ज़िंदगी जो खो गई थी!
ज़िंदगी जो खो गई थी!
जीवन की गाड़ी अपनी गति से आगे बढ़ी जा रही थी। रीमा और राघव भी उसकी नदी के दो किनारों की तरह साथ साथ रहते हुए भी एक दूरी बनाए आगे बढ़े जा रहे थे। ऐसा कब और कैसे हुआ इसका कभी आभास ही नही हुआ था दोनो को। इस दूरी को दोनो तब समझ पाए जब डॉक्टर ने बताया की रीमा को ब्रेन ट्युमर है। राघव को अब स्वयं पर रोष हो रहा था कि उसने अपनी उन्नति और पैसा कमाने की होड़ में रीमा पर कितने सालों से ध्यान ही नही दिया। रीमा ने भी पाया कि परिवार की देखभाल और राघव की तरक़्क़ी के पीछे उसने अपनी अनदेखी का नतीजा अब उसे ज़िंदगी के बीच रास्ते में झेलने पड़ रहा है। क़्यों नही कभी उसने राघव से कहा की वह अपनी गति थोड़ी धीमी करे और कुछ पल उसके साथ भी गुज़ारे।
रीमा और राघव एक ही कम्पनी में काम करते थे और अच्छे दोस्त थे। दोस्ती की नज़दीकियाँ इतनी बढ़ गई की दोनो दोस्त से पति-पत्नी बन गए और पति-पत्नी के बाद माता-पिता, इसबीच दोस्ती कहीं खो गई। रीमा ने शादी के बाद काम छोड़ दिया था। शुरुआत तो बहुत सुंदर था, हर शाम राघव का जल्दी घर आना, साथ में चाय पीना, शनिवार-रविवार को कहीं घूमने जाना। बच्चों के आने से दोनो की जिम्मेदारियाँ बढ़ी। रीमा का सुबह पाँच बजे उठना और काम निपटना, राघव का देर रात घर आना ताकि घर की ज़रूरतें पूरी कर सके।
अब दोनो के बीच के सम्बन्ध बस नाश्ता कर लो, टिफ़िन दे दो, आज ज़्यादा देर से आऊँगा, आज बच्चों के स्कूल की फ़ीस भर देना इत्यादि तक सीमित हो गयी थी। एक-दूसरे के साथ समय बिताना तो डोर था। ना रीमा को ध्यान रहता की पूछ ले ऑफ़िस में कैसा चल रहा है, ताकि राघव अपने अंदर की भड़ास निकाल सके और ना ही राघव के पास समय था की पूछ ले रीमा दिनभर भागती दौड़ती थक तो नही जाती हो ताकि रीमा के स्वास्थ के बारे में पता चले। ऐसा लगभग दस बारह वर्षों से चल रहा था।
आज जब सुबह राघव को हाथ में टिफ़िन देते वक्त रीमा चक्कर खा कर गिर गई तो राघव ने उसे उठा कर बिस्तर पर लिटाया और पूछा कि वह कैसी है। रीमा ने कहा कुछ नही हुआ है बस थोड़ी कमजोरी होगी। तुम ऑफ़िस जाओ अब ठीक है। शायद राघव भी निकल ही जाता ऑफ़िस को लेकिन काम वाली अम्मा से नही रहा गया और वह बोल ही पड़ी बेटा इसे पिछले कई महीनों से चक्कर आ रहे हैं इसकी जाँच किसी डॉक्टर से करवाओ। जाँच के बाद जो डॉक्टर ने कहा वह सुन दोनो सन्नाटे में आ गए थे। जब डॉक्टर ने कहा घबराने कि बात नही है, अभी देर नही हुई है अब बस इनका पूरा ध्यान रखें साल भर में सब सामान्य हो जाएगा, तब दोनो थोड़े सूकून में आए।
घर आकर रीमा और राघव ने निर्णय लिया की वे अपने बीते हुए दिन फिर वापस लाएँगे। अगले दिन से दोनो सुबह साथ जागते और सैर पर जाते जहां दोनो ढेरों बातें करते। सुबह का नाश्ता साथ करते और राघव भी घर समय पर आ जाता ताकि रात का खाना भी साथ हो सके। दोनो के बीच की दोस्ती अब फिर वापस आने लगी थी।
ऐसा कई बार होता है की गृहस्थी की चक्की के बीच पति-पत्नी के बीच की दोस्ती कहीं खो सी जाती है और किसी एक के जाने के बाद ही इसका अहसास हो पता है। रीमा और रगहव ने समय रहते इसे बचा लिए जो बहुत ही ख़ास है।

