ईश्वर कौन है
ईश्वर कौन है
ईश्वर कौन है यह सवाल हर मानव के अंदर आता है। पर वह किसी से कभी पूछता नहीं है क्योंकि वह जानता है हर इंसान इसी सवाल के घेरे में है कि ईश्वर कौन है तो आज हम हैं जो बड़े-बड़े ग्रंथों से पढ़कर बातों को समझा है। उसे हमें समझ आया कि ईश्वर कौन है ईश्वर क्या है, किसे माना जाता है,किसे नहीं। मानव ने बहुत सारे ग्रंथ पड़े हैं जैसे कि भागवत गीता जो ग्रंथों में सबसे बड़ा ग्रंथ माना जाता है। रामचरितमानस, महाभारत हर तरह के ग्रंथ हमने पढ़ें हैं, हर में एक ही वर्णन है कि ईश्वर किसे माना जाए। श्रीमद्भागवत गीता में कहा गया है कि ईश्वर वही है जो सही राह दिखाने किसी को भी अपना बना लेते हैं जरूरी नहीं कि हर अच्छे दिखने वाले लोग हमारे ईश्वर बनने के लायक है । भगवान ने इस धरती पर एक ईश्वर पहले से ही दे हमें भेंट स्वरूप रखा है। वह हमारे माता-पिता उनसे बड़ा कोई ईश्वर नहीं होता।
जैसे हमने महाभारत में देखा था कि जब अर्जुन भीम भाई वनवास पर निकले थे तब उन्हें प्यास लगी थी। तब वह लोग पानी को ढूंढने लगे थे और उसके बाद उन्हें एक सरोवर दिखा जिस सरोवर का जल उन्होंने पीने का सोचा। पर उस सरोवर में से एक इंसान निकला जिन्होंने कहा मेरे प्रश्न का उत्तर दो फिर भी इस जल को ग्रहण करो पर किसी ने उनकी बात नहीं मानी जल पी लिया उसके बाद सब के सब मूर्छित हो गए। उसके बाद अर्जुन के सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर आए उन्होंने उनका सम्मान करते हुए कहा कि ठीक है आप जो प्रश्न पूछेंगे मैं उसका उत्तर दूंगा। तब उन्होंने सवाल किए उसमें कुछ सवाल ऐसे थे। आकाश से बड़ा कौन है? तो युधिष्ठिर ने उत्तर दिया पिता। धरती से बड़ा कौन है? तो मां। हम जानते हैं दुनिया में सबसे ज्यादा लोग मां को सम्मान देते हैं पर कई लोग ऐसे भी हैं जो माता पिता को बड़े होने के बाद भूल जाते हैं वह भूल जाते हैं कि उन्होंने हमारे लिए कितना कुछ किया है। क्या यही हमारा धर्म में ईश्वर ने इसी के लिए भेजा था कि अपने जिंदगी के सबसे बड़े ईश्वर को हम भूल जाओ। तुम मुझे इस समझा कि ईश्वर कौन है इस हमारे लिए इस दुनिया में मूर्ति जो बनाकर हम रखते हैं वह ईश्वर ईश्वर हमारे ह्रदय में रहते हैं। हम जो मूर्ति की पूजा करते हैं उसकी जगह अपने माता-पिता की करनी चाहिए।
एक वक्त की बात है जब मैं एक गांव में गई थी जिस गांव का नाम सरोली था। उस गांव में लोग सुबह उठते हैं, ईश्वर की पूजा करते थे। पर वहां ना कोई मंदिर था ना कहीं भगवान की मूर्ति उनका मानना था ईश्वर कहां रहते हैं ह्रदय में दिखता कौन सा ईश्वर है सूर्य सुबह उठते ही सूर्य को जल देते थे उनकी पूजा करते थे उसके बाद अपने माता-पिता की उससे उनके ईश्वर की पूजा हो जाती थी जिससे हमें यह समझता है कि ईश्वर वही है जो हमें हर वक्त संभालता है बुरे वक्त में हमारा साथ देता है। अच्छे वक्त में हमारे साथ रहता है। क्योंकि आज के वक्त में तो अच्छे वक्त है तो इंसान साथ रहेंगे हर वक्त और जब वक्त बुरा चलने लगे तो हर कोई छोड़ कर चले जाते हैं तो हम उन्हें अपने ईश्वर के समान क्यों समझते हैं। जो हमारे ईश्वर होते हैं उसी को हम मंदिर के बाहर कर देते हैं।
