इम्परफेक्ट प्लैनर
इम्परफेक्ट प्लैनर
'ब्लेड मैन' नाम सुनकर सुकेतु को झुरझुरी सी छूट गई। लेकिन दूसरे ही पल मिज़ाज़ में नफ़ासत लाने की कोशिश करते हुए वह अपने 'रेंटेड रूम' की ओर आगे बढ़ा।
रूम के वॉल्स पर जगह जगह खूबसूरती बिखेरी हुई थीं। फिर भी उसे उसमें से एक न सुहाती थीं और ना ही उसके मन को लुभाती थीं। फिर भी तसल्ली के लिए उन सभी खूबसूरत बलाओं की खूबसूरती को अपने उस रेंटेड रूम में आसरा देकर रखा हुआ था।खुद ही उन सभी कल्पनाओं को पैंटिंग्स में रंगों को भरकर उतरता रहता।
उन सभी कल्पनाओं को सजीवन करने का भूत सवार हो चूका था और इसी के चलते आज प्रातःकाल वह शहर के बाहरी हिस्से में टहलने गया था।जहाँ उसकी पैनी नज़र स्कूल में पढ़ती उस लड़की की ओर पड़ी, जो उसके दिल के आरपार उतर चूकी थी।बर्बस, अब सुकेतु उसी कुँपल फूटने की ढेरी पर खड़ी यौवना की तस्वीरें बनाया करता। उसके हर एक भाव को पैंटिंग्स में उतारता रहता। और कल्पना करता कि, वो लड़की उसके साथ हँस हँस कर लज्जाती तो कैसी दिखतीं!रूठती तो कैसी लगतीं! फिर सुकेतु के मनाने पर कैसे अठखेलियाँ भी खेलतीं। मानों वो लड़की ही अब उसका जीवन आधार बन चूकी थीं। पागलपंती सवार हो चूकी थी उसके दिलोदिमाग पर। उसके अलावा मेडिकल की पढ़ाई भी बीच मझधार छोड़ चुका था। जबकि चार माह ही शेष बचे थे उसके।
उसके बाद इंटर्नशिप ख़त्म करते ही वह अपने क़स्बे का इकलौता ऐसा डॉक्टर बनने जा रहा था, जिसका भविष्य उज्ज्वल ही नहीं, तेजोमय भी था।
स्कॉलरशिप के मिलते ही विदेश में दो साल की सर्जन की पढ़ाई और उसके बाद अपने नाम का एक हॉस्पिटल। यही सपना आँखों में सँजोये वो खुखडी गाँव से गाज़ियाबाद तक लंबा हुआ था।
अपने लक्ष्य से भटकने लगा था आजकल।दीवानगी सी छाई रहती थी चौबीसों घंटे। और, अब तो उसने उस यौवना के बारे में सारी जानकारी भी पा ली थी।सुकेतु की कुमुदिनी, जिसे वो प्यार से कुमुद बुलाता, अपने ख़यालों की दुनिया में। फिर् उसके नाम के क़सीदे भी पढ़ना सीख गया था।तब लगता, ये इश्क़, प्यार, मोहब्बत क्या क्या सीखला देता है अच्छे भले इंसान को!!
