Shashi Aswal

Drama Romance

3.0  

Shashi Aswal

Drama Romance

अर्धपत्नी

अर्धपत्नी

5 mins
357


मैंने बहुत कोशिश की आपको सच बताने की पर कभी हिम्मत नहीं कर पाई। मैं एक लड़के से प्यार करती थी। पती-पत्नी जैसा रिश्ता था हमारा। पर अलग-अलग जात होने की वजह से हमारी शादी नहीं हो सकती थी। फिर हमारा रिश्ता तय हो गया। मन में बहुत बार ख्याल आया कि सब कुछ सच बता दूँ। और शादी की भाग-दौड़ में आपको कुछ बताने का सही समय भी नहीं मिल पाया। मगर सच जानने के बाद आप कहीं रिश्ता ना तोड़ दे और समाज में माँ-बाप की बदनामी के डर से कुछ नहीं कह पाई। ये भी एक वजह थी। पर लोग कहते हैं कि शादी के बाद एक नई जिंदगी शुरू होती हैं। और मैं नहीं चाहती कि हमारी नई जिंदगी की शुरुआत झूठ से हो। क्योंकि जिस रिश्ते की बुनियाद ही झूठ की नींव पर हो वो रिश्ता ज्यादा देर तक नहीं चल पता।

अब आखिरी फैसला आपका हैं कि आप क्या चाहते हैं ? अगर आप रिश्ता तोड़ना चाहते हैं तो तोड़ दीजिए।मैं कुछ नहीं कहूँगी। मगर हाँ, घर से मत निकालिएगा। अब आप सोच रहे होंगे कि मैं कितनी स्वार्थी हूँ। हाँ, मैं स्वार्थी हूँ पर अपने माँ-बाप को लेकर। मानती हूँ कि जो मैंने किया वो गलत किया। जिंदगी के कुछ पलों में कमजोर होकर मैंने गलती कर दी। और शायद उसकी सजा जिंदगी भर भुगतनी पडे़गी मुझे। मैं नौकरानी बनकर घर का सारा काम करूँगी और घर के एक कोने में पडी़ रहूँगी। हलक से आवाज तक नहीं निकालूँगी। आप चाहे तो दूसरी शादी भी कर सकते हैं मैं कुछ नहीं कहूँगी। आखिर आपकी जिंदगी है आप कुछ भी कर सकते है। अगर तब भी आप मुझे घर में नहीं रखना चाहते तो जहर दे दीजिए। क्योंकि मायके से बेटी की डोली उठने के बाद उसकी अर्थी ही जाती हैं। कम से कम मेरे माँ-बाप तो सुकून से रह पाएंगे इस समाज में सम्मान के साथ। मैं उनके माथे का कलंक नहीं बनना चाहती। कहते है कि पत्नी पति की अर्धांगिनी होती है उसके शरीर का आधा हिस्सा। उसके सुख-दुःख, अच्छे-बुरे की साथी। अभी सिर्फ समाज के लिए मैं आपकी पत्नी हूँ, तो अभी अर्धपत्नी हुई आपकी। अब आप पर निर्भर करता है कि आप क्या चाहते है? आपका जो फैसला होगा वो मुझे मंजूर होगा।

                     

आपकी अर्धपत्नी 

     रश्मि 


...........


टैबल स्टैंड पर रखे उस पत्र को पढ़ कर पता नहीं कौन सी सोच में डूब गया सुमित। कमरे के चारों तरफ नजर घुमाई पर रश्मि का कुछ अता-पता नहीं। पत्र को हाथ में ही पकड़कर पहले बाथरूम, दूसरे कमरे, ड्राइंगरूम में ढूँढा और फिर छत में भी गया देखने पर मिली नहीं। थक कर उस पत्र को वहीं टैबल स्टैंड पर रख कर बैड में बैठ गया। पहले तो उसने अपनी आँखें बंद की। कमरे में बस सन्नाटा और उस सन्नाटे में बिखरी हुई उसकी खुशबू थी। अचानक पता नहीं क्या सूझा उसे और वो खिड़की के पास खड़ा हो गया।


अजीब सी उदासी थी उसकी आँखों में, चेहरे पर हल्की सी मुस्कान तो थी पर आँखों से गायब मुस्कराहट। फोटो भी उसकी उदासी को नहीं छुपा सकी। शादी से पहले मिलना तो हुआ पर परिवार के साथ। रंग गोरा, कद 5 फुट, छोटी-छोटी आँखें, चेहरा गोल। बस वो उसकी उदासी को दूर करना चाहता था।


दूसरी तरफ रश्मि बादलों में छुपे हुए चाँद को देख रही थी। जो बादलों से झाँकना चाहता था पर बादल उसके साथ खेल रहे थे। 

आखिर कब तक छुपाते रहोगे यूँ उसे अपने अंदर

कभी तो तुम भी थक-हार कर पीछे हट जाओगे...


