Ravindra Shrivastava Deepak

Tragedy Inspirational

4.0  

Ravindra Shrivastava Deepak

Tragedy Inspirational

जीत..एक संघर्ष

जीत..एक संघर्ष

3 mins
300


बाबूजी, मुझे अभी शादी नहीं करनी है। मैं अभी और पढ़ना चाहती हूँ। अपनें पैरों पर खड़ी होना चाहती हूँ। मुझे डॉक्टर बनना है। मैं डॉक्टर बनकर इस देश की सेवा करना चाहती हूँ। मैं अपनें अरमानों को पूरा करना चाहती हूँ। आराधना के इतना कहते ही पंकज सिंह बोले- अब कितना पढ़ेगी तू ? तेरी उम्र शादी की हो गई। मैट्रिक पास कर ली तूने। अब ज्यादा पढ़ने की जरूरत नहीं तुझे। अच्छा सा लड़का देख तुम्हारी शादी करा दूँगा। फिर चाहे जो करना ससुराल में।

आराधना एक ऐसी लड़की जिसके ख़्वाब बहुत बड़े थे। उसके अंदर अनेक ख्वाहिशें कुलांचे भर रहे थे। मैट्रिक में जिले भर में उसने टॉप किया था। वह डॉक्टर बनना चाहती थी। मगर उसके पिता पंकज सिंह उसकी शादी करवाना चाहते थे। उनके आगे किसी की नहीं चलती थी।

आराधना, तुमने तो कमाल कर दिया। पूरे जिले में टॉप की की हो। रेखा (आराधना की दोस्त)

रेखा, क्या बताऊँ तुम्हें। मेरे टॉप आने की खुशी से ज्यादा दुःख तो इस बात का है कि मैं आगे पढ़ना चाहती हूँ और बाबूजी मेरी शादी कराना चाहते है। लेकिन मुझे अभी शादी नहीं करना। मेरे भी सपने है। मैं डॉक्टर बनना चाहती हूँ। हमारे गाँव का कायाकल्प करना चाहती हूँ। अगर शादी हो गई फिर कुछ नहीं कर पाऊँगी। (कहते हुए आराधना रो पड़ी)

अगले दिन, बेटी आराधना। आज 12 बजे तुम्हें लड़केवाले देखने आएंगे। इसलिए तैयार रहना।

बाबूजी, मुझे अभी शादी नहीं करनी। अभी मेरी उम्र ही क्या है। मुझे और आगे पढ़ना है। माँ, आप ही समझाओ न बाबूजी को।

आराधना, जितना बोलूं उतना ही करो। ज्यादा दिमाग मत चलाओ। सुशीला, इसे ले जाकर तैयार करो। लड़केवाले आते ही होंगे। लड़का भी साथ आनेवाला है।

मगर एक बार सोचिए तो। वो बोल रही है तो उसे....सुशीला तुम चुप रहो। इसका साथ देने की जरूरत नही। मैं भी इसका बाप हूँ। मुझे भी इसकी चिंता है। इसके पहले सुशीला कुछ बोलती पंकज सिंह ने उसे चुप करा दिया।

ठीक 12 बजे लड़केवाले आए। आइए, रमन जी। आपका स्वागत है। पंकज सिंह बोले।

बहुत बहुत शुक्रिया। पंकज जी।

ये मेरा बेटा अमित है। नमस्ते अंकल।

खुश रहो बेटा। पंकज सिंह बोले।

मेरी बहु को बुलाइये पंकज जी। आगे की बात हो अब।

जी, बिल्कुल, रमन जी।

भाग्यवान, आराधना को भेजो।

आराधना, नाश्ते की थाली लिए धीरे-धीरे न चाहते हुए भी बाहर आई। थाली रखकर उसने प्रणाम किया।

आराधना को देखने के बाद रमन जी ने बोला- लड़की हमें पसंद है। आप पंडित जी से मिलकर शुभ मुहूर्त निकलवाइये।

जी, बहुत बहुत शुक्रिया रमन जी। मैं आपको खबर कर दूँगा।

मगर यहाँ आराधना के ज़हन में कुछ और ही चल रहा था। उन लोगों के जाने के बाद आराधना अपने कमरे में चली गई और दरवाज़ा बंद कर लिया।

2-3 घंटे तक दरवाज़ा नहीं खुलने के बाद सुशीला ने आराधना को आवाज़ लगाई पर आराधना नें कोई जवाब नहीं दिया। 4-5 बार पुकारने पर भी नहीं बोली।

अब सुशीला को चिंता हो गया। उसनें दरवाजा पीटना शुरू किया मगर उन्हें कोई हलचल न दिखी। सुशीला अब घबरा गई थी। दिल में डर बैठ गया कि कही कुछ गलत तो नहीं कर लिया आराधना नें। सुशीला नें जोर से पंकज सिंह को बुलाया।

- क्या सच में आराधना नें कुछ गलत कर दिया ?

- क्या उसने आत्महत्या कर ली ?

- अपने जीवन को लेकर इतना दुःखित क्यों थी ? शादी के अलावा भी कोई वजह थी ?

इन सभी प्रश्नों के उत्तर अगले भाग में...



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