Ravindra Shrivastava Deepak

Drama Thriller

4.0  

Ravindra Shrivastava Deepak

Drama Thriller

आख़िर क्यूँ..?

आख़िर क्यूँ..?

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आज आखिरकार आकाश को उसकी मंजिल मिल ही गई। मिले भी क्यों न ! आख़िर बेटा किसका है। कहते हुए रमेशजी (आकाश के पिता) की फुले नहीं समा रहे थे। आकाश का सेलेक्शन आर्मी में ऑफिसर के तौर पर हुआ है।

उधर, आकाश अपनी इस जीत की खुशी और सफलता के इस पड़ाव पर आकर बहुत खुश था। उसे अपनें उन संघर्षों की याद आ रही थी जब वह इस मुकाम को पाने के लिए जूँझ रहा था।

क्या वो भी दिन थे। सोचते हुए कब सफर कट गई, पता ही नहीं चला। स्टेशन आ गया। आकाश घर पहुंचा। सबलोगों ने उसका ख़ूब स्वागत किया।

ट्रेनिंग पर अगले महीने जाना था तो सोचा कि घर पर आ कर आपलोगो का आशीर्वाद भी ले लूं। (आकाश)

क्यों नहीं बेटे। तुमनें मेरा सर ऊंचा कर दिया। समाज मे मेरी और इज्जत बढ़ गई। हम दोनों आज बहुत खुश है। (रमेश जी बोले)

आकाश गाँव आनेवाला है और उसकी नौकरी लग गई ये सुनकर उसके बचपन का दोस्त रंजन भी उसका इन्तिज़ार कर रहा था। उसे भी जब पता चला तो वो भी फौरन चला आया।

जय हिन्द सर। कैप्टन रंजन रिपोटिंग सर। आकाश पीछे देखा तो ख़ुशी का ठिकाना न रहा। बचपन का दोस्त रंजन था। दोनों एक दूसरे के गले लग गए। आज दोनों बहुत खुश थे।

आकाश- अभी से सैल्यूट मार रहा है।

रंजन- क्यों नहीं। मेरा यार आज ऑफिसर बन गया। इससे बड़ी खुशी की बात मेरे लिए और क्या हो सकती है।

तभी शारदा (आकाश की माँ) की आवाज़ आती है खाना आकर खा लो। चल मां खाने के लिए बुला रही है। चलो, चले।

आकाश, जॉइनिंग कब से है तुम्हारी ? अगले महीने 5 को। यार, वैसे आजकल तूं क्या कर रहा है ?

नहीं कुछ आकाश, कोशिश तो मैं भी कर रहा हूँ कि अच्छी सी नौकरी मिल जाये। लेकिन अभी मिली नहीं। वैसे एक छोटा सा बिज़नेस कर रहा हूँ, वही चल रहा है।

और बता घर के बारे में ? सब ठीक है न ? आंटी, अंकल कैसे है ? (आकाश)

सबलोग ठीक है आकाश। तुम तो जानते ही हो। बस एक बहन (कुसुम) है जिसकी शादी करनी है। हो जाये तो इस भाई का भी फर्ज अदा हो जाये।

(इन बातों को कहते वक्त रंजन थोड़ा नर्वस महसूस कर रहा था, जैसे मानो की कुछ छिपा रहा था) तभी, रंजन का मोबाइल बजता है।

हैलो - कौन ? कुछ आगे बात होती, इससे पहले रंजन बिना कुछ कहे वहाँ से फौरन चला गया। आकाश के पूछने पर भी वह नहीं रुका। बस इतना बोला कि बाद में बताऊंगा।

फ़ोन आने के तुरंत बाद ही रंजन चला गया। इधर, आकाश को इस तरह का व्यवहार रंजन का करना, समझ नहीं आ रहा था। उसे लगा कुछ तो गड़बड़ है।

रंजन घर पर पहुँचा तो देखा कि उसकी बहन की तबीयत सही नहीं थी। पापा नें उसे फ़ौरन आने के लिए कॉल किया था क्योंकि कुसुम की हालत नाज़ुक थी। उसे तुरंत हॉस्पिटल ले जाना था।

डॉ- कुसुम की हालत बहुत ही सीरियस है। शी हैज टेकेन ओवरडोज ऑफ ड्रग्स।

ये क्या कह रहे है डॉक्टर ? कुसुम और वो भी ड्रग एडिक्ट। नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। सुरेश जी (कुसुम के पिता)