जब हम किसी घर में रहते हैं और उस घर में माता-पिता रहते हैं तभी वह घर ईश्वर का मंदिर कहलाता है वरना जब उस घर से निकाल दिया जाए ईश्वर को तो वह मकान कहलाने लगता है। उस ईश्वर ने एक ही चीज सीख लाया है पूजा भले ही ना करो उधर से सम्मान करो बस इतना ही हमें चाहिए। मेरे लिए मेरे माता-पिता सबसे बड़ी देन है मैंने ईश्वर की पूजा करना चाहती हूं ना मंदिर में जाऊंगा पर उनका सम्मान करके ही मैं पूरी दुनिया में की खुशी पा लेती हूं। मैं जो कुछ करती हूं वह बड़े ही कर्म और आत्मविश्वास के साथ करती हूं क्योंकि मैं जानती हूं। कि मेरे पीछे मेरे ईश्वर हमेशा खड़े रहेंग। वह मेरा साथ कभी नहीं छोड़ेंगे अगर मैं मुश्किल वक्त में आ गई तो वह मुझे हौसला देंगे और सही राह दिखाएंगे। मंदिर की पूजा मैं ना करना जानती हूं। मैं जानू कि क्योंकि मैं ईश्वर की पूजा करके दिखावा नहीं करना चाहती।
मैं बस मनसे सलमान करके ही उनकी पूजा कर लेती हूं।
उस गांव में बहुत सारे लोग थे पर में किसी अलग इंसान के तलाश में थी जो मुझे ईश्वर कौन है यह समझा सके पूरी तरह से। हमने जो मानती थी वह बात सत्य है या असत्य मुझे यह नहीं पता था इसलिए हमने अपने मन को कहा अब चले ईश्वर कौन है इस सवाल के जवाब ढूंढने। हम उस गांव के सबसे आखरी घर में गए जो बहुत गरीब परिवार था उसमें माता पिता और एक पुत्र रहता था। मेरी बात उनके पुत्र से हुई जिसका नाम रमेश था।
जब हम गए थे तब वह अपने माता पिता के चरण स्पर्श करके आशीर्वाद ले रहा था तो हमने उससे पूछा यह क्या कर रहे हो आज के जमाने में भी यह सब कौन करता है। हमने यह बात उसे जानबूझकर बोली कि पता कर सके वह क्या कहता है इसके जवाब में, तो उसने कहा आप जहां से भी है आपको कोई याद रहना चाहिए कि माता-पिता ईश्वर होते हैं तो उनके चरण स्पर्श करके विश्व की सारी खुशी हमें मिल जाती हैं। मैं भले ही ना अमीर हूं ना कुछ भले ही मेरे पास धन दौलत नहीं है पर मेरे पास वह ईश्वर है जिनकी पूजा से धन दौलत पूरे ब्रह्मांड की खुशियां मेरी झोली में आ जाती हैं। आप लोगों को भी यह भूलना नहीं चाहिए कि जितने दिन भी आप इस दुनिया में आने में लगाते हैं उतने दिन वह मां-बाप कितने कष्ट में रहते हैं। जिस मां ने इस धरती पर आपको लाया है कष्ट झेल कर उसे आप क्यों भूल जाते हैं। युग बदला है परंपराएं नहीं संस्कार नहीं बदले अपने संस्कार को मजबूरी है और आप भी वही कीजिए जो आपने कभी मुझे करते हुए देखा है।