चौदह-पंद्रह साल की कुमुद, अपने नाम को मानों चार चाँद लगाती थी। श्वेत कमल के पुष्प सी सुकोमल पंखुड़ियों सी उसकी त्वचा, बेपनाह नमकीन रुई के फाहों सा नर्म - नर्म उजलापन और तराशा हुआ बदन, मन में एक कसक़ सी पैदा करनें के लिए ही ईश्वर ने उसे फ़ुर्सत से बनाया हो। ऑपोझिट अट्रैक्ट सा मैगनेटिक पॉवर था उसके तन बदन में।
सुकेतु, मेडिकल कॉलेज का एवरेज स्टूडेंट, लेकिन, प्रेक्टिकल नॉलेज में अव्वल दर्जे का सुपर कूल बंदा था। खास दोस्तों में उसका उठना बैठना नहीं रहता था, फिर भी मेडिकल कॉलेज के स्टूडेंट्स में वो ख्यातिलब्ध हो चुका था। उसके पीछे के कई अन्य रीजन्स में से एक था उसकी पैंटिंग्स।ख़ुशगवार लाइफ हर तरह से सेट थी। फिर भी न जाने क्यों वो, साइकोपैथ सा बनते जा रहा था।अगले दिन अख़बार में मेडिकल न्यूज़ के कॉलम में 'सायको लिंक' ब्लॉग में एक आर्टिकल छपा था -
"किस तरह कोई अच्छा-भला इंसान वहशी दरिन्दा बन जाता है, किस तरह कोई ख़ुशहाल घर-परिवार बर्बाद हो जाता है! किस तरह ज़िन्दगी को चाहत से भरने वाला, ज़िन्दगी से बेतहाशा मोहब्बत करने वाला इंसान अपनी जान देने पर आमादा हो जाता है! या हमेशा के लिए मौत की आग़ोश में सो जाता है! किस तरह ज़िन्दगी देने वाले हाथ मौत का सौदा करने लगते हैं!
जानने के लिए 'सायको लिंक' के मेम्बर्स बनिए और जानिए ऐसी अनगिनत क्राइम क्रैम्प्स...*
सुकेतु के रंगे हाथों पकड़े जाने के कुछ घंटों पहले की लाइव कोमेंट्री -
"हल्लो एवरीवन, 'सायको लिंक' में आप सभी का सहर्ष स्वागत है। आप सभी के मन में कई सारे सवालात कुस्तियाँ लड़ रहे होंगें। बहरहाल, उन सारे सवालों को कुछ वक़्त के लिए एक पोटली में बंद रखों। और, खुद से एक्सपेरिमेंट करो, खुद से उन सभी फीलिंग्स को एक्सपोज़ करो, डायरी में नॉट डाउन करो। एक दूसरे से अपने प्रैक्टिकल्स और उसके कन्क्लूज़न्स शेर करो।और, इन ध एन्ड ऑफ द डे, अपने 'सुपर क्रिएटर' के कमेंट्स का इंतज़ार करो।
राइट।एक और बात। आज से अपनेआप को 'क्राइम क्रेमपर्स' के टैग से इंट्रोड्यूज करो।
गुड़ लक एवरीवन।क्लास डिसमिस।" कहकर मास्कधारी इन्सान हवा में लुप्त हो जाता।
***
सुकेतु के इस नए जॉब प्रोफ़ाइल से कोई परिचित नहीं था। धीरे धीरे हर दूसरे तीसरे कॉलेजों में सायको लिंक, क्राइम क्रेमपर्स और सुपर क्रिएटर के नाम के चर्चे होने लगे।
शुरुआत बीस स्टूडेंट्स से हुई थी, जो बढ़कर सौ से भी ज़्यादा होती जा रही थी। और उसीके चलते क्राइम रेट भी बढ़ते जा रहा था।मर्डर, डकैती, लूंट और किडनैपिंग मानों आम बात बन गई थीं।बर्बस, छेड़खानी और रैप के केसिस सामने नहीं आये थे अब तक।गाज़ियाबाद की पुलिस रेड एलर्ट हो गई। ऊपर से ऑर्डर्स भी लगातार आने लगे। इन सबके पीछे का मास्टरमाइंड किसका है ये जानने के लिए cbi, और डिटेक्टीव्स भी काम पर तैनात किए गए।