रंजन बेटा, ये क्या कह रहे है ? कुसुम, जो ड्रग लेती है (रोते हुए, कुसुम की माँ)

रंजन को सूझ नहीं रहा था कि आख़िर वो क्या करे। मन ही मन डर भी रहा था क्योंकि असली गुनाहगार तो वही था। काम न मिलने, न कमाने के उलाहने और जरूरतों के आगे वो झुक गया और ड्रग्स की हेराफेरी करने लगा। इसे ही लोगो को बिजनेस बताता था। काम पूछने पर ज्यादा बताता नहीं था। यहाँ तक कि उसके माता-पिता भी सही से नहीं जानते थे। पर कुसुम को रंजन के बारे में पता था। लेकिन उसने किसी को बताया नहीं था। उसके दोस्त भी सही नहीं मिले। उन्होंने इसकी लत उसे भी लगा दी। घर में ही उसे आसानी से मिल जाती थी। ओवरडोज़ के कारण ही उस दिन सभी को पता चला।

इधर आकाश अपनी ट्रेनिंग पूरी कर अफसर बनकर छुट्टी पर फिर आया। उसे वर्दी और कंधे पर सितारे देखकर रमेशजी के आंखों में आंसू और वो खुशी से फूले नहीं समा रहे थे। आज तुमनें मेरा सर फक्र से और ऊंचा कर दिया आकाश। (रमेश जी)

ये आपके और माँ के आशीर्वाद का ही प्रतिफल है कि आज मैंने अपनें सपनें को पूरा किया।

बातों बातों में, आकाश नें रंजन के बारे में पूछा तो पता चला कि वो लोग कही और रहने लगे है। आकाश नें रंजन के पास-पड़ोस के लोगो से पूछा पर उसे पता नहीं चल पाया।

एक दिन, आकाश रिव्यु के लिए पास के थाने में घूमने के लिए गया। वहाँ पहुंचकर उसनें अपना आई-कार्ड दिखाया तो थानेदार ने बहुत इज्जत दिखाई।

आकाश- थानेदार साहब बढ़िया है न।

थानेदार- जी सब तो ठीक ही है लेकिन स्मगलिंग, कोकीन, ड्रग्स जैसे धंधे काफी बढ़ गए है। उनका पकड़ा जाना बहुत कठिन हो रहा है। अभी बात चल ही रही थी कि थानेदार के पास कॉल आया कि स्मग्लर्स आज कही मीटिंग करनेवालें है। आकाश नें बोला कि चलिए मैं भी चलता हूँ। थानेदार के मना करने पर भी आकाश नहीं माना और साथ में चल दिया।

पुलिस को देखनें के बाद सभी गुंडे वहां से भागने लगे। आकाश भी उनके पीछे भागा। दोनों तरफ से फायरिंग भी हुई। दो गुंडे मुठभेड़ में मारे गए। तभी एक के बाएं हाथ में गोली लगी थी वो भागने की कोशिश कर रहा था। आकाश ने उसका पीछा किया तो वो भाग निकला लेकिन उसके पर्स ने सारे राज खोल दिये जिसे देख कर उसकी आंखे फटी रह गई। ये कोई और नहीं खुद आकाश का दोस्त रंजन था।

आकाश को रंजन के बारे में पता चल चुका था। मगर हाथ न आने के चलते उससे वो जानकारी मिल नहीं पाई की आख़िर रंजन ने ऐसा क्यूँ किया।

घर पर आने के बाद आकाश नें सारी बातों को अपनें पापा से बताया। सुनकर वो लोग भी चौक गए। रंजन तो नेक लड़का था। भला उसनें ऐसी गलती क्यों की। अभी यही बातें चल ही रही थी तभी डोर बेल बजा। देखो तो आकाश कौन है दरवाजे पर। (रमेश जी) जैसे ही आकाश नें दरवाजा खोला तो एक नकाबपोश नें उसपर गोली चला दी। धायं..धायं। मगर आकाश भी चौकन्ना था। गोली उसके दाएं हाथ को छू कर निकल गई। आकाश उसे पकड़ता इसके पहले ही नकाबपोश वहां से भाग निकला।

अरे बेटा, ये क्या हो गया ? कौन था वो ? उसनें तुमपर गोली क्यों चलाई ? (रमेश जी, घबराते हुए) पापा, मैं भी नहीं जानता। बैठो यहाँ। फिर उन्होंने डॉक्टर को बुलाया।

आकाश भी सोच में पड़ गया कि आख़िर मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है। मैनें किसी का क्या बिगाड़ा है। इसी सब को बैठे-बैठे सोचनें लग जाता है।

उधर, रंजन का पर्स आकाश के हाथ लग चुका था। वो बहुत ही परेशान था की अब वो कैसे खुद को बचा पाएगा।

इधर ये सब कुछ चल रहा था लेकिन आकाश लगातार पुलिस के संपर्क में था। घटना के 10 दिनों के बाद आकाश को कॉल आया।

हैलो..! आकाश बोल रहे हो ?

