इज़्ज़त

इज़्ज़त

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गुलाबी रौशनी में सराबोर पूरा मैदान धीमी धीमी बजती शहनाई की धुन माहौल को मदहोश किए जा रही थी ,जहां तक नज़र जाती हर तरफ़ गुलाबी ही गुलाबी ।पर्दे,फूल,सोफ़े,कुर्सियाँ,प्लेट,क़ालीन,और तो औरसारे मेहमान भी चमकीले गुलाबी परिधान में मन मोह रहे थे ।गांव के मुखिया दशरथ की पाँचवीं और आख़िरी पुत्री का विवाह समारोह था।बारात कानपुर के एक पढ़े लिखे घराने जज के पुत्र रघुवीर की थी,जो खुद भी एक सफल और कामयाब वकील था ।बला की सुंदर ज्योति गुलाबी लहंगे में घुंघट डाले हौले हौले मेंहदी रचे पाँव में पायल पहने छन छन कर रघुवीर के बग़ल में आकर बैठी ।घूँघट के झीने चुनर के भीतर से ज्योति और रघुवीर के आँखें चार हुई और तिरछी मुस्कान फैल गई दोनों के अधरों पर।पास में बैठी अपनी वधु का एहसास रघुवीर को रोमांच से भर दे रहा था।पंडित जी रस्मों के दौरान जब ज्योति का महावर और गुलाबी रंग कीचूड़ियों से भरे हाँथ,रघुवीर के हाँथ में रखा तो ;हाँथों की गरमाहट दोनों के तन बदन में झुरझुरी सी पैदा कर दी ।रघुवीर ने भी हौले से दबा कर ज्योति के हाथों को अपने प्यार का एहसास करा दिया ‘।


विदाई की घड़ी आ गई ।कार के पीछे के सीट पर रघुवीर ने बिल्कुल पास बैठी रोती हुई ज्योति को अपना गुलाबी इत्र से सुगंधित रूमाल बढ़ाकर,अपने हाथों से ज्योति के आँसू पोंछे , पानी दिया पीने को..।दो घंटे के सफ़र में दोनों में थोड़ी बहुत बातें हुई।


नव वधू का गृहप्रवेश ,रस्में आदि होते -होते रात दस बज गए ।लाल जोड़े में ज्योति रघुवीर के बाँहों में थी ।ज्योति के माथे पर छलक आए पसीने ;को सुगंधित रुमाल से रघुवर ने हौले हौले पोछा ,बातें शुरू हुई ही थी कि ज्योति बेहोश हो गई ।रघुवीर ने गोद में उठाकरज्योति को गाड़ी में डाला बहन को बैँठने को कह तुरंत अस्पताल ले आया रात भर सिरहाने बैठ हांथों से सर सहलाता रहा ।सुबह डॉ नेरघुवीर को बुलाकर कुछ कहा जिसे सुनकर रघुवीर हिल सा गया, आधा घंटा वो वहीं निष्प्राण सा बैठा रहा ।ज्योति ने पूछा -"क्या बोला डॉ ने?"

"अरे!कुछ नहीं थकान के वजह से चक्कर आ गया होगा ;कुछ ख़ास नहीं।"


दूसरे दिन से ज्योति को रघुवीर ने सख़्त हिदायत दे दी कोई काम नहीं करना ,सिर्फ़ आराम करना है तुम्हें ।खुद कमरें में खाना लाकरदेना साथ खाना,दवाइयाँ खुद से खिलाना हर चीज का विशेष ध्यान रखना।एक हफ़्ते बाद ज्योति के घर से विदाई कराने भाई आया तो रघुवीर बड़े प्यार से समझा दिया कि ज्योति मेरे साथ बैंगलोर जाएगी वहाँ से फिर विदेश घुमने जाएँगे बैंगलोर आकर ज्योति ने आगे पढ़ने की इच्छा ज़ाहिर कि तो रघुवीर ने कहा "अभी नहीं ।बाद में मैं तुम्हें खुब पढ़ाऊँगा बिल्कुल मेरी तरह तुम्हें एक वक़ील बनाउंगा।"


