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Chandresh Kumar Chhatlani

Abstract

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Chandresh Kumar Chhatlani

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एक और मसीह

एक और मसीह

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वह अपने टू व्हीलर पर चला जा रहा था। सड़क पर ज्यादा भीड़ नहीं थी, लेकिन उसके भीतर की हलचल गाड़ी से ज़्यादा तेज़ भाग रही थी। उसकी आँखें स्ट्रेस के बड़े हुए स्तर से लाल होने लगीं और, साथ ही दिमाग में आवाज़ें गूंजने लगीं,
“रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुका हूँ, मेरे निकम्मे बेटे के भविष्य से डर लगने लगा है। बेटा दिनभर मोबाइल में घुसा रहता है।"

दिमाग में अगली आवाज़ गूंजी, “रिटायरमेंट के पहले अगर डेथ हो जाए, तो बेटे को मेरी नौकरी मिल सकती है…"

उसकी आँखें कुछ शांत हुईं।

दो दिन पहले ही उसने आरटीओ से गाड़ी का लाइसेंस बनवाया था। उसके दिमाग में क्लर्क का प्रश्न गूंजा—“इतने दिनों के बाद लाइसेंस रिन्यू करवा रहे हैं?”
वहां तो वह चुप रहा था लेकिन इस प्रश्न का उत्तर अब उसके दिमाग में गूंजा, "एक्सीडेंट में मरा तो घर वालों को इंश्योरेंस का डबल पैसा मिलेगा।”

और, अगले कुछ सेकंड्स में सड़क पर कोई चिल्लाया, "एक्सीडेंट हो गया।"

उसकी गाड़ी एक कार से टकरा गई थी… या शायद...


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