हर दौर का घर
हर दौर का घर
आज बात उन घरों की करते हैं जो उम्र के कई मोड़ पर हमसे रूबरू हुए और हाँ उनसे कई किस्से भी शुरू हुए। उम्र के हर पड़ाव पर हर तरह के घर आते है और सब अपने किरदार को बड़ी ही बखूबी निभाते है।
पहला ही वो घर जिसकी दहलीज़ को लाल पिले कपड़ों में लिपटे किसी की गोदी के सहारे पार कर अंदर आते है ओर सबसे पहले मेरा अपना कुछ होने का एहसास भी यह घर ही कराता है , उसका ही आँगन पहला मैदान तो दीवारें स्लेट ओर कोपी का रूप भी बन जाती है।
फिर आती है उस घर की बारी जो हर छुट्टियों में हमारी शरारतों और बदमाशियों का पीड़ित बन कर भी ख़ुशी से मुस्कराता है। ये नानी का घर ही होता है जहाँ शरारतें ओर अल्हड़पन उधार दे बदले में यादों का अम्बार ले आते है।
इससे से बाहर निकलते ही मेरी नज़र में मेरे घर से भी परफ़ेक्ट घर नज़र आया हर चीज हर वस्तु का सलीका भी नज़र आया। ये घर मेरे उस सबसे अच्छे दोस्त का घर था जिसे भी मेरा घर ही परफ़ेक्ट नज़र।
उम्र अब थोड़ी बढ़ने लगी थी 10वी में आते आते अब दोस्त से भी अच्छा अब नयी नयी दोस्त बनी पहली लड़की का घर लगने लगा था, उसका घर मेरे से तो अच्छा ही पर दोस्त से भी अच्छा ये बड़ी बात थी। आज कल मुझे उसका ही घर अच्छा लग रहा था। पड़ोस के इस घर में किसी न किसी बहाने जाते ही रहता पर कालेज आते आते आज कल घरों की पसंद भी बदल गई अब घरों में परफेक्शन की गई जगह, ख़ाली कब होगा ये देखा जाता ओर अब उस दोस्त का घर ही सबसे अच्छा था जो हर शनिवार ओर इतवार को ख़ाली ही पाया जाता ओर यहाँ ही सारे शरारती, बदमाश और पागल दोस्तों का पढ़ाई के नाम पर कुछ रंगीन बोतलों ओर धुएँ का कारोबार होता है ।
हाँ अब उम्र के इस दौर में थोड़ी गम्भीरता आने लगी तो पढ़ाई के लिए अब बाहर जाना होगा, अब इस अनजान शहर में अपना कहने को अब ये किराए का कमरा ही था हाँ अब इस दौर में यही अपना घर था। बिखरा, अस्त-व्यस्त, घर स्टूडेंट होने की पहली शर्त भी मानी जाती है, पर ज़िंदगी चल रही है ओर जवानी के उस छोर पर आ पहुँची जब बेरोज़गारी का ठप्पा हटाना है , नौकरी लगते ही अब बिखरा सा रूम संवरने लगा ओर अब मैं भी स्टूडेंट की जगह नौकरीपेशा कहलाने लगा । कुछ काम जमने लगा तो किश्तों पर एक नया मकान ले लिया जो कहने को तो मेरा था, पर मालिक तो 20 साल चलने वाली किश्तें ही थी ।अब उम्र बढ़ने के साथ कुछ समझदारी ओर गम्भीरता भी आयी, तो उस घर को सजाना संवारना एक शौक़ भी आ गया गया, थोड़े ही दिनों में इस से भी मुक्ति मिल गई ओर मकान को घर बनाने वाली घर की गृहिणी भी आ गई । समय का फेर देखिए , समय का पहिया घूमा ओर इस घर की दहलीज़ को, लाल पिले कपड़ों में लिपटा मेरी ही गोदी के सहारे, लांघ कर एक मेहमान अंदर आया, यूँ लगा जैसे एक बार फिर मैं ही पहली बार घर आ गया, समय का पहिया पुनः सब दोहराएगा, समय के चक्र को चलना ज़रूरी भी है, तो जीवन का ठहराव भी एक मजबूरी हैं, एक दिन लाल पिले कपड़ों में लिपटा आया बचपन, सफ़ेद लिबास में चार कंधों पर चला जाएगा ओर मजबूरी भी कैसी जिस घर के आँगन में चलना सिखा उसी आँगन से चार कंधों पर जाना होगा ओर समय का चक्र बस चले जाएगा, उम्र के हर दौर में एक घर आएगा.........