बड़े बड़े कॉलेजिस में कमांडों को तैनात किया गया।सबकुछ किया फिर भी न वारदातें कम हुई न शिकायतें।
इन्वेस्टिगेशन शुरू हुआ। सुकेतु के कॉलेज के कुछ स्टूडेंट्स को 'क्राइम क्रेमपर्स' के टैग के बारे में पूछताछ की गई। पचासों स्टूडंट्स से एक सा ही जवाब मिला --
"सर, वो सुपर क्रिएटर के नाम से ख़ुदको इंट्रोड्यूज करता है। हमसे क्राइम के क्रेमपर्स कहलवाता है। क्राइम करने में क्या फील होता है, वो नॉट्स बनाने को कहता है। उन नॉट्स पर कॉमन डिस्कशन होता है। और फिर जिसका आइडिया एलिगेंट हो उसे दूसरे दिन दूसरा टास्क मिलता है।और सर, अगर कोई इस 'सायको लिंक' में से आउट होना चाहे उसे दुनिया से ही आउट कर दिया जाता है।हम सब डर के मारे कुछ नहीं बोल पाते। साइकोलॉजी के स्टूडेंट्स को यूज किया जाता है।हमें बचा लीजिए सर।"
FIR दर्ज कराने के फोर्टिन्थ डे के एक दिन पहले की दोपहर को सतोरी पुलिस स्टेशन में एक गुमनाम फोन आया -
"क्राइम क्रैम्प्स की डिटेल्स पाने के लिए सतोरी बिच पर ठीक 15 मिनट बाद मिलों। देर की तो कुछ हाथ नहीं लगेगा। ऑवर एन्ड आउट।"
पुलिसवाले सारे एलर्ट हो गए। फोन करनेवाले की लोकेशन ढूँढ़ने में एक टीम लग गई। दूसरी सतोरी बिच पर जाने के लिए रवाना हुई।तीसरी टीम, वॉइस मॉड्यूलर का इस्तेमाल करके चीफ से शातिर बदमाशों में से कोई है या नहीं उसका पता लगाने में जुट गई।चौथी टीम क्राइम क्रेमपर्स के ऑडियो लिस्ट को खँगालने लगी।14 और 30 सेकंड पर पुलिस सतोरी बिच पहुँच चुकी थी। चारों ओर आकर्षित करने योग्य कोई विशेष चीज़ नहीं थीं, फिर भी, हर एक पुलिस वाला अपनेआप को करमचंद जासूस की तरह पैनी नज़र से रेत के कण कण को कुरेदता जा रहा था।
"इंस्पेक्टर मोशेल, जिसे पकड़ने आये हो उसको थोड़ी तवज्जो तो दो।"कहते हुए सुकेतु पुलिस के सामने खून में लथपथ कुमुद को अपनी बाहों में उठायें आया और बेहोश हो गया।
इंस्पेक्टर मोशेल ने सुकेतु की नब्ज़ चेक की और कॉन्स्टेबल को एम्ब्युलेंस बुलवाने की बात कही।हॉस्पिटल में सुकेतु को मिली ट्रीटमेंट से कुछ ही घण्टो में उसे होश आया।सुकेतु का बयान लेने आई सीबीआई की टीम को जानकारी एक विडिओ में रिकॉर्डेड थी। क्राइम क्रेमपर्स से लेकर सायको लिंक और सुपर क्रिएटर वाली सारी इंफॉर्मेशन मिलने के बावजूद सुकेतु का बयान लेना जरूरी था।सुकेतु का केस सिविल कोर्ट में लड़ा गया। सुकेतु की ओर से कोई न था, क्योंकि, वो खुद ही अपनी पैरवी करना चाहता था।सुकेतु ने कुमदिनी के साथ जो कुछ भी किया उसकी दलीलें पेश ही नहीं हुई। और, सुकेतु को फाँसी की सज़ा सुनाई गई।
