वो इंग्लिश वाले सर
वो इंग्लिश वाले सर
दसवी पास कर शहर के सबसे बड़े स्कूलों में शुमार सरकारी स्कूल में दाख़िला मिला,मेरी ये नयी स्कूलअपने बड़े भवन व विशाल मैदान के लिए जितना मशहूर थी उतनी ही इस बड़े भवन में होने वाली पढ़ाईके लिए कुख्यात भी थी।
मेरे चार पाँच दिन स्कूल जाने के बाद ही मुझे लग गया शायद मुझे इस तरह का ही स्कूल पसंदथा,यहाँ कोई एकआध ही सर थे जो क्लास में बराबर आते ओर आकर पढ़ाते,यहाँ प्रार्थना में न जानेपर कोई कुछ नी कहता,कभी भी स्कूल स भाग जाने की आज़ादी भी थी, ऐसी ही अपनी कई खूबियोंके चलते मेरा नया स्कूल मुझे बहुत भा रहा था।
इस माहोल मै भी एक सर थे ओर समय के ओर अपने काम के बड़े पाबंद थे।समय पर क्लास में आनाओर हमको पढ़ाना शायद वो अपनी नौकरी नही ज़िम्मेदारी समझते थे , शुरुआत में आज़ादी भरे इसमाहोल में सर का ये रवैया अखरता था पर चलो बाक़ी तो सब ठीक था,उनकी क्लास में रहना बोरकरता था पर पहला पीरियड ओर हाजरी की मजबूरी की के चलते जाना ही पड़ता, अंग्रेज़ी की येक्लास बहुत ही दर्द देने वाली होती थी,एक तो इंग्लिश का डर ओर दूजा ये सर,पर धीरे धीरे पता हीनही चला ये क्लास मुझे कब सुहाने लग गई,सर को तंग करना ओर बीच बीच में कमेंट पास करनाशुरू की आदत रही ओर इसी वजह से सर ने अंतिम पंक्ति के किरदार मुझे कक्षा की सबसे आगे वालीलाईन में बिठा दिया पर मेरी बदमाशिया इसी तरह चलती रही ओर सर भी कहा मुझ से हारने वाले थे,अब मेरी बदमाशियो पर कुछ ज़्यादा ही ध्यान देने लग गए तभी मुझ को आगे ली लाईन से उठा स्टेजपर अपनी कुर्सी के बिल्कुल पास बैठा दिया ओर मेरे कुछ कमेंट करते ही एक थप्पड़ जमा देते पर में भीढ़िट बदमाशिया छोड़ नही रहा ओर सर भी मेरे गुरु जो मुझे छोड़ नही रहे।
ऐसे ही चलते चलते जाने कब ये सर मेरे फ़ेवरेट बन गए ओर मै भी उनकी आँखो में मेरे लिए विशेषप्यार देखने लग गया,मुझे उनका समझाना ओर पूरी क्लास को जीवन के कई पाठ पढ़ाना भाने लगगया।अब मेरा बोलना धीरे धीरे कम होता जा रहा था ओर सुनना ज़्यादा हाँ याद हे मुझे वो लंच कीछुट्टी जब हम क्लास में खेल रहे थे ओर मेरे हाथ से उठा चोक के पाउडर से भरा डस्टर सर पर जा लगाओर उस दिन सर ने काला शर्ट पहना था,सर का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर था पर मुझे देखते ही बसडाँटा पर क्लास को लग रहा था मै गया पर ऐसा कुछ नहीहुआ, ऐसी कई बदमाशिया नज़र अंदाज़करी सर ने पर वो दिन कभी नही भूल पाया जब 12 वी कक्षा की हाफ़इयरली परीक्षा के नम्बर बता रहेओर बस एक नम्बर का फ़ासला था,परीक्षा कोपी में एक नम्बर देते ही बोर्ड में मेरे छः की जगह सातजाते पर उस दिन सर ने खुद के पास मुझे बुला कर बोला तेरी कोपी में एक नम्बर देने की जगह ही नहीहे, फिर भी जगह हो तो तू बता दे उनके प्यार भरे इन शब्दों ने मुझे सब दे दिया अब शायद मुझे कुछचाहिए भी नही था आज स्कूल से घर आते इस बदमाश बच्चे के मन में बस वो आदर्शवादी गुरु ही थे, समय चला जा रहा था,12 वी बोर्ड की परीक्षाएँ हो गई,छुट्टियों के ख़त्म होने के बाद रिज़ल्ट भीआया,मेरी पढ़ाई के उस दौर में फ़र्स्ट डिविज़न का रुतबा ही कुछ अलग था, मै रह गया बस एक नम्बरसे वो भी इंग्लिश में कम था उस दिन इंग्लिश वाले सर को खूब कोसा, उनको ही जो मेरे फ़ेवरेट थे, एकदो दिन में ग़ुस्सा कम हुआ, पर जब कुछ दिनो बाद मार्कशीट लेने गया ओर अंकतालिका पर सेकंडडिविज़न देखा मन बहुत दुःखी हुआ,मुँह उतर सा गया।
उतरा मुँह लेकर स्कूल से निकल रहा था तभी पीछे से किसी ने नाम से पुकारा,देखा वही इंग्लिश के सरथे जिनको में वीलेन मान बैठा था,बैमन से उन्हें प्रणाम किया पर उनका आशीर्वाद दिल से निकला हीलगा, “एक नम्बर से डिविज़न रह गया” ये शब्द सुन लगा सर सफ़ाई देंगे पर उन्होंने कहा “कैसे देतातुझे एक नम्बर तुने लिखा भी नही था”, मुझे ओर ग़ुस्सा आया पर तभी सर ने मेरी पीठ पर प्यार से दोथपकियाँ दी ओर सर पर हाथ फेरते हुए “खुश रह” का आशीर्वाद दिया,मुझे मन ही मन लग रहा थाएक नम्बर नही दे पाने का मलाल आशीर्वाद दे पुरा कर रहे है।
सर के चेहरे ओर आँखो में मेरे लिए उमड़े प्यार ने मेरी सब शिकायतों को धो दिया, पैरो को छू,आशीर्वाद ले विदा हुआ फिर कभी सर से मिलना नही हुआ पर सर हमेशा मेरे साथ रहे,पहले हर सर मेंउनको ही ढूँढता था ओर आज कल खुद में उन्हें ढूँढने का प्रयास कर रहा हूँ........,