Shashi Aswal

Tragedy Inspirational

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Shashi Aswal

Tragedy Inspirational

आत्मसम्मान

आत्मसम्मान

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अरे देख ना राधा, घर में कितना कचरा फैला हुआ है फंक्शन के कारण। आज ना पूरा दिन लगा लेना तू। आज की दिहाड़ी तेरी तनख्वाह के साथ दे दूँगी। मुझे ना जरा काम है तो मैं घर में नहीं रहूँगी। 

कोई बात नहीं मेम, आप निश्चित हो कर जाईए मैं सारा घर ठीक कर दूँगी। 

राधा इक्कीस साल की लड़की पास के इलाके के रहने वाली। यहाँ सोसाइटी में घरों में काम करने आती है जिससे उसके घर का खर्चा चलता है और प्राइवेट पढ़ाई कर पाती है। उसका सपना है कि कॉलेज पढ़ कर उसे अच्छी नौकरी मिल जाए जिससे उसकी आर्थिक तंगी कम या खत्म हो जाए। गुजराल साहब के यहाँ वो तीन साल से काम कर रही है। गुजराल साहब जहाँ दिल के अच्छे इंसान है वही उनकी पत्नी थोड़ी गुस्से वाली हालांकि सब ठीक है। 

अगले दिन जब राधा काम करने आती है तो गुजराल साहब की पत्नी राधा को बुलाती है। गुजराल साहब भी वही बैठे होते है। 

और राधा बेटी कैसी हो ? घर पर सब ठीक है? गुजराल साहब ने अखबार पढ़ते हुए पूछा। 

जी साहब सब ठीक है। आपका आशीर्वाद है। 

आप भी कौन सी बात लेकर बैठ गए हो ? जो बात जरूरी है उसे करो। फालतू की बातों का मेरे पास टाइम नहीं गुजराल साहब की पत्नी गुस्से से तमतमाते हुए बोली। 

राधा कल सफाई करते हुए तुम्हें कुछ मिला था क्या ? 

अरे सीधा-सीधा क्यों नहीं पूछते हो इससे ? पूरे 50 लाख का हार था 50 लाख। इतने पैसे तो इसने देखे भी नहीं होंगे। मुझे तो लगता है कि इसी ने चुरा लिया होगा वो हार मेरा। 

नहीं नहीं मेम। मुझे कोई हार नहीं मिला कल सफाई करते हुए। मैं सच कह रही हूँ। अगर मुझे मिलता तो मैं बता देती। 

अरे तुम लोगों का कोई भरोसा थोड़ी ना है। कोई चमचमाती चीज देखी नहीं कि नियत को फिसलने में समय नहीं लगता। मैं कह रही हूँ आपको कि पुलिस को फोन लगाइए तब सच बताएगी ये। 

क्यों गुस्सा कर रही हो इस बेचारी लड़की पर। रख दिया होगा तुमने कही हार या किसी को दे दिया होगा मिल जाएगा। 

आप तो चुप ही रहिए। आप ने ही इसे प्यार से बात करके सर पर चढ़ा रखा है। आप फोन मत करिए मैं ही लगाती हूँ फोन पुलिस को अपने पर्स से फोन निकाल कर नंबर लगाने लगती है तब तक फोन बजने लगता है। 

हैल्लो मिसेज शर्मा। कैसी है आप? क्या कहा हार आपके घर पर है। ओह्ह अच्छा, हाँ वो थोड़ा लूज़ हो रहा था तो गिर गया होगा गले से आपके घर। मैं तो कितनी परेशान हो गई थी उसे लेकर। हाँ आती हूँ आपके घर थोड़ी देर में। थैंक यू बाय ऐसा कहकर गुजराल साहब की पत्नी फोन काट देती है। 

मैंने कहा था ना कि मिल जाएगा। बेवजह ही तुम राधा पर शक कर रही थी। कब से काम कर रही है हमारे घर आज तक कोई गलती की इसने। चलो अब माफ़ी माँगों इससे गुजराल साहब ने अखबार नीचे रखते हुए कहा। मगर उनकी पत्नी माफ़ी माँगने की जगह वहाँ से गुस्से में चली जाती है। राधा भी बाद में अपने काम पर लग जाती है। 

राधा को आए दिन ऐसे इल्जामों से दो-चार होना पड़ता। अपने काम को वो हमेशा से ईमानदारी से करती मगर उस पर हमेशा शक किया जाता। गुजराल साहब उसे अच्छे से जानते थे तो वो कुछ नहीं कहते थे मगर उनकी पत्नी आए दिन कुछ ना कुछ जरूर कहती। मगर राधा मजबूरी और गरीब होने के कारण कुछ ना कह पाती। वो तो बस जल्दी से जल्दी अपनी पढ़ाई पूरी होने का इंतजार कर रही थी। 

