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Dr.Deepak Shrivastava

Tragedy

3  

Dr.Deepak Shrivastava

Tragedy

पहला प्यार

पहला प्यार

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मुझे भी हुआ था प्यार एक हसीना से मिलते थे हम रोज आते जाते कभी नोट्स लेने के बहाने कभी देने के बहाने उसके घर के चक्कर लगाते मिलते मिलाते कॉलेज के चार साल निकल गए कब पता ही नहीं चला

प्यार उनको भी था प्यार हमको भी था बस जब उसका इजहार करने का समय आया हमने किया उन्होने कबूल भी किया यही सिलसिला चला लेकिन जब हमने विवाह का प्रस्ताव उनके सामने रखा तो वो मुकर गए हमने भी कहा कोई जल्दी नहीं है सोच लो

कॉलेज का अंतिम वर्ष था प्यार को एक पड़ाव देना ही था बस स्वीकृति की देरी थी

एक दिन हमने जब उनसे पुनः अपने प्रश्न का जवाब माँगा तो उन्होंने अपने समाज ओर माँ बाप की दुहाई देते हुए प्रस्ताव ठुकरा दिया हम घोर निराशा मैं डूब कर मजनूँ की तरह शराब मैं डूब गए कॉलेज के वार्षिक विदाई कार्यक्रम मैं भी हमने पुनः अपने प्रस्ताव को स्वीकार करने की मिन्नतें की लेकिन वो टस से मस ना हुए समाज के माता पिता के डर से हमें हमारे प्यार को ठुकरा दिया हमने भी सोचा कोई नहीं जिंदगी मैं कभी कभी ऐसा भी होता है सभी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता तू नहीं ओर सही ओर नहीं ओर सही ये भी एक कहानी थी जो अधूरी रह गयी सफर मैं दो राही मिले कुछ देर साथ रहे फिर बिछड़ गए अपने अपने रास्ते पर चले गए 

हमने भी अपने को संभाला और चल दिए अपनी राह पर

एक दिन वो आये हमारे दर पर ले कर अपनी शादी का निमंत्रण पत्र हम अपने को संभाल नहीं पाए उस दिन क्या करते कुछ समझ नहीं आया क्या करें जैसे तैसे अपने को संभाला था आज फिर सामने आकर परेशान कर दिया चैन से सो रहे थे कफन ओढ़ कर यहाँ भी चले आये

हम मित्र के साथ शादी में भी गए तोहफा भी दिया लेकिन उन्हें शादी के जोड़े मैं किसी ओर के साथ देखकर मन बहुत तड़प रहा था

तेरी शादी पे दूँ तुझको तोहफा मैं क्या पेश करता हूँ दिल एक टूटा हुआ खुश रहे तू सदा ये दुआ है मेरी यही गीत मन ही मन गाते हुए 

 जल्दी ही वहां से रुख़सत हुए अपने घर आकर अपने गम को गलत करने लग गए शराब पीने

समय कब रुकता है चलता ही रहता है गुजरता गया साल दर साल गुजर गए हम भी भूल गए कोई थी जिसे प्यार किया था लेकिन कहीं ऐसा हुआ है क्या के इंसान अपना पहला प्यार भूल सका हो

माँ बाप की खातिर हमने भी विवाह किया हमारी भी शादी हुई बच्चे भी हुए हम भी अपनी ग्रहस्थी मैं व्यस्त हो गए

कभी किसी जगह मिलना हुआ भी तो नजरें चुरा के निकल लिए वो कैसे हमसे नजरें मिलाते हम भी अपने परिवार मैं खुश थे शायद वो भी खुश हों

एक दिन दूरभाष पर उनका नंबर देख कर चकित रह गए उनकी आवाज़ सुनने को मन मचलने लगा तुरंत फोन उठाया बात हुई कहने लगे वो समय ही कुछ ऐसा था माँ बाप के सामने कुछ कह ना सके कैसे कहते अपनी मज़बूरी बताने लगे रोने लगे हमने कहा अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत लेकिन हमारे मन को एक तसल्ली हुई की हम ही नहीं वो भी बेक़रार थे लेकिन मज़बूरी के हाथों मजबूर थे आज भी हम उस प्यार की याद मैं शायर कहें कवि कहें क्या बने कह नहीं सकते लेकिन उस पहले प्यार को याद करके कुछ ना कुछ लिखते रहते हैं यही है पहले प्यार की कहानी जिसे कोई प्रेम प्रेमिका ताउम्र नहीं भूलता है 



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