इन दिनों
इन दिनों
अब सूचनाएं फेसबुक पर मिलती है या व्हाट्स ऐप पर। इसी बीच प्राइवेसी के हनन की बाते भी होती रहती हैं। निजी डाटा को बेचने या चोरी करने की सूचनाएं गुमशुदा व्यक्ति के पोस्टर की तरह इधर उधर चिपकी हैं।ये सोशल मीडिया का युग है। कोई पैदा हुआ तो बधाई का माध्यम ये ही हैं,आसान तरीका। जान न पहचान,मैं तेरा ....। खैर मेहमान अब पुराने जमाने की बात है,सब औपचारिकताएँ हैं। अब तो मिलने के लिए हाड़ मांस का साक्षात आदमी बड़ी उपलब्धि है। हफ्ते के अंतिम दिनों जिन्हें कुछ लोग वीकेंड कहते हैं, पर शराबखानों या सांझा पार्टियों में लोग बाग मिलते है। लगता है जैसे शहरों में बची खुची मित्रता ये शराबखाने ही बचाये हुए है। और फिर उनके बीच होने वाली बातें। अपने दफ्तरों,बिजनिस का सारा बोझ या सारी खीझ जैसे वही अपने दिमाग से उतारी जा रही हो। नौजवान असफल और सफल प्रेम के बीच किस्सागोई करते हैं और प्रौढ़ या नौकरी शुदा अपने लगभग पागल हो चुके बॉस को मूर्ख सिद्ध करते हैं या दफ्तरों में फलां मिस्टर या फलां मिसेज के गुप्त किस्सों पर ठहाके लगाते अपने जीवन को हल्का करने की कोशिश करते हैं।
आजकल किसान आंदोलन सरगरम विषय है। कोई दिल्ली के धरने में जाकर आया है,कोई जाने वाला है। कोई उसके पक्ष में तर्क देकर ही सुनिश्चित है तो कोई उसके खिलाफ नपा तुला तर्क पेश करता है। हमदर्दी पक्ष में ज्यादा जुट रही है।
इधर शहर के हालात पहले से बदतर हैं,या लगभग वैसे ही हैं जैसे पहले थे। लूटपाट,धोखाधड़ी,देहव्यापार,बेरोजगार आंदोलन, घर से किशोर के भागने की घटनाएं पहले से ज्यादा सुनने को मिल रही हैं। अखबारों में लोन और ब्याज दर घटने के समाचार हैं। सेंसेक्स दौड़ता नजर आ रहा है,लाभ किसे हुआ है ये बातें कस्बे,और शहर के बाहर की बाते लगती हैं। आदमियों के मुहल्ले में हर कोई घाटे का रोना रोता है। प्रोपर्टी में मंदी छाई है। पड़ोस के मुहल्ले का लड़का पिछले सात दिन से लापता है।
कोई बताता है कि उसे अंतिम बार शहर से बाहर बहती बड़ी नहर के पास देखा गया था।
गोताखोर तीन दिन से पानी मे खोजकर वापस लौट आये हैं। बीस हजार लेकर वो दिन रात काम मे लगे रहे। नहर के किनारे दूर तक पिता न जाने किस सोच में चलता रहा। शायद उसकी प्रार्थना यही थी कि बेटा सलामत हो और सिर्फ डराने के लिए नहर के पास अपनी मोटरसाइकल छोड़ गया हो। बचपन मे भी अक्सर वो छुप जाया करता था और फिर एकदम से सामने आ जाता था। अब दिन जैसे जैसे बीत रहे थे, पिता और मां सो नही पाए थे,कभी आँख लग भी जाती तो बेटे के लौट आने का स्वप्न हड़बड़ा कर जगा देता। यथार्थ कितना दर्दनाक है और स्वप्न कितना सुखद। कहीं सुना था कि ये पूरी दुनिया भगवान विष्णु का स्वप्न है। क्या वाकई?
फिर इसमें मोह का बंधन इतना दुख क्यो देता है?
