जाती जवानी—- एक अनुभव
जाती जवानी—- एक अनुभव
आज सुबह स्कूल जाने को तैयार होते बाल बनाते आइने के सामने कुछ ज़्यादा ही रुक गया,क़सम से अभी भी जवान हूँ की ग़लतफ़हमियों पर मन से ही आवाज़ आई “जवानी जा रही है”।अमूमन आइने से कभी ज़्यादा लगाव रहा नहीं ओर आज ज़्यादा रुकते ही हक़ीक़त बता दी इस मुए ने,ये झूँठ भी तो नहीं बोलता, बालों की सफ़ेदी ओर पेट की बढ़ाई ने मन को रुआँसा कर दिया फिर सोचा कोई नहीं बालों को डाई से ओर पेट को मेहनत से सही कर जवानी को जाने नहीं देंगे,पूरे दिन इसी कशमकश में रहा ओर चिंता भी रही तो साथ में डाई ओर सुबह की जोगिंग का विश्वास भी बना रहा पर अब लग रहा था मन भी जवानी को छोड़ने का मानस बना चुका है,
तभी तो आज कल फ़र्राटे भरती स्पीड की जगह संतुलित ड्राईविंग करने लगा हूँ, कभी आने वाले कल की भी ना सोचने वाली जवानी अब बीमें की किश्तों में ऊलझ सी गई तो कभी हर शाम दोस्तों के संग गुजरती आज कल बोर सी करने लग गई ओर हाँ अब रंगीन महफ़िलें भी नहीं भा रही ओर अब बेख़ौफ़ लापरवाहियों की जगह कंधे झुकाती जिम्मदारिया आ रही। जीवन अब खेल नहीं जंग सा लगने लग गया, अब लग रहा हे जवानी तन से ही नहीं मन से भी जा रही है ।पर संभलते हुए सोचा क्या लापरवाहियाँ, महफ़िलों की रंगिनिया ओर कल की परवाह ना करना ही जवानी हैं, शायद नहीं ,ज़िम्मेदारियाँ कंधो को झुकाती कहाँ वो तो अपनेपन का एहसास कराती है, महफ़िलों की रंगिनियो के रंग ही बदलने हे ओर कल के बारे में सोच कर ही जवानियों को उम्र बख्शी जाएगी। ये सोच फिर संभला ओर जाती जवानी की परवाह ना करते हुए आइने को अलविदा कहाँ ओर अब, अब बालों की सफ़ेदी में फ़ैशन देखने लगा हूँ ओर बढ़े पेट में बीमारी।