ऐसे ही एक दिन राधा तबियत खराब होने के चलते काम पर नहीं जा पाती तो अगले दिन चली जाती है। जैसे ही वो गुजराल साहब के यहाँ जाती है उनकी पत्नी की जोर-जोर से चिल्लाने की आवाजें आ रही थी। 

मैंने पहले ही कहा था आपको कि ऐसी लड़कियों का कोई भरोसा नहीं होता। ये लोग पैसों के लिए कुछ भी कर सकते है अपनी इज्ज़त तक बेच सकते है। मगर आप मेरी बात सुने तब ना। आई कल आपकी राधा बेटी काम करने? नहीं ना। अब आएगी भी नहीं। पैसे लेकर भाग गई होगी। और तो और कुछ महीनों से मैं उसे हमारे बेटे के आस-पास ज्यादा मंडराते हुए देख रही हूँ। पक्का उसे अपने जाल में फँसाने में लगी होगी। और जब नहीं फँसा तो मौका देखकर पैसे लेकर भाग गई ऐसा कहकर उनकी पत्नी सोफे पर बैठ जाती है। 

तभी राधा अंदर जाती है तो गुजराल साहब के सामने खड़ी हो जाती है। 

अरे बेटी, तुम आ गई ? सब ठीक तो है ना ? कल क्यों नहीं आई गुजराल साहब परेशानी में पूछते हुए। 

हाँ, साहब वो मेरी तबियत खराब थी तो आ नहीं पाई बाकि सब ठीक है। मगर कल से नहीं आ पाऊँगी आपके घर काम करने। 

कल से क्या अभी चली जाओ। हमें जरूरत भी नहीं है तुम्हारी। बहुत मिल जाएँगे काम करने वाले। मगर जाने से पहले ये तो बताओ कि 50,000 रुपये कहाँ छुपाए है तूने? कोई दीन-धर्म तो होता है नहीं तुम लोगों का। जिस थाली में खाते हो उसी में छेद करते हो तुम लोग। 

मेम, मैं कुछ कह नहीं रही इसका मतलब ये नहीं कि आप कुछ भी कहेंगी। हम गरीब जरूर है मगर चोर या बदचलन नहीं जैसा कि आप सोचती है। जरा अपने बेटे से ही पूछिए कि कहाँ है 50,000रुपये। परसों जब मैं सफाई कर रही थी तो सोफे पर पड़े हुए थे तो आप और गुजराल साहब तो थे नहीं घर पर। तो मैंने उन्हें दे दिए अपने घर नहीं ले गई। इतना तो हो ही जाता है घर पर कि दूसरों के घर से चोरी न करना पड़े। रही बात जाल में फँसाने की तो गुजराल साहब अच्छे से जानते है कि कौन किसको फँसा रहा था। नीयत मेरी नहीं आपके बेटे की खराब है राधा गुस्से में बोली। 

ये तुम कैसी बात कर रही हो मुझसे और मेरे बेटे के बारे में ? 

मेम, गुस्सा सबको आता है जानवर को भी। अगर मेरे सच कहने पर आपको गुस्सा आ सकता है तो मुझे मेरे चरित्र पर उंगली उठाए जाने पर कितना गुस्सा आना चाहिए। आपने आज तक जो भी कहा सब सहन किया मैंने। मगर हर चीज की एक हद होती है। मनुष्य के लिए उसका आत्मसम्मान बहुत जरूरी होता है और जिसमें आत्मसम्मान नहीं वो इंसान नहीं जानवर समान है। हम लोगों के घर काम पैसा कमाने के लिए करते है ना कि बेइज्जती करवाने के लिए। गुस्सा हमेशा भी अच्छा नहीं होता और सही वक्त पर गुस्सा आना या करना चाहिए। गुस्से को काबू करना भी आना चाहिए ये नहीं कि गुस्से में अपना नुकसान ही कर बैठो। और मैंने गुस्सा करके कोई पाप नहीं किया क्योंकि बात मेरे आत्मसम्मान की थी। मैंने आपके घर काम हमेशा ईमानदारी से किया। ना मैंने कभी कोई हार चुराया या पैसे। और हाँ, पैसे चुराने की जरूरत आप जैसे घरों के बेटों को पड़ती होगी हमें नहीं क्योंकि हम अपने हक का माँग कर खाते है। जिसमें खाते है उस थाली में छेद नहीं करते...


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