इज्जत सम्मान
इज्जत सम्मान
हर इंसान के जीवन में कई कहानियाँ होती हैं
जीवन में घटने वाली घटनायें भी एक कहानी का रूप ले लेती हैं। सभी माँ बाप अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देते हैं सुसंस्कृत बनाते हैं।
उच्च शिक्षा दिलाते हैं जिसके लिए हर संभव प्रयास करते हैं अपने बच्चों को अच्छा बढ़ा इंसान बनाने के लिए क्या नहीं करते हैं परोक्ष रूप से अपने सपनों को पूरा करते हैं जो खुद नहीं कर पाए बन पाए वो बच्चों को बनता देख कर खुश होते हैं अपने बच्चों पर विश्वास करके उन्हें दूसरे शहरों में, विदेशों में पढ़ने, नौकरी करने के लिए भेजते हैं। अपने बच्चों पर घमंड करते हैं जब वो परीक्षाओं में अच्छे अंक लाते हैं । डॉक्टर, इंजीनियर बनते हैं उच्च शिक्षा प्राप्त कर विदेश में नौकरी करते हैं बच्चों की बड़ाई करते नहीं थकते हैं लेकिन वो ही बच्चे जिनके लिए माँ बाप इतनी मेहनत करते हैं उन पर विश्वास करते हैं इतना घमंड करते हैं बढ़ाई करते हैं खुश होते हैं समाज में इज्जत बढ़ाते हैं कुछ ऐसा कर जाते हैं की माँ बाप कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहते हैं।
ऐसा ही कुछ राजेंद्र जी के साथ हुआ। उनके दो बच्चे एक लड़का एक लड़की महेन्द्र ओर कामिनी थे।
दोनों को अच्छे से अच्छा पढ़ाया लिखाया अच्छे संस्कार देने की कोशिश भी की अपनी तरफ से कोई कमी नहीं छोड़ी।
राजेंद्र जी एक सरकारी कार्यालय में क्लर्क की नौकरी करते थे।
बेटे को इंजीनियर बनाया, बेटा शुरू से ही होनहार था। उसका मालवीय इंजीनियरिंग महाविद्यालय में एड्मिशन हो गया था।
उसने कॉलेज के द्वारा दी जा रही स्कोलर शिप लेकर मेहनत करके पढ़ाई की। राजेंद्र जी ने बैंक से शिक्षा लोन भी लिया।
राजेंद्र जी ओर उनकी पत्नी सुनीता को उससे बहुत आशाएं थी। महेन्द्र का इंजीनियरिंग का अंतिम वर्ष था। कंपनियों ने आना शुरू कर दिया था। महेन्द्र का टी. सी. एस. में प्लेसमेंट हो गया था जब ये समाचार महेन्द्र ने राजेंद्र जी को दी तो वो बहुत खुश हुए सारे मोहल्ले में लड्डू बांटे। उन्हें अपने बेटे पे बहुत घमंड हुआ।
महेन्द्र ने अपनी इंजीनियर की पढ़ाई अच्छे अंकों से उत्तीर्ण की और टी. सी. एस. में अपनी उपस्थिति दे दी। मुंबई में रहते हुए उसका रहन सहन भी बदल गया था। ऊँची उड़ान भरने लगा था। इसी बीच साथ मैं कार्यरत एक लड़की राधिका से उसे प्रेम हो गया और महेन्द्र ने राजेंद्र जी को बिना सूचित किये उससे शादी कर ली। राजेंद्र जी को जब पता चला बेचारे बहुत दुखी हुए। उन्होंने जो सपने पाले हुए थे सब बिखर गए अभी तो उसकी पढ़ाई के लिए लिया हुआ कर्ज भी वो चूका ही रहे थे, उसकी शादी के क्या क्या सपने देखे थे ये करेंगे वो करेंगे सब टूट गए।
राजेंद्र जी समाज मैं मुँह दिखाने लायक नहीं रहे। लोग कहते साथ के साथी कहते एक लड़के ने क्या दिन दिखाए जिसके लिए बेचारे राजेंद्र जी ने इतनी मेहनत की दुःख उठाये वो ही ऐसा करेगा। राजेंद्र जी सुनकर चुप हो जाते कहते भी क्या किसी से अपना पैसा खोटा परखइयाँ को क्या दोष। इस सदमे से राजेंद्र जी बहुत दुखी हुए बीमार रहने लगे। सरकारी नौकरी थी जैसे तैसे चल रही थी शरीर भी चल रहा था दवाओं के भरोसे, बेटे की पढ़ाई का कर्ज चुकाते हुए राजेंद्र जी जल्दी ही बूढ़े हो गए थे।
बेटी कामनी को भी पढ़ाने के लिए उद्यम किये उसके भी सपने पूरे करने मैं राजेंद्र जी की कमर टूट गई। कामिनी के B. A. की पढ़ाई पूरी करते ही राजेंद्र जी ने उसका विवाह कर दिया। दामाद अच्छा था। इससे राजेंद्र जी को बहुत सहारा मिला। उनके मन को कुछ शांति मिली। लेकिन बेटे की करतूत से राजेंद्र जी को जो अपमान, दुःख उठाने पड़े वो कम नहीं थे। जीवन तो चलता ही है जैसे भी चले राजेंद्र जी का भी चलता रहा।
