कैसी माँ है?
कैसी माँ है?


बहू का तो दूध ही नहीं निकल रहा। अब मुन्ने को क्या पिलाएगी ये? छी-छी क्या कलयुग आ गया है। अरे! दूध तो हमारे जमाने में निकलता था बच्चा पेट से निकला नहीं कि दूध बहना शुरू और अब देखो बच्चा भूख से रो रहा है और इनको दूध ही नहीं निकल रहा। कैसी माँ है ये मुझे तो समझ ही नहीं रहा कुछ अपनी सास के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर सुनीता रुआँसी सी हो गई और बाथरूम में जाकर रोने लगी।
सुनीता और सुरेश की शादी दो साल पहले हुई। घर में चार लोग सास-ससुर, सुरेश और अब सुनीता। शादी के पहले महीने में ही सुनीता की अच्छी कंपनी में नौकरी लग गई। सुनीता घर का काम करके फिर नौकरी पर जाती। शाम को नौकरी से आकर खाना बनाने लग जाती। उसकी सास भी घर के कामों में उसका हाथ बटाती। ससुर जी भी सुनीता से खुश थे कि उन्हें नौकरी करने वाली बहू मिली हैं। सुरेश का व्यवहार भी सुनीता के प्रति अच्छा था। कुल मिलाकर सब अच्छा चल रहा था सुनीता की गृहस्थी में। समय बीतता गया और सुनीता गर्भ से हो गई। परिवार में खुशी का माहौल हो गया। सुनीता की सास सुनीता का अब खासा ध्यान रखने लगी। सुनीता को भी अब थकावट जल्दी हो जाती थी तो सुनीता की सास जानकी जी ने एक दिन कहा
बहू, अगर नहीं होता तो नौकरी छोड़ दे। तेरी सेहत जरूरी है और बच्चे की भी।
नहीं मम्मी जी, ऑफिस में भारी काम तो होता नहीं बस बैठना होता है। सातवें महीने से छोड़ दूँगी नौकरी सुनीता ने कहा।
ठीक है जैसा तुझे ठीक लगे कहकर जानकी जी ने भी बात को रोक दिया।
तय वक्त के मुताबिक सुनीता को अस्पताल ले जाया गया और वहाँ उसने प्यारे से बेटे को जन्म दिया। अस्पताल की नर्स जानकी जी के पास आई और कहने लगी मुबारक हो आपको! पोता हुआ है। इसी खुशी में नेग तो बनता है नर्स ने मुस्कुराते हुए कहा।
हाँ...हाँ क्यों नहीं। सुनो सुरेश कुछ पैसे देना जानकी जी ने सुरेश की तरफ देखते कहा।
सुरेश से पैसे लेकर जानकी जी ने नर्स को दे दिए तो नर्स वहाँ से खुश हो कर चली गई। नर्स ने डिलीवरी रूम में पहुँच कर सुनीता को कपड़े पहनाए और उसे व्हील चेयर पर बैठाकर दूसरे कमरे में ले गई। तब तक सुनीता जी भी आ गई और सुनीता के पास बैठ गई।
बहू, अभी तक इन्होंने बच्चा नहीं दिया। तुझे कुछ पता है क्या जानकी जी ने सुनीता से पूछा।
नहीं मम्मी जी, मुझे कुछ नहीं पता सुनीता ने उदास होकर कहा।
दिन हुआ फिर रात हो गई मगर बच्चे के कुछ पता नहीं। रात में एक डॉक्टर आई उसने सुनीता का नाम लिया और कहने लगी
बच्चे को भूखा मरना हैं क्या? दूध निकालो। तुम्हारा बच्चा बाहर का दूध नहीं पचा पा रहा। उल्टी कर रहा है बार-बार। जल्दी से दूध निकालो और ऊपर पहुँचाओ।
सुनीता डॉक्टर के मुँह से ऐसे शब्द सुनकर स्तब्ध रह गई। उसे तो पता ही नहीं कि बच्चा कहाँ है देखना तो दूर की बात और किसी ने बताया भी तो नहीं। दूध कहाँ से निकालूंगी जब बताया नहीं।
चल बहू, दूध निकाल ले बच्चे के लिए कहकर जानकी जी ने कटोरी दी सुनीता को। मगर दूध तो निकल ही नहीं रहा। दूसरे से भी कोशिश की मगर कुछ नहीं निकला।
आधी रात को फिर से वही डॉक्टर आई और कहने लगी आपके बच्चे को ऊपर वाले डिपार्टमेंट में शिफ्ट कर दिया गया है। अपने साथ आई किसी एक औरत को मेरे साथ भेजो। वो बच्चे के साथ ऊपर जाएगी। जानकी जी डॉक्टर के साथ चले जाते हैं। आधी रात को जानकी जी सुनीता के पास आती हैं और दूध निकालने को कहती हैं मगर तब भी दूध नहीं निकलता। जानकी जी सुबह फिर से आती है और दूध के लिए कहती है।
बहू, तेरा ही बच्चा रात से रो रहा है। दूध निकालोगी तभी तो उसे पिलाएंगे। डॉक्टर भी कितना गुस्सा कर रहे हैं जानकी जी ने खीझते हुए कहा।
मम्मी जी कोशिश तो कर ली कई बार मगर नहीं निकल रहा। उन्होंने तो बच्चे को भी नहीं दिखाया। कहते हैं कि अगर बच्चे को छाती स
