सूखे पत्ते
सूखे पत्ते
अकेला बैठा कुछ सोच नहीं रहा था बस कब से सामने पड़े सूखे पत्तों को घूरे जा रहा था। चिड़िया का लगातार चहचहाना अखर रहा था पर मैं बिना अपनी पलकें झपकाए उन सूखे पत्तों को घूरे ही जा रहा था, मन बिल्कुल वीरान सा था, दिमाग़ में कोई ख़याल चल ही नहीं रही था तभी अचानक घूरती आँखें बंद हो गई। मन के अंदर के घोर अंधेरे को देख पा रहा था लग रहा था, शायद यही शून्य की स्तथि हो, तभी मन के अंधेरे में गोता लगाती दो रेखाएँ नज़र आई ओर कब उन दो लाइनों ने दो आँखों का आकार गढ़ लिया, समझ ही नहीं पा रहा था तब तक दोनों आँखों के बीच सुंदर नाक भी उभर आया, मैं उत्सुकता वश अपने मन की कलाकारी को बस देखे ही जा रहा रहा था, अब तक मन ने आँखों और नाक के साथ गाल, कान ओर कान के ईयररिंग्स भी बना लिए थे हाँ उन ईयररिंग्स से कुछ हल्की हल्की पहचान चेहरे से बन रही तभी मन के अंधेरे को हटाता तेरा चेहरा नज़र आया और आँखें खुली, सपना टूटा और सामने सूखे पत्ते हल्की हवा से हिल रहे थे ओर अब दो चिड़ियाँ ज़ोर ज़ोर से बोले जा रही थी सुन कर लग रहा था लड़ रही हे पर देखने पर सिर्फ प्यार ही नज़र आ रहा था।