=ईश्वर
=ईश्वर
जब ईश्वर ने प्रथम पुरुष और स्त्री का सृजन किया, तो पुरुष ने जिज्ञासावश पूछा, "प्रभु, आपने स्त्री को मुझसे इतना भिन्न क्यों बनाया है?"
ईश्वर ने मंद-मंद मुस्कुराते हुए कहा, "स्त्री को मैंने सृजन की अद्भुत क्षमता से नवाज़ा है। वह जीवन की निरंतर धारा को प्रवाहित करेगी, पोषण और प्रेम की अद्वितीय स्रोत बनेगी।"
पुरुष ने फिर पूछा, "परंतु प्रभु, ये स्तनों का रहस्य क्या है? इनका प्रयोजन क्या है?"
ईश्वर ने समझाया, "जब नवजात शिशु इस संसार में आता है, तो वह सबसे पहले अपनी माँ के स्तनों से जुड़ता है। यहीं से उसे जीवन का प्रथम स्पर्श, निस्वार्थ प्रेम और पोषण का अमृत प्राप्त होता है। स्त्री के स्तन मात्र शारीरिक अंग नहीं, वे सृजन, वात्सल्य और स्त्रीत्व के दिव्य प्रतीक हैं।"
समय का चक्र घूमता रहा, और पुरुष और स्त्री ने मिलकर एक परिवार का निर्माण किया। पुरुष ने देखा कि स्त्री के हृदय में मातृत्व की कोमल भावनाएँ हिलोरें ले रही थीं। जब तक वह माँ नहीं बनी थी, तब तक उसके स्तन केवल सौंदर्य का एक आयाम थे, परंतु शिशु के आगमन के साथ, वे उसके अस्तित्व का केंद्र बन गए।
पुरुष ने उन स्तनों को स्पर्श किया, जहाँ उसे केवल शारीरिक आकर्षण और सौंदर्य का बोध हुआ, जबकि स्त्री ने मातृत्व के उस गहन अनुभव को महसूस किया, जो केवल शरीर का नहीं, बल्कि आत्मा का भी जागरण था। बच्चे को दूध पिलाकर बनकर वह पूर्णता का अनुभव कर रही थी।
और, ऐसी तृप्ति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। पूर्ण विराम लग जाता है।
