Dippriya Mishra

Romance Inspirational

4.0  

Dippriya Mishra

Romance Inspirational

इम्तहान

इम्तहान

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दिन भर का थका सूरज पर्वतों की ओट में विश्राम लेने जा रहा था। संध्या सुंदरी बाहें फैलाए ,उजालों को अपने आगोश में लिए जा रही थी। गंगा के पारदर्शी जल पर संध्या सुंदरी का सुरमई आंचल लहराने लगा था। घाट रंग बिरंगी लाइट की रोशनी से जगमग आ उठा। रंगीन रोशनी की छाया गंगा की धारा में रंगीन सर्पों के जैसे तैरने लगी थी। पर्यटकों की भीड़ गंगा आरती के लिए इकट्ठी होने लगी थी। देखते ही देखते सीढ़ियां स्टेडियम ग्राउंड के जैसे भरने लगी थी। घाट पर कुछ पंडे पर्यटकों से गंगा मां की पूजन करवा रहे थे। किनारे पर 10/12 साल के बच्चे फूल मालाएं पर्यटकों को बेचने की कोशिश कर रहे थे। बांसुरी वाला चारों ओर फेरे लगा कर बांसुरी बेच रहा था । मोतियों की मालाएं , बलून बेचने वाले युवक इधर-उधर घूम रहे थे। कुछ लोग मोल भाव में लगे थे ।

पीले रेशमी धोती और पीला रेशमी चादर कंधे पर डाले 11 पंडित अपने-अपने चौकियों पर विराजमान हो गए। शंख, डमरु ,घंटी नगाड़े की ध्वनि से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया।

लाउडस्पीकर पर मंत्र......गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेवो महेश्वर: ।

गुरुसाक्षात परंब्रह्मा तस्मै श्री गुरवे नमः।

गुंजायमान हो उठा।

          25 वर्षीय युवक केलवीनक्लीन की डार्कब्लैक नैरो जिंस और ऐरो का अनसेनेचुनेटर ग्रे शर्ट, पुमा का स्टाइलिश शूज में मुन्तजिर गंगा के किनारे लगी एक नाव पर बैठा है| उसकी की दृष्टि अपलक तुलसी घाट की सीढ़ियां निहारे जा रही थी। उसकी निगाहें बार बार कलाई पर बंधी Rolix घड़ी पर चली जाती थीं। बड़ी देर हो गई क्या नहीं आ पाएगी? क्या आज मिलने का मौका नहीं मिलेगा? उसने बेकरारी में पलकें बंद कर ली =। हे भोलेनाथ !आप के शरण में बैठा हूं दया करो ! आंखें खुली तो उसकी नजर सामने से आती कामिनी पर पड़ी, साथ में उसकी दोनों बहने भी थी। जो तुलसी घाट की सीढ़ियों पर ही रुक गई। कामिनी नाव की ओर बढ़ती गई ...उसने आते ही कहा सॉरी 

...देवांश थोड़ी देर हो गई|

कोई बात नहीं ...तुम आ तो गई..

उसने सहारा देकर कामिनी को नाव पर बैठा लिया और नाविक को चलने का इशारा किया। देवांश ने कामिनी को गौर से देखा, हल्दी से उसका गौरवर्ण और निखर गया था ।दोनों हाथों और पांवों में मेहंदी का रंग चढ़ा था। वाईन कलर की कुर्ती से मैच करता प्लाजों और व्हाइट बुटेदार दुपट्टा, ऑफ व्हाइट marshalls का ब्रांडेड हैडपर्श ,हाई हील की ब्लैक लेदर की सैंडिल में वह बहुत खूबसूरत लग रही थी। थ्री स्टेप में करीने से कटी जुल्फें हवा में लहरा रही थी। दोनों चुप थे जैसे कोई शब्द ही बोलने को ना बचे हो। Culorsपरफ्यूम की वही चिरपरिचित सुगंध भी आज देवांश को मदहोश नही कर पा रही थी। वह देवांश के सीने से लग गई। दोनों के हृदय में तूफान थे और जुबां पर एक खामोशी....। नाव मुक्ति दायिनी गंगा के दशाश्रवमेध घाट से गुजर रही थी। एक साथ कई चिंताएं जल रही थीं। लपटें ऊंची ऊंची उठ रही थीं, उसकी प्रतिबिंब गंगा की धाराओं पर बन रही थी। कामिनी ने कहा- हम बहुत दूर निकल आएं अब लौटना होगा। रिया और सौम्या इंतजार कर रही होगी। देवांश ने नाविक को नाम वापस ले चलने को कहा। देवांश को लगा इन चिताओं के बीच एक और चिता जल उठी ....उसके सुनहरे सपनों की चिता। उसने कामिनी से कहा प्यार सिर्फ पाने का नाम नहीं प्यार तो लूट जाने का नाम है ,प्यार देने का नाम है ,प्यार समर्पण का नाम है। मैं कतई नहीं चाहता कि तुम अपने घर वालों के खिलाफ जाकर मुझसे विवाह करो। आज के बाद मैं तुम्हें प्रेमिका नहीं कह सकता पर हम अच्छे दोस्तों उम्र भर रह सकते हैं ना।

मैं सदैव तुम्हारी रहूंगी।

कामिनी बस आज तुम मेरी हो कल किसी और की अमानत हो जाओगी। क्या कुछ और हम साथ में ही रह सकते?

