Shashi Aswal

Abstract

3  

Shashi Aswal

Abstract

जिस्मानी गिद्ध

जिस्मानी गिद्ध

2 mins
248



कैसा लगेगा आपको अगर आप नीले आसमान के नीचे खुली धरती में हो। यकीनन अच्छा लगेगा। मगर जमीन चारों तरफ रेत से भरी हुई हो।थोड़ा बुरा लग सकता हैं। तभी अचानक आपकी नजरें आसमान में उड़ रहे गिद्धों पर पड़ती हैं जो आपके मरने का इंतजार कर रहे हैं आपको नोचने के लिए। डरिए मत बिल्कुल भी। फिलहाल तो अभी कुछ भी नहीं हुआ हैं। सोचो अगर आपके जिस्म पर एक भी कपड़ा न हो। बुरी हालत हो जाएगी आपकी। ऊपर गिद्ध नीचे रेगिस्तान और दूर-दूर तक उम्मीद की कोई किरण नहीं।

मेरी भी यही हालत थी बिल्कुल आपके जैसी। फर्क सिर्फ़ इतना था कि मैं सड़क पर चली जा रही थी और सब मुझे घूर रहे थे। जब मैंने खुद का आंकलन किया तो शरीर पर कपड़े का क शब्द भी नहीं था। मेरी तो "काटो तो खून नहीं" वाली हालत हो रही थी। तेजी से चलने की कोशिश कर रही पर जैसे पैरों को जंजीरों ने जकड़ लिया हो। ट्रेडमिल मशीन की तरह मेरे पैर चल रहे थे पर देखने पर ऐसा लगता जैसे कोई घोंघा चल रहा हो अपनी मस्त चाल से। गिद्ध रूपी लोगों का वहशीपन उनकी आँखों की पुतलियों में तांडव कर रहा था। जो सिर्फ जिस्म के भूखे लग रहे थे। मानो कितने सालों से भूखे हो गोश्त(जिस्म) के। खुद को ढकना चाहा हाथों से पर सब व्यर्थ। कुछ परछाईयाँ मुझे छूती हुई महसूस हुई। अचानक किसी ने मुझे अपनी तरफ खींचा और...

पापा आप?

हाँ बेटा, तुम काँप क्यों रही थी?

वो...गिद्ध ... मुझे(बुडबुडाते हुए), कुछ नहीं।

(गले लगते हुए) डरावना सपना देखा पापा.....



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract