पिता की अभिलाषा
पिता की अभिलाषा
शर्मा जी बहुत समय बाद अपने बेटे के यहाँ गए जो दिल्ली में रहता था बेटा स्टेशन पर लेने आया शर्मा जी का मन किया बेटे को गले लगा ले लेकिन जब उसने उनके पैर छुए तो सर पर हाथ रख कर आशीर्वाद स्वरूप खुश रहो कह कर रह गए
उन्हें उसके बचपन का समय याद आ रहा था कैसे वो उसे अपने कंधों पे बैठा कर हंसी ठिठोली करते रहते थे गोद में उठाये उठाये घूमते फिरते रहते थे।
उसकी हर इच्छा हर जिद को पूरी करने में ख़ुशी महसूस करते थे
उसको बड़ा होते हुए देखा पढ़ाया लिखाया उसके अच्छे से लालन पालन करने में कोई कमी नहीं छोड़ी
बेटे ने भी अपना सर्वश्रेष्ठ देने में कोई कमी नहीं छोड़ी थी हमेशा कक्षा में प्रथम आना खेलकूद में भी अव्वल रहा कई मैडल जीते शर्मा जी अपने बेटे की हमेशा बढ़ाई अपने मित्रों एवं रिश्तेदारों से करते रहते थे
बेटे को अच्छे संस्कार दीये थे उसी का फल था के बेटा आज भी अपने माँ पिता के सम्मान आदर में कोई कमी नहीं छोड़ता है
माँ पिता को और क्या चाहिए।
शर्मा जी ने बेटे को जब स्टेशन पर उन्हें लेने आते देखा ओर दो दिन का अपने कार्यस्थल से अवकाश लेने के लिए सुना तो बहुत खुशी हुई।
बहुत देर तक दोनों बातें करते रहे उन्हें उसके साथ बातें करना अच्छा लग रहा था हाँ ज्यादा बातें उनके पास करने को नहीं थीं फिर भी कुछ इधर की कुछ उधर की परिवार रिश्तेदार की बातों में ही कब समय निकल गया
शर्मा जी से जब ये पूछा गया की आप क्या खाएंगे उनकी ख़ुशी का परावर ना रहा क्योंकि आजतक ऐसी कोई बात ही नहीं हुई शर्मा जी सरकारी दफ़्तर में मुलाजिम थे सुबह दस बजे जाना शाम को 6बजे तक आना जो भी पत्नी बनाकर सामने रख देती वो चुपचाप खा लेते थे सेवानिवृत होने के बाद भी उनका यही क्रम जारी था अतः उन्हें बड़ी ख़ुशी हुई
दोनों ने साथ बैठकर खाना खाया शर्मा जी असीम तृप्ति महसूस कर रहे थे जैसे आज उन्हें अमृत मिल गया हो
खाना खाकर शर्मा जी को कुछ देर सोने की आदत थी सो वो सोने के लिया उनके लिए निर्धारित कमरे में चले गए कुछ देर बाद बेटा भी उनके पास आकर सो गया।
शर्मा जी उसके सर पर अपने प्यार ओर आशीर्वाद स्वरूप काफ़ी देर तक अपना हाथ फेरते रहे
बच्चों के बचपन में तो प्यार दर्शाने के कई तरीके होते हैं लेकिन बच्चों के बड़े होने पर
वो सब कुछ संभव नहीं हो पाता जो एक पिता अपने बच्चों को दर्शाना चाहता
बड़े होने पर बच्चों की अपनी दुनिया अपने संगी साथी हो जाते हैं शादी उपरांत ओर भी बड़ा परिवर्तन आ जाता है
कब दो दिन निकल गए पता ही नहीं चला
बेटे ने कहा भी ओर कुछ दिन रुक जाइये लेकिन शर्मा जी की अपनी जिम्मेदारियां जो थी उन्हें भी अभी पूरा करना था अतः उन्हें आना पढ़ा
शर्मा जी की शाम की ट्रैन थी बेटा उन्हें स्टेशन पर छोड़ने आया तो शर्मा जी ने उसे अपने गले लगा लिया ओर खूब खुश होते हुए भरे गले से आशीर्वाद ओर प्यार करते रहे
इतने में ही उद्घोषक ने ट्रैन के रवाना होने की घोषणा की शर्मा जी को बेटे से विदा लेनी पढ़ी मज़बूरी में ट्रैन में आकर बैठ गए ओर ट्रैन चल दी
शर्मा जी देर तक बेटे को हाथ हिलाकर बाय बाय करते रहे ओर अपने मन ही मन खुश होते रहे ओर बेटे के द्वारा उनको दीये गए आदर सम्मान से अपने को धन्य मानते रहे
और बेटे को आशीर्वाद देते रहे।
जिस प्रकार आजकल समाज मैं बच्चों का अपने माँ पिता के लिए आदर सम्मान कम होता जा रहा है जिस तरह सेवा भावना कम होती जा रही है आये दिन इस तरह की पोस्ट पढ़ने में आती हैं की अमुक ने अपने माँ बाप को वृद्ध आश्रम में असहाय छोड़ दिया।
कहीं ट्रैन में बस बैठाकर आने का कहकर अकेला छोड़ गया या बेटे बहु बुरा व्यवहार करते हैं आदी आदी
आजकल ज्यादातर माँ बाप अपने को अकेले रखना रहना ज्यादा पसंद करते हैं यदि आर्थिक रूप से सक्षम हैं तो अन्यथा मज़बूरी में तो कुछ नहीं कहा जा सकता।
अलग रहने से बच्चों की भी निजता बनी रहती है ओर उनकी भी साथ ही मान सम्मान भी बना रहता है।