सोहन गया था किसान धरने में। खेती बाड़ी वाला आदमी और यूनियन को फंड देने वाला। चाहे खेती छोड़ दी हो पर अब ठेके पर गांव के आदमी को दे दी। चला गया किसान धरने पर। गांव वाले भी तो थे। सोहन सोचता कि आज इनके साथ नही गया तो मेरे मरने जीने में कौन साथ देगा। पुराना आदमी। सोहन का जब बाप मरा तो पूरा गांव अंतिम रस्म में शामिल हुए था। उसके बाप का सहचार भी बड़ा था गांव में। हर मरण जन्म पर शामिल होता। ऐसे ही थोड़ी एक बार गांव की सरपंची कर गया।
सोहन शहर में बस गया। नौकरी पेशा हो गया। हर सप्ताह ठेके पर दिए अपने खेतों के चक्कर लगाता, आसामी से मिलता। फिर धीरे धीरे महीने बाद या ठेके की रकम लेने छमाही जाता। बूढ़ा भी गया। लड़को को अपने काम से फुर्सत कहाँ थी। कह देते कि ठेके की रकम भी बैंक अकाउंट में जमा करवा लिया करो। जाने की क्या जरूरत ? ऑनलाइन बैंकिंग है अब। सोहन सोचता, लड़को को सहचार का क्या पता? फिर वो भी मोबाइल पर सक्रिय हो गया। मरने, पैदा होने आदि की सब खबर अब मोबाइल पर मिल जाती। गांव के सब अड़ोसी पड़ोसी,जानने वाले अब ऑनलाइन थे। गांव के लोगो ने अपना व्हाट्सएप्प ग्रुप बना लिया था। सुबह सवेरे सोहन उठता और सबको सुबह की नमस्कार खूबसूरत चित्रों के साथ भेजता। किसान धरने पर जाने की बात भी उसे सोशल मीडिया से पता चली। उसे भी ये बताना था कि अभी वो जिंदा है,उसे भी कई लोग जानते हैं। इसलिए गांव के लोगों के साथ घरवालों के मन करने के बावजूद भी चल गया। आखिर उसके मरने के बाद गांव के लोग तो उसके साथ रहे। शहर वालो की तरह चार लोगों में जनाजा निकलने से क्या इज्जत रह जाती भला।
सोहन परेशान है कि अब मोहल्ले में या आस पास कोई घृणा घटती है तो पता नही चलता। सुबह की सैर हो या शाम की। सूचना मोबाइल के सोशल मीडिया पर आ गई तो ठीक वरना कौन मरा कौन जिया, यहां शहर में कुछ पता नही चलता।
जाने वो लड़का घर लौट कि नहीं? कैसे इतने दिन मां बाप ने बिताए होंगे। शव मिल जाता तो भी एक इंतजार खत्म होता, पर ये बड़ी विकट स्थिति है। जाने लड़का नहर में डूब है या डर पैदा करके कहीं और बैठा है। और नही तो मां बाप को परेशान करने का मजा ही सही।
सोहन धरने से लौट आया है पर एक शव के साथ। राजी जो जिमिंदारों का नौजवान लड़का था,केवल चौबीस साल का,उसे हार्ट अटैक आ गया। लंगर और सेवा में सबसे जोशीला नौजवान। उसे देखकर सोहन सोचता कि उसके लड़के राजन को भी धरने पर आना चाहिए था पर उसे फैक्ट्री की नौकरी से फुर्सत नही। उसके लिए ये सब बातें फिजूल थी। अब उद्योगीकरण का दौर था,इसलिए वो इसी के पक्ष में था।
खैर टैपों ट्रैवल में राजी के शव को लेकर लौटते हुए जाने क्यों उसे अपने बेटे राजन की बात कभी कभी सही लगती। लगभग पचास नौजवान और बुजुर्ग किसान इस धरने में मर चुके थे। कुछ ठंड से कुछ हार्ट अटैक या किसी अप्रत्याशित दुर्घटना से। सरकार अपनी जिद पर अड़ी थी पर किसान उससे भी ज्यादा दृढ़ इरादे से लड़ रहे थे।
आखिर कब अंत होगा इस जिद का, इस दुख का। क्या वाकई आदमी सरलता से जीने का अधिकारी होने के लियर तिल तिल मरेगा। क्या ये नई तकनीक हम सभी को इतना अकेला कर देगी। क्या समाजिक समझौते के सभी मापदण्ड लुप्त हो जायेगे ? क्या शांति से जीना वाकई इतना कठिन होगा।
धरने के दौरान न जाने कितने सिद्धान्त,आजादी के तराने और सरकारी तंत्र की असलियत के भाषण उसने सुने। वो यही सोचता रहा, आखिर कुछ लोग सब कुछ अपने नियंत्रण में लेकर क्या पा जायेगें ? आदमी बड़ी फुर्सत और इत्मीनान से जी सकता है,उसमें इतनी दिक्कत क्यों ?
सोहन देर रात जाग जाता है। उसे पड़ोसी के गुमशुदा लड़के की चिंता है। उसे धरने पर ठंड में लड़ते किसानों के बिंब परेशान करते हैं।
वो मुश्किल से सोता है और स्वप्न में उसे आवाजें डराने लगती हैं।