हाँ, मैं आकाश बोल रहा हूँ। आप कौन ?

न जानों तो बेहतर है। तुमपर जिसने गोलियां चलाई उसे पकड़ना हो तो आज रात 10 बजे बुलंदपुर रोड, पुरानी हवेली के पास आकर मिलो। मगर होशियारी मत दिखाना। अकेले आना। पुलिस को बीच में मत लाना।

ठीक है। मैं अकेले ही आऊंगा। (आकाश)

इधर अकाश नें अपनें घर पर बताया। फिर पुलिस को फ़ोन कर अपनें प्लान के बारे में बताया।

ठीक समय पर दिए हुए पते पर आकाश पहुँचा।

हैलो..! कोई है ? मैं आ गया हूँ ? देखो, मैं अकेला हूँ।

तुम कहाँ हो ?

तभी वही नकाबपोश बाहर निकला। अरे...! तुम तो वही हो जिसने मुझे मारने की कोशिश की थी। आख़िर तुम मुझे मारना क्यों चाहते हो ? तुम हो कौन ? मुझसे क्या दुश्मनी है ? (आकाश ने उससे पूछा)

इतना पूछनें पर उसनें अपनीं नकाब जैसे ही हटाई आकाश की आंखे खुली रह गई। ये कोई और नहीं खुद रंजन था।

ऐसा तुमनें क्यूँ किया रंजन ? आख़िर क्यूँ..? आख़िर क्यूँ..?

तुमसे मेरी दुश्मनी तो 10वीं से ही हो गई था। हर बार तू ही वर्ग में टॉप आता था। सारे शिक्षक का प्यारा तू ही था। कॉलेज में भी लड़कियों का चहेता था। यही मुझे खटकती थी। तू दिन पर दिन बढ़ता गया और मुझे धक्के खाने को मिला। ये तो फिर भी कुछ भी नहीं। मेरी बहन, माँ और पापा के क़ातिल भी तुम ही हो आकाश।

मैं क़ातिल हूँ ? मैनें कुसुम का हत्यारा हूँ..! ये तुम क्या कह रहे हो रंजन ? (आकाश चौक गया)

क्या ये सच नहीं है कि कुसुम तुमसे प्यार करती थी ? या ये सच नहीं है कि तुमनें उसे मरने पर मजबूर किया ?

ये सच नहीं है रंजन। हाँ, उसनें एक बार बोला था की वो मुझसे प्यार करती है लेकिन मैंने उसे साफ मना कर दिया था। (आकाश)

उसके बाद इसी ग़म में वो ड्रग्स की आदि हो गई। एक बार ओवरडोज लेने से उसकी मौत हो गई। उधर माँ और पापा इस सदमें को बर्दाश्त न कर सके और उनकी भी मौत हो गई। चूकि अब मेरे जीने का एक ही मकसद था और वो था 'बदला' और सिर्फ बदला। जो आज मैं तुमसे ले कर रहूँगा।

तुम क्या जानों रंजन। तुम मुझे बेवकूफ समझते हो ? हा.. हा.. हा...मुझे तुमपर पहले ही शक हो गया था। उस दिन जब नकाबपोश नें गोलियां चलाई तो यही जूते उसनें पहनें थे। तुम्हारे गर्दन पर जो कट मार्क है उसे भी मैंने देेेेख लिया था। मैंं कारण जाननें के लिये अबतक चुप था। जो कुछ भी हुआ भूल जाओ। अब तुम अपनें आपको मेरे हवाले कर दो। इसी में तुम्हारी भलाई है। इसके पहले कुछ आकाश समझ पाता रंजन नें जैसे ही गोलियां चलाने की कोशिश करता उसके पहले ही आकाश की पिस्तौल से निकली गोली रंजन को जा लगी। रंजन वही ढेर हो गया। आकाश को दुःख तो हुआ मगर ऐसा करना भी उसका फर्ज ही था।


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