KP Singh

Romance

3.5  

KP Singh

Romance

तुम जा रही हो....

तुम जा रही हो....

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अब लग रहा हे तुम जा रही हो,मन के गुप्प अंधेरे अंधियारे से निकल कही उजालो में खो सी रही हो, तभी आजकल खूब दिन हो गए तुम्हारे फ़ोटो को निहारे हुए,फेसबुक पर तुम्हें पागलों की तरह ढूँढ भी नही रहा हूँ,हद तो तब हो गई जब कल अपने फ़ोन की गैलेरी से कुछ फ़ोटो डिलीट करते समय तेरे फ़ोटो को डिलीट करने से पहले रुक कर सोचा ही नही जबकि कभी तेरा पिक मेरे फ़ोन की सबसे खास पिक हुआ करती ,हाँ तभी लगा तुम वाक़ई अब जा रही हो पर अबकि बार तुम पहले की तरह कठोर भी नही हो,याद हे मुझे जब तुम पहली बार गई मै टूट सा गया पर अब कुछ ऐसा नही अब सब कुछ नोर्मल लग रहा हे,अब तेरा जवाब ना आना मुझे बैचेन नही कर रहा पर फिर भी दिल की अनन्त गहराई से एक हल्की सी आवाज़ आ रही है रुक जाओ, पर शायद अब मै खुद भी तुम्हें रोकना नही चाहता, बस जाने से पहले चाहता हूँ दोड़ कर आओ ओर फ़िल्मी स्टाइल से गले लग जाओ! भले ही सपने में ही सही,एक बार उसी शरारत से “गंदे बच्चे”बोल दो, एक बार उसी सच्चाई से बोल दे “तू सच्चा ओर अच्छा है”, एक बार बस वो एलबेनलिबे मुझे गिफ़्ट कर दे फिर चले जाना मेरे अंधियारे मिटा अपने उजालो की ओर!


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