अभी मेरी जिंदगी और इस चाँद में कोई फर्क नहीं हैं। दोनों ही उलझे हुए हैं अपने हालत में। रश्मि ने साँस लेते हुए कहा। 

तुम इधर क्या कर रही हो ? सुमित की बातों से वो अपने ख्यालों से निकली। और सीधा उसके पैरों में गिर पडी़ बिना उसे देखे हुए। आप मुझे जहर दे दीजिए। मैं आपके लायक नहीं हूँ। 

इतनी आसान मौत मैं तुम्हें कैसे दे दूँ ? क्या तुम्हें लगता हैं तुम इस काबिल हो ? तुम्हें सारा काम करना पडे़गा मेरे घर का, साफ-सफाई, सबकी जरूरतों को पूरा करना, सबका ख्याल रखना!

हाँ, मैं आपके घर का सारा काम करूँगी नौकरानी बन कर। और आपको शिकायत का कोई मौका नहीं दूँगी। ऐसा कहते हुए वो खडी़ हो गई और जाने लगी वहाँ से।

कहाँ जा रही हो? अभी मेरी बात खत्म नही हुई है। तुमने ऐसा सोचा भी कैसे नौकरानी बनकर? सुमित ने गुस्से में हाथ उठाते हुए कहा।

माफ करे, मैं आपकी गुलाम बनकर रहूँगी। जो अब तक आँसू आँख में कैद थे बह कर झरझर बहने लगे। 

न गुलाम, न नौकरानी, न अर्धपत्नी, न आधी, सिर्फ़ अर्धांगिनी, मेरी अर्धांगिनी और सिर्फ मेरी। उसने रश्मि के चेहरे को हाथों से उठाकर उसके आँसू को पोंछा।

अभी तक नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हुई उसकी पर सुमित की बात को सुनते ही रश्मि की आँखें सुमित की आँखों से मिली एक पल के लिए पर उसने नीचे कर ली। पर मैं इस ओहदे के काबिल नहीं हूँ.. वो मैं...

अब तुम मुझसे बहस करोगी? सुमित ने बनावटी गुस्से में कहा।

नहीं, वो तो मैं... रश्मि आगे कहना चाहती थी पर उसकी जुबान से शब्द ही नहीं निकले। जैसे कि किसी ने उसका मुँह ही सील दिया हो। अब तक खुद को मुश्किल से काबू में रखते हुए अपने जज्बातों को संभालना मुश्किल हो रहा था सुमित के लिए। और रश्मि का कुछ उत्तर न पाकर उसे रहा नही गया और उसने उसे गले लगा लिया। तुम सोच भी कैसे सकती हो कि मैं तुम्हें नौकरानी बनाकर रखूँगा? 

मगर मेरा अतीत..। इतना सुनते ही सुमित ने उसके होंठों पर पर अपनी उंगली रख दी। अगर तुम्हारी जगह मैं होता और मेरा अतीत होता तो क्या तुम मुझे नौकर बनाकर रखती या फिर मुझे छोड़ देती?

नहीं ऐसा तो कुछ नहीं करती क्योंकि गलतियाँ तो सबसे होती है। और गलती का पश्चाताप करना ही सबसे बडी़ बात और माफी है उस शख्स के लिए।

तो फिर, मैं ऐसा क्यों करूँगा ? सबका अपना अतीत होता हैं। और तुम्हारा भी था। मुझे तुम्हारे अतीत से कोई लेना देना नहीं हैं। मैं बस इतना जानता हूँ कि अब हम एक हैं। और आगे हमारा भविष्य हैं। अगर हम अतीत की सोचते रहेंगे तो भविष्य नहीं संवार पाऐंगे अपना। हमें उसे सुंदर बनाना है। मैं कोई गलती करूँगा तो तुम मुझे बताना और समझाना और अगर तुम करोगी तो फिर मैं तुम्हें बताऊँगा। क्या तुम मेरे साथ चलोगी?

हाँ, मैं चलूँगी तुम्हारे साथ और इस बार रश्मि ने भी सुमित को समर्पण की भावना से गले लगाया। अब चाँद जो अब तक बादलों से संघर्ष कर रहा था अब अपनी चाँद की चाँदनी से दोनों पर अपनी रोशनी उडे़ल रहा था जैसे भगवान भी आशिष दे रहे हो उन्हें आसमान से उनकी नई जिंदगी के लिए...


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