दोनों अपनी घर गृहस्थी सजाते; एक दूसरे में डूबे ..कोर्ट से दिन में दस बार फ़ोन कर रघुवीर ,ज्योति से बातें करते...हर महीने शादी की तारीख यानि हर महीने के २ तारीख को साथ केक काटते ,सज संवर कर एक दूसरे में डूबे दोनों ;मानों ईश्वर ने एकदूजे के लिएही इन्हें बनाया हो ।

पाँच महीने बीत गए ,घर से जब भी कोई आना चाहे रघुवीर बहाना कर देता ।ज्योति को डॉ के पास ले जाना दवा और खाने -पीने का ख़्याल सब चीज़ का ध्यान बख़ूबी निभा रहा था ।एक दिन ज्योति ने कहा -"रघु मुझे तुम्हें कुछ बताना है ।"

"हाँ !कहो ""!मैंने कुछ छुपाया है तुमसे क्या छुपाया है ?जानकर तुम मुझे ज़हर भी दोगे तो तुम्हारे हांथो मैं खुशी खुशी पी लूँगी ।तुम्हारे जैसे फ़रिश्ते को अब मैं और धोखा नहीं दे सकती ।आओ ,इससे पहले कि हम एक दूसरे से दूर हो जाएँ एक बार अपने प्यारे झूले पर ;जिसपर दिन में एक बार हम ज़रूर झूलते हैं ।जिसपर बाँधे थे घुँघरू हम दोनों ने जिसकी सरगम हमारा साथ देती ,जब हम तुम नि:शब्द एक दूसरे में खोए रहते ।फिर ज्योति ने कहना शुरू किया ....

"शादी के एक महीने पहले की बात है मैं ट्यूशन से ऑटो पर बैठ कर घर आ रही थी ।सूनसान सड़क पर ऑटो वाले ने मेरे साथ ज़बर्दस्ती की थी ।बाबूजी को हार्टअटैक आया था अस्पताल में थे।सभी शादी की तैयारी में लगे थे।मैने चुप रहना ठीक समझा ।लेकिन तुम्हारे प्यार और मोहब्बत में साराबोर होने के बावजूद;’आत्मग्लानि मुझे खाए जा रही थी ।मै अंदर ही अंदर तिल तिलकर मर रही थी ।तुम्हारे पवित्र प्यार की हक़दार मुझ जैसी अपवित्र बिलकुल नहीं हो सकती ।तुम मेरी ज़िन्दगी में आए जीते जागते भगवान समान हो ।तुम मुझे त्याग दो ,भूल जाओ ।मैं तुम्हारी याद में सारा जीवन काट लूँगी ।" रोते रोते रघुवीर के सीने से अलग होते हुए ज्योतिने अपने रघु के आँखों में देखा; जहाँ ग़ुस्सा,नफरत के विपरीत एक प्यारी सी मुस्कान देख कांप गई थी ।रघुवीर ने जो कहा उसे सुनकर ज्योति अवाक् रह गई और अपने रघु के पैरों से लिपट गई ।"तुम्हें डॉ ने शादी के पहले दिन ही बता दिया था फिर भी तुमने इतने बड़े तूफ़ान को जज़्ब किया रखा ।मुझे अपनाया ।न पूछा ,न जानना चाहा ।जब भी मैं डॉ से पुछती कि क्या हुआ है मुझे ,तो डॉ कहती आपके पति ने मना किया है ,समय आने पर आपको खुद पता चल जाएगा ।आज मैंने अपने पेट पर उभार देखा है।मैं अच्छे से समझ रही थी कि मुझे क्या हुआ है ,लेकिन मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि जो मैं सोच रही हूँ वो झूठ हो।इस पाप को मैं नहीं रखना चाहती।तुम्हारी यादों को दिल में बसाए ज़िन्दगी गुज़ार दूँगी रघु मेरे तरफ़ से तुम मुक्त हो ...अपनी नयी ज़िंदगी चुन सकते हो।"


रघुवीर ने बस इतना कहा-"तुम्हारे साथ सात फेरे लिया हूँ ,क़समें खाई है “जीने मरने की “तुम मेरी इज्जत हो और ‘मैं अपनी इज़्ज़त की हिफ़ाज़त जीवन पर्यन्त करूँगा ‘।ज्योति ने “ अपने देवता से लिपट कर सैकड़ों प्यार के मुहर लगा दिया।”




     


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