े लगाओ या स्तन पर लगाओ तो दूध निकलने लगता है। मगर मैंने तो अभी तक उसको देखा भी नहीं सुनीता ने उदासी से कहा।
कैसी माँ है जो दूध नहीं निकल रहा। बच्चे का वहाँ रो-रो कर बुरा हाल है। तेरा ही दूध कैसे नहीं निकल रहा और ना जाने क्या-क्या बोलती गई जानकी जी। सुनीता रुआँसी होकर बाथरूम में चली गई और उसके आँसू बहने लगे। दिन में वही डॉक्टर फिर से आती है और साथ चलने को कहती है। पास के ही बेड पर एक औरत थी उसकी लड़की हुई थी तो साथ में उसके सास भी बैठी थी तो वो कहने लगी "देख इसका तो दूध भी नहीं निकल रहा। शुक्र मना तेरा तेरा दूध निकल रहा है।" सुनीता को बुरा तो लगा मगर उसने कुछ नहीं कहा और डॉक्टर के साथ चली गई।
जब अंदर जाती है तो उसका बच्चा मशीनों में होता है। अपने बच्चे तो ऐसा देखकर उसके आँसू आ आते है। थोड़ी देर वहाँ रहकर वो वाशरूम जाती है तो उसे जानकी जी की कही हुई बातें याद आ जाती हैं।
ठीक ही तो कह रही थी मम्मी जी कि मैं कैसी माँ हूँ? मेरा बच्चा वहाँ भूख से तड़प रहा है और मेरा दूध ही नहीं निकल रहा। अपने बच्चे को दूध भी नहीं पिला सकती मैं। वो तो अभी नन्ही सी जान है कहकर सुनीता फूट-फूटकर रोने लगी लेकिन खुद को संभालते हुए अपने बच्चे के पास चली गई। सुनीता को बाद में पता चला कि उसके बच्चे को पीलिया हो गया है। अब वो और भी ज्यादा परेशान हो गई।
उधर जानकी जी एक औरत से बात कर रही थी। मेरी बहू का तो दूध ही नहीं निकल रहा और पोते को पीलिया हो गया है। कैसा समय आ गया है हमारे जमाने में तो दूध छर्र-छर्र निकलता था बच्चे के लिए। अब पता नहीं क्या होगा? चूंकि वो औरत समझदार थी तो उसने पूछा आपकी बहू का पहला बच्चा है? जानकी जी ने हाँ कहा। औरत ने कहा - कभी-कभी पहले बच्चे के समय दूध निकलने में समय लगता है तकरीबन 3-4 दिन। आपको तो इस समय अपनी बहू को हौसला देना चाहिए कि सब ठीक हो जाएगा। वो तो पहली बार माँ बनी है। उसके लिए सब नया है और ऊपर से बच्चे को पीलिया हो गया है तो वो भी परेशान होगी। आखिर कौन सी माँ होंगी जो अपने बच्चे को भूख से बिलखता देख खुश होगी। कोई नहीं चाहता कि उसका बच्चा भूखा रहे। बच्चा होने के बाद माँ मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर हो जाती है। उसे किसी सहारे की जरूरत होती है। औरत की बात सुनकर जानकी जी को अपनी गलती का अहसास हुआ।
सुनीता को एक डॉक्टर ने कहा कि वो बच्चे को छाती से लगा कर रखे और बच्चे का मुँह स्तन पर लगाए। बच्चा स्तनों को चूसेगा तो दूध जल्दी आ जाएगा। दो-तीन दिन में सुनीता का दूध निकलने लगा। उसे इतनी खुशी हुई जैसे उसने कोई जंग जीत ली हो। सबसे पहले तो उसने बच्चे को स्तनपान करवाकर दूध पिलाया फिर अपनी सास के पास गई।
मम्मी जी, दूध निकलने लग गया सुनीता ने खुशी से कहा। मैंने बच्चे को भी दूध पिला दिया है।
अच्छी बात है बहू दूध निकलने लग गया। सबसे पहले तो तू मुझे माफ कर दे। मैंने तुझे बहुत बुरा बोला दूध ना निकलने को लेकर बल्कि इस समय तो तुझे मेरी ज्यादा जरूरत थी। ना जाने क्या-क्या कह दिया मैंने तुझे। मैं बस बच्चे की सेहत को लेकर चिंतित थी।
मम्मी जी, सच कहूँ तो मुझे आपकी बात का बहुत बुरा लगा। मैं मन से नहीं चाहती थी कि मेरा दूध ना निकले। एक माँ के लिए इससे बुरा क्या हो सकता है कि वो अपने बच्चे की भूख को शांत ना कर सके। उसे भूख से तड़पता देखती रहे बेबस होकर। अब जब आपको गलती का अहसास हो गया हैं तो अच्छी बात हैं मगर जो शब्द आपके मुँह से निकले वो वापिस तो नहीं हो सकते मगर मैं कोशिश करूँगी आपको माफ करने की।
कुछ दिनों तक सुनीता के बच्चे की फोटो थेरेपी चलती रही और जब बच्चा पूरी तरीके से सही हो गया तब सुनीता को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। घर आकर जानकी जी ने सुनीता की बहुत देखभाल की और अपनी गलती का प्रायश्चित किया।