते. प्रदीप कब सुनीता की तरफ आकर्षित हो गया जो स्वयं भी किन्ही कारणों से अविवाहित थी उसके ऑफिस में ही साथ साथ काम करती थी शुरू में दोनों में मित्रता हुई और दोनों शादी के बंधन में बंध गए. जिंदगी की गाड़ीआगे बड़ी सुनीता ने घर बाहर दोनों संभाले.बच्चे हुए एक लड़का एक लड़की बड़े प्यार से दोनों ने उन्हें बढ़ा किया पढ़ाया लिखाया दोनों की शादी भी अच्छा सां घर वर देख कर दी प्रदीप भी खुश था एक सुखी परिवारजी जो था उसका.

नौकरी से उसका सेवानिवृत होने का समय भी आ गया. आखिर में सेवानिवृत हो गया जिंदगी भर मेहनत मस्सकत करके गुजारी. अब घर में बैठने की आराम करने की बारी उसी की थी. सोच रहा था घूमेगा फिरेगा आराम करेगा. जिंदगी की जंग लडते लड़ते वो थक चुका था कहीं घूमने जा ना सका.


घर में आराम चैन की सांस लेने का समय मिला दो साल कब निकल गए मालूम ना चला. सुनीता और बेटा बहु पोते पोती भी थे जिनके साथ हंसी ख़ुशी जीवन गुजर रहा था. लेकिन कहीं ना कहीं उसे ऐसा लग रहा था की उसका घर में बैठना सुनीता और बेटे को अच्छा नहीं लग रहा है वो उसे हमेशा घर से बाहर कुछ करने के लिए कहते रहते हें प्रदीप को कहीं ना कहीं ऐसा लग रहा था उन सबके व्यवहार से की उसकी इज्जत कम हो रही है।


अब आप ही बताइये एक इंसान जिसने जिंदगी भर परेशानियों मे गुजारी अब आराम का समय आया तो उसे कुछ करने केलिए कहा जा रहा है घर में बैठे रहने के कारण इज्जत नहीं की जा रही है 

आखिर को प्रदीप को भी अपनी इज्जत बनाये रखने के लिए एक प्राइवेट ऑफिस में काम करना पड़ा. अतः अपनी इज्जत बचानी हे तो काम करते रहो चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े।



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