हाई कोर्ट में अपील कर सकता था, लेकिन उसने किया नहीं। वह अपने रवैये को बदलने में नाक़ामयाब रहा था। बस, उसे उसीका अफ़सोस रह गया।और इसी वजह से वह अपने प्लान को पर्फेक्ट नहीं कहता।सुकेतु को यरवडा जेल में 14 दिनों बाद फाँसी लगने वाली थीं। लेकिन, उसे उससे पहले ही ऐसी कोटड़ी में रखा गया जहाँ रोशनी कमरें में अपने आने का सबब पूछती और फिर सुकेतु नाम सुनकर उल्टे पाँव ही लौट जाती।
शाम ढल रही है
या
चँदेरी बादलों के झूले
में धूप छुपी है।'
आख़री रात का पहलेपहल वाला चाँद आ गया, सुकेतु की दास्तां जानने।सुकेतु बड़बड़ा रहा था -पूस की वो रात, काट खानेवाली। झीना झीना मद्धम फिर भी कुतरने वाला झरता हुआ कोहरा।
सुबह चार बजे का समय। कुहरे की पतली चादर तल्ख, नम हवा, किंतु बेहद उदास। मन में टीसें उड़ेलती हुई, मुझसे लिपट कर रोती हुई। धीमा अँधेरा सा घुला जहाँ बाहर। सभी शांत...। सामने वही मनहूसियत दिखाई देती थी। आज भी कोई चिड़िया फुदकती तो निगाहें उसी पर टिकाने को सिहर जाता हूँ। सबकुछ भूल जाता हूँ। याद आती है तो बस, कुमुद की चंचलता, वो भोलापन, झील सी गहरी नीली ऑंखें और अनकहे लफ्ज़!!शाम ढलने से पूर्व एक विशालकाय पंछी जो मेरे क़रीब आया था। मुझें उड़ा ले जाने के लिये।वो पंछी नहीं, जरूर कुमुद की आत्मा होगी। मुझें कोस रही थीं। कह रही थी -
"कोई अब कभी किसी डॉक्टर पे भरोसा नहीं करेंगी। जो तुमनें किया था, काश! उसकी सज़ा मैं तुम्हें दे पाती।इतनी आसान मौत नहीं मरने देती तुम्हें। रूह काँप उठनी चाहिए थीं तुम्हारी, जैसे मेरी हुई थीं..."
सुकेतु ने अपनी काल कोटड़ी में उस आख़री रात में दीवारों पर सच बयां किया अपने लहू से -
"सोचता हूँ तो लगता है कि, जो हुआ ठीक ही हुआ, वर्ना, उसकी तल्ख निगाहों का सामना कैसे कर पाता!?अच्छे वाले सुकेतु और कुमुद के क़ातिल इन दोनों के बीच झूलने लगता हूँ। बिल्कुल चुप्प -और तय नहीं कर पा रहा हूँ के कौन सच्चा और कौन झूठा!?समझाबुझा कर मुझें मेरा अक़्स यहाँ इस फाँसी के फंदे पर ले आईं।लेकिन,अगर, मेरी आख़री ख़्वाहिश दर्याफ्त़ की जाती है, तो, मैं, हर जनम में कुमदिनी सी खूबसूरती का क़ायल बनना चाहूँगा। और, वो मुझें मिले वैसी कोशिशें भी करना चाहूँगा। ना मिलने के आसार नजर आए तो हर बार, बार बार यह ज़ुर्म करके फाँसी पर चढ़ना चाहूँगा।
एक मरते हुए व्यक्ति की अंतिम इच्छा पूछकर क्या होगा? कैसा ब्लैक एंड व्हाइट जैसा विरोधाभास...? एक तरफ़ मृत्यु, और दूसरी तरफ़ इच्छाओं की कसक। एक ओर शून्य, और दूसरी ओर उत्कर्ष...!!
ये न्यायायिक नहीं है। इस क़ानूनी जुमले से। मैं सुकेतु और सुपर क्रिएटर थोड़ा सा भी सहमत नहीं हो पा रहा हूँ। औऱ, ज़िरह भी नहीं करना चाहता इस पर। अभी सही वक़्त नहीं आया है इसका।
अलविदा दोस्तों। अलविदा क्राइम क्रेमपर्स।''
बिना फाँसी के ही सुकेतु की अलविदाई* हो गई।
अख़बार की हेड लाइन थीं - *नामज़र कराया गया, वो मारा गया*
