इंसानियत ही धर्म है
इंसानियत ही धर्म है
धोती वाले की पत्नी को अचानक मध्य रात्रि में हर्ट अटेक हुआ। पसीने से तर बतर ,उसके हाथ, पैर सर्द हो गये ! घबराये पति ने तुरंत पत्नी के चेहरे पर पानी छींट कर उसे होश में लाया। लेकिन पत्नी की धड़कनें बहुत तेज चल रहीं थीं ! इसलिए अचेत की दशा में वह पड़ी थी !
अधेड़ धोती वाला इसी शहर में पत्नी संग मजदूरी करके गुजारा करता था। घर में उन दोनों के सिवा और कोई नहीं था।
पति को पत्नी का बुरा हाल देख बहुत घबराहट हो रही थी। करे तो क्या करे! दो बजे रात में किसका दरवाजा खटखटाये ?
तभी बाहर सड़क पर एक ऑटो के रुकने की आवाज आई। धोती वाले ने सोचा इसको रोक कर पत्नी को जल्दी से हास्पीटल ले चलता हूँ। बाहर जाकर आवाज देकर आटो को रोका और उससे गुहार लगाई।
लंबी दाढ़ी और टोपी लगाये आटो ड्राइवर ने धोती वाले की गुहार सुनते ही हास्पीटल ले जाने के लिए तैयार हो गया।
धोती वाले पत्नी संग आटो पर सवार हो कर इलाज के लिए चल पड़े। लेकिन हास्पीटल पहुँचने से पहले ही रास्ते में पत्नी को जोर से हिचकी हुई और उसने दम तोड़ दिया।
देखते ही पति उसे पकड़ कर फफक फफक कर रोने लगा। आखिर ड्राइवर ने हिम्मत बाँध कर पूछा , "भाई जान अब कहाँ चलें ! हास्पीटल या..! " आद्रता उसकी आँखों में उतर आई थी। वह आँखों को गमछी से पोंछ रहा था।
कर्तव्य बोध होते ही धोती वाला सख्त हो गया। उसके आँखों से आँसू निकलने बंद हो गये।उसने गंभीरता से कहा," ले चलो हास्पीटल।" वहाँ
पहुँचने के साथ उसे मृत्यु घोषित कर दिया गया। उसने तुरंत मृत्यु प्रमाण पत्र बनवाया और उसी आटो से मृत पत्नी को लेकर गंगा घाट पर दाह-संस्कार करने पहुँचा। जहाँ पहले से शव जल रहे थे।
सूर्य अपनी गति से आकाश में जगमगा रहा था।
परंपरानुसार डोम और पात्र की मदद से पत्नी का दाह संस्कार संपन्न हुआ। आखिरकार सूने मन और सूनी आँखों लिए धोती वाला उसी आटो से वापस घर आया। जेब से बचे रुपये निकाल कर ड्राइवर के हाथ में थमाते हुए कहा,
"रख लो, ये रकम बहुत थोड़ा है। आज तुम मुझे सगे भाई से भी बढ़ कर मदद किए , मैं तुम्हारे इस उपकार को जिंदगी भर नहीं भूल सकता। "
लाख ज़िद करने पर भी ड्राइवर ने रुपये को हाथ नहीं लगाया। उसने कहा , "दुख की घड़ी में मैंने एक इंसान की मदद की है। यह मेरा फर्ज था। "
धोती वाले की आँखें नम हो गईं। उसने कहा ,
" ठीक है, आज से तुम मेरे बड़े भाई हो। पत्नी की तेरहवीं में तुम्हें शरीक होना पड़ेगा। ऐसा ही हुआ।
दोनों ने मुंडन करवाये और क्रिया कर्म के बाद गंगा घाट पर एक साथ शपथ लिया। टोपी वाले ने शपथ में कहा " मैं आगे से न कभी दाढ़ी बढ़ाऊंगा और ना ही टोपी पहनूँगा। धोती वाले ने कहा , मैं धोती और जनेऊ कभी नहीं धारण करूँगा।
" बिल्कुल सही। क्योंकि हमारे बीच धार्मिक दृष्टि से किसी को कोई भेदभाव नहीं दिखनी चाहिए। हम तथाकथित धर्म के वाह्य आडम्बरों से मुक्त हो गये हैं। अब हमारा धर्म सिर्फ मानवता की सेवा करना है।" दोनों ने एक स्वर से कहा और गंगा मैया को नमन किया।
गंगा मैया खिलखिला कर बोली , " सुनो, मुझे पक्का विश्वास हो गया कि तुम दोनों भाई धर्म के ठेकेदारों को अच्छा सबक सिखाओगे।"