जल सरंक्षण
जल सरंक्षण
होली के दिन एक कार लपलपाती हुई उस बंगले के बाहर रुकी। कार के बाहरी भाग से बचते हुए बंगले का मालिक कार से बाहर निकला और दरवाज़ा धीरे से बंद कर होठों को चबाते हुए कार का निरिक्षण करने लगा। दरवाज़े पर रंगीन पानी बिखरा हुआ था, जिसे देखते ही वह त्यौरियां चढ़ा कर बड़बड़ाने लगा, "जाहिल कहीं के! लोगों के पास पीने के लिए पानी नहीं है और ये गुब्बारे में पानी भरकर बहा रहे हैं।"
फिर वह अपने बंगले के अंदर गया और बाग़ में रखा पानी का पाइप उठा कर चिल्लाया, "माली-माली"
तभी उसे याद आया कि माली होली खेलने अपने गाँव गया है।
उसने मुह चढ़ाया और बुदबुदाया, "अच्छा ख़ासा माली था, जोकर बनने चला गया।"
पाइप का नल खोल कर वह बंगले से बाहर निकला और कार के दरवाज़ों को धोने लगा। रंग पक्का था, वह होंठ भींच कर बुदबुदाया, " अगर जाना ज़रूरी नहीं होता तो आज कार घर से बाहर ही नहीं निकालता।"
जब वह कार के पीछे गया तो चौंक गया, वहां कांच पर छोटे-छोटे रंगीन हाथ छपे हुए थे, वह झल्ला गया और पानी डालते हुए फिर कुड़कुड़ाया, "ड्राईवर को भी आज ही छुट्टी लेनी थी।"
तभी उसकी निगाह कार के नीचे की तरफ गयी, वहां कीचड़ लगा हुआ था, अब उसका क्रोध सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने पाइप के सिरे के ऊपर की तरफ अंगूठा लगा दिया, जिससे पानी की धार तेज़ हो गयी।
कार को पूरी तरह धोने के बाद उसने कार को साफ़ कपड़े से पोंछा, फिर गर्व से कार में बैठकर बंगले के अंदर चला गया।
और कार के हटते ही पानी बिखरने से हुई कीचड़ सड़क का श्रृंगार करने लगी, उस कीचड़ का अंश कार के पहियों में भी लगा रह गया था।