दोनों की आंखें नम थीं, नहीं देवांश घर मेहमानों से भरा है, मैं पार्लर से ही तुम्हारे पास आ गई हूं। तुम तो जानते हो मैं ये शादी नहीं करना चाहती थी... पर पिता की घर छोड़कर जाने की धमकी से डर गई। पिता अगर घर छोड़कर चले गए तो दोनों बहनों और मां का क्या होगा? मैं बहुत मजबूर हूं देवांश....। बातों में पता ही ना चला कब तुलसी घाट पर नाव रुक गई।

आरती समाप्त हो चुकी थी भीड़ छटने लगी थी। दोनों बहने गंगा तट पर खड़ी थी। कामिनी उनकी ओर बढ़ गई। सीढ़ियां चढ़कर संकरी गली की ओर मुड़ गई| गली आगे ड्राइवर गाड़ी लेकर खड़ा था ।देवांश देखता रह गया।

वह घाट की सीढ़ियों पर बैठा जार बे जार रो रहा था। रो-रो कर हिचकियां बंध गई थीं। बेसुध सीढ़ियों पर लेट गया। रात गहराने लगी थी, इक्के दुक्के दुकानों को छोड़कर सब बंद हो चुकी थी। रंगीन बल्ब की झालर की रोशनी भी बंद हो चुकी थी कुछ पोल लाइट और वैपर लाइट जल रहे थे। अचानक किसी ने देवांश का कंधा छुआ, वह सिर उठाया ,सामने एक जटा जूट भगवा वस्त्रधारी साध्वी बैठी थी। चेहरे पर अनुपम सौंदर्य आंखों में दिव्यतेज... उसने अपने आंचल से देवांश का चेहरा पोंछा... बड़ी मृदुल स्नेहिल स्वर में बोली- "बेटा यह मर्त्यलोक है। जब इंसान और जिंदगी का ही भरोसा नहीं तो टूटे सपनों का इतना मातम क्यों?"

साध्वी की बातें मन को बड़ी सुकून दे रही थी उसने एक पत्तल देवांश की ओर बढ़ाया ...भूखे हो खा लो।

नहीं मां, भूख नहीं ,आप तकलीफ ना करें।

मां भी कहते हो और फिक्र भी ना करने कहते हो? साध्वी अपने हाथों से उसे खिलाने को बढ़ी तो वह इनकार ना कर सका। भोजन का स्वाद दिव्य था। खिलाने के बाद वह गंगा तक साथ आई ,जल पी लो। चेहरा भी धो लो। वह आज्ञाकारी बालक की तरह उसकी बातें सुनता रहा। बेटा ! अब घर चले जाओ घर वाले परेशान हो रहे होंगे।

नहीं मां मैं यहां अकेला रहता हूं।

फिर भी घर चले जाओ। सुनो बेटा अनुरक्ति और विरक्ति एक ही सिक्के के दो पहलू हैं मैं चाहती हूं तुम्हारे हृदय स्थल अनुरक्ति आसन जमा रहे। जिसके लिए रो रहे हो तुम, उसे नई जिंदगी जीने दो, उसे अपने प्यार के बंधन से मुक्त कर दो। ‌तुम खुद को अपने माता-पिता को सौंप दो, इसी में तुम्हारा कल्याण है। देवांश के कदम खुद ब खुद क्वार्टर की ओर बढ़ने लगे। वह पीछे मुड़कर एक बार फिर साध्वी को देखना चाहा मगर पर कहीं नहीं थी।

अपने पिता की बातें सहसा स्मरण हो आई, बनारस में मां अन्नपूर्णा वास करती है , वहां कोई भूखा नहीं सो सकता। तो क्या वो.....? 

आज नींद कोसों दूर थी। वह करवटें बदल रहा था। कहते हैं जिंदगी पग पग पर इम्तहान लेती है। परेशानी कभी अकेले नहीं आती दसो दिशाओं से साथ आ जाती है ...रात की 2:30 बज रहे थे। मोबाइल घनघनाने लगा, वह अनमने सा उठा लिया...

हेलो...

बेटा मैं...

प्रणाम पापा! इतनी रात को फोन किया आपने?

हां बेटा बात ही ऐसी है।

क्यों क्या हुआ?

तुम्हारी मां को हार्ट अटैक आया है।

अभी मां कैसी है?

डॉक्टर ने कहां है 48 घंटे भारी है। मेरी तो कुछ अक्ल ही काम नहीं कर रही इसीलिए तुम्हें कॉल किया है।

चिंता ना कीजिए पापा.... मैं 4:00 वाली एक्सप्रेस ट्रेन पकड़ लेता हूं 12:00 बजे तक पहुंच जाऊंगा ईश्वर इतना निर्दयी नहीं है मां ठीक हो जाएगी।।

हां बेटा ,बस ऊपर वाले का ही भरोसा है।

आप घबराइए मत पापा मैं जल्दी आता हूं।

        ट्रेन राइट टाइम थी। सिंगल सीट पर बैठ गया और बाहर देखने लगा अपनी उलझन में उलझा हुआ। तभी किसी ने आवाज दी देवांश....

देवांश सामने सीट की ओर देखा... अरे ऐसे तुम? कहां जा रहे हो?

घर जा रहा हूं।

ऑफिस की छुट्टी है क्या?

नहीं यार, मन उचट गया है ,इसलिए कुछ दिन की छुट्टी लेकर जा रहा हूं।

क्यों ?क्या हुआ?

मैं अपने प्यार में हार गया। आज मेरी गर्लफ्रेंड की शादी है।

आज तक कभी तुमने बताया भी नहीं ? कौन थी तुम्हारी गर्लफ्रेंड?

तुम्हें याद होगा हमारी क्लास की कामिनी।

कौन ? कामिनी बसु?

हां कामिनी बसु‌ ।

               क्रमश: ...... .  



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