Ravindra Shrivastava Deepak

Tragedy Inspirational Thriller

4.0  

Ravindra Shrivastava Deepak

Tragedy Inspirational Thriller

जीत...एक संघर्ष (अंतिम भाग)

जीत...एक संघर्ष (अंतिम भाग)

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आज एक खबर नें आराधना की जिंदिगी में भूचाल ला दिया। अमित शराब के नशे में एक ट्रक के नीचे आ गया जिससे उसकी जान चली गई। आज आराधना पूरी तरह से इस दुनियां में अकेली हो गई। आज उसका सुहाग भी उससे छीन गया।

उसके पास पड़ोस वाले उसे बदचलन, डायन जिसनें अपनें पति को खा गई जैसे अनेक गालियाँ देकर उसे प्रताड़ित करने लगे। इन सबकी बातें सुनसुनकर आराधना अंदर ही अंदर रोती थी। भगवान से अकेले में रोते हुए पूछा करती की आख़िर मेरे ही साथ ऐसा क्यूँ ? इतना दुःख क्यूँ ? इतना अपमान क्यूँ सहना पड़ रहा है मुझे ? फिर रोने लगती।

उधर उसके ऑफिस वाले भी उसे तरह तरह से प्रताड़ित करते थे। कुछ लोग तो उसे गंदी निगाहों से देखते थे। उनसभी का रोज उसे सामना करना पड़ता था।

लेकिन इस सब के बावजूद भी आराधना नें अपनी तैयारी नही छोड़ी थी। समय निकाल कर अपनी पढ़ाई पूरी करती रही। उसनें अपनें हौसलों को कभी कम नही होने दिया। पर शायद जिंदिगी नें उसके भाग्य में जैसे दुःख और सिर्फ इम्तिहान ही लिखा था।

एक दिन जब वो घर पहुंची तो उसके होश ही उड़ गए। घर में समान पूरी तरह से बिखरा पड़ा था। जलने की दुर्गंध आ रही थी। उसकी धड़कन तेज हो गई। दौड़ के वह किचन कि तरफ भागी। फिर जो उसनें देखा उसके पैरों तले जमीन घिसक गया। उसे विश्वास ही नही हो रहा था। उसकी सास पूरी तरह जल चुकी थी। वो दम तोड़ चुकी थी। थोड़ी ही दूरी पर उदय भी गिरा पड़ा मिला। वो भी जल चुका था और तड़प रहा तब पर उसकी सांसे अभी बाकी थी। ये सब देखकर आराधना की स्थिति जो थी शायद बयां करना मुश्किल है।

फिर भी आराधना नें खुद को संभाला और उदय को किसी तरह हॉस्पिटल में भर्ती कराया।

आराधना- डॉक्टर, उदय बच जाएगा न।

डॉक्टर- देखिये उसकी बॉडी 90% जल चुकी है। हम अपनी पूरी कोशिश कर रहे है उसे बचाने की। आगे अब सब भगवान के ऊपर है।

आराधना- डॉक्टर, किसी भी तरह उसे बचा लीजिए। इस दुनियां में मेरा कोई नही है उसके सिवा। (रोते हुए आराधना नें डॉक्टर के पाव पकड़ लिए)

डॉक्टर- अरे, ये आप क्या कर रही है। खुद पर काबू रखिये। उठिए। सब ठीक हो जाएगा। धीरज रखिये। भगवान से उसके लिए प्रार्थना कीजिये।

इतना सब होने के बाद शायद खुशियों का दौर आराधना के लिए आनेवाला था।

हॉस्पिटल में ही एक कोने में बैठ ऑपरेशन के इंतज़ार कर रही थी। इसी क्रम में आराधना के एमबीबीएस के परीक्षा का रिजल्ट आया। उसने टेलीविजन पर देखा कि उसने भारत में टॉप किया है। उसकी मेहनत, लगन, और निष्ठा नें उसे इस परीक्षा में पूरे भारतवर्ष में टॉपर बना दिया। सभी जगह सिर्फ आराधना के ही चर्चे होने शुरू हो गए। उसनें सभी को पीछा छोड़ते हुए भारत में प्रथम स्थान पाया। आज उसके ख्वाबों को सच में पंख लग चुके थे। ये सब देखते ही उसके आंखों से खुशी के आँसू निकल पड़े। पर उदय के हालात देखकर उसकी खुशी कम हो गई।

ऑपरेशन होने के बाद जब डॉक्टर आये तो बताया कि अभी एक और ऑपेरशन करना बाकी है।

तभी उनकी नजर टेलीविजन पर आ रही खबर पर पड़ी। अरे...ये तो शायद आप ही है न।

जी, मेरा ही नाम आराधना है। ये मैं ही हूँ। मेरा बचपन से डॉक्टर बनने का सपना था, जो आज पूरा हो गया।

सभी डाक्टरों नें आराधना का बहुत स्वागत किया। उसके मेहनत और विश्वास का बहुत तारीफ़ किये। फिर डॉक्टरों नें एक योजना के तहत अगले ऑपेरशन में आराधना को भी शामिल करने की सोची।

जब आराधना को पता चला कि उसे भी ऑपेरशन में जाना है तो उसके आंसूं निकल गए। आज उसे नियति नें खुद के बेटे के आपरेशन के लिए चुना। उसनें ईश्वर का शुक्रिया अदा किया।

लगातार 3 घंटे के आपरेशन के बाद उदय नें मौत से जिंदगी छीन ली। उसका ऑपेरशन सफल हुआ। डॉक्टरों नें आराधना को बहुत बधाई दी। इस तरह आराधना नें अपनें अनेक मुश्किलों का सामना करते हुए अंततः अपनें सपनें को पूरा किया। आज उसकी ज़िंदगी बदल गई। आज वह टॉप डॉक्टरों में से एक है।

समय नें उससे बहुत कुछ छीने मगर जब दिया तो भरपुर दिया। आज उसकी जीत सिर्फ उसके हौसले, उसकी निष्ठा और उसके निरंतर अभ्यास से मिला। आज वह सफलता के पंख लगा आसमान की ऊंचाइयों को मापने में सक्षम थी। वास्तव में ये जीत किसी विशाल पर्वत जैसे संघर्ष से कम न था।

आज भी ऐसे कितनें आराधना है जिन्हें रूढ़िवादी सोंच का सामना रोज करना पड़ता है। समाज नें कार्यों को भी स्त्री पुरुष में बांट दिया है। ये काम लड़का करेगा तो ये काम लड़की करेगी। मगर मेरा मानना है कि आज लड़कियां लड़कों से किसी भी क्षेत्र में कम नही। जरूरत है समाज को अपनी मानसिकता बदलने की। उन्हें भी वो बेहतर अवसर मिले की वो अपनें सपनों को पूरा कर सके। समाज लिंगभेद करना बंद करे। कभी समाज इतिहास के पन्नों को उलट के वीरांगनाओं के बारे में पढ़े। उनकी मानसिकता बदल जाएगी। स्त्रियों के प्रति उनकी रूढ़िवादी सोंच शायद बदल जाये। उन्हें यथोचित सम्मान दें। कभी आपसब सोचिएगा इस बारे में। फिर एक नई कहानी के साथ जल्द ही।

आपको अपनें चंद पंक्तियों के साथ छोड़े जा रहा हूँ।

बाखुदा हासिल करता ख़ुदा अपना, उसे ग़म का होश नहीं,

आवाम उससे मनभेद करता, इसमें उसका कोई दोष नहीं।


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