मैं उसकी बातों से बहुत प्रभावित हूं और मैंने कहा मैं तो बस तुम्हारा एक छोटा सा टेस्ट ले रही थी मुझे देखना था कि आज के युग में भी बच्चे कितने परंपराओं और संस्कारों को मानते हैं हम भी इसी यूकेआर हम जहां पर रहते हैं वहां पर सब अपने मनमर्जी से चलते हैं। यह ना कोई अपने माता-पिता किसी के ना सुनते हैं क्योंकि सबकी अपनी अपनी जिंदगी है ऐसा समझकर जिंदगी जीते हैं। इसीलिए मैं इस छोटे से गांव में आई। और तुम्हें देखकर ऐसा लगा हां आज भी इस धरती पर संस्कार और परंपराएं बाकी है। तब उसने हमारा आदर सम्मान किया। वह बोला। "अतिथि देवो भव " जो इंसान हमारे घर अतिथि बनकर आता है उसका सम्मान करना हमारा कर्तव्य है चाहे वह हमारे प्रति कुछ भी विचार करें। वह हमारे लिए ईश्वर के समान है जैसे कि हमारे घर कोई भी अतिथि आता है तो हमारे पास कुछ रहे या ना रहे उसका आदर सत्कार करना हमारा कर्तव्य बनता है। तो फिर सब कुछ होने के बाद मैंने उसे कहा मैं तुमसे कुछ सवाल पूछ सकती हूं क्या मुझे इसकी इजाजत है।
वह बोला इसके लिए इजाजत की क्या जरूरत है आप कोई भी सवाल पूछिए अगर मुझे उसके जवाब पता होंगे तो मैं आपको जरूर दूंगा। फिर मैंने उससे यह सवाल पूछा ईश्वर कौन है वह बोला इस सवाल का जवाब आपको क्या लगता है मुझे वह जवाब पहले बताइए। तो मैंने उसे बताया जो हमारे प्रति अच्छी भावना के साथ साथ हर वक्त हमारे साथ रहता है हमारे बुरे वक्त और अच्छे वक्त में जो हमारे लिए दुनिया से लगता है बस यह नहीं कहता कि मैं तुम्हारे लिए दुनिया से लड़ लूंगा। मेरे लिए मेरे माता पिता ही ईश्वर है क्योंकि वह मेरे लिए हर वो काम करते हैं जो मुझे मेरी जिंदगी में आगे बढ़ने में मदद करेगा। वह बोला बिल्कुल सही ईश्वर वही है जो हमारे हर वक्त रक्षा हर वक्त हमें एक नए काम के लिए प्रोत्साहन देते हैं। सूर्य विश्वर है चंद्र भी ईश्वर है अग्नि भी ईश्वर है पानी भी ईश्वर है हवा भी ईश्वर है हर चीज में ईश्वर है क्योंकि यह चीज ईश्वर से जुड़ी हुई है। आपकी हर बात सही है आपने सही कहा ईश्वर वही है जो हर वक्त हमारा साथ देता है। इसीलिए अभी जो आपने देखा कि मैंने मेरे माता पिता के चरण स्पर्श कि उससे ईश्वर के चरण स्पर्श हो चुके हैं। मैंने कहा धन्यवाद इसी सवाल के लिए मैं इतने दूर से यहां आई थी कि इस गांव में मेरे सवाल का जवाब मुझे जरूर मिलेगा।
और आपसे वह जवाब मिल गया मैं बहुत खुश हूं कि मैं जो कहती हूं वह बात सत्य है। वह बोला जो कहते हो उसे सत्य ही मानो क्योंकि ईश्वर तुम्हारे मुख से हमेशा सत्य ही बुलाएंगे असत्य यह हमारा मन बना कर बोलता है क्योंकि मन को अलग-अलग चीजें सोचने की हमने मौका दिया होता है। उसके बाद हमने कुछ बातें की गांव को लेकर उन्होंने कहा इस गांव में मंदिर है श्री कृष्ण का जहां पर हर रोज एक नई-नई रोमांचक कहानियां बच्चों को अलग-अलग संस्कारों के बारे में बताया जाता है। हमने एक रात वहीं बिताई रात को खाना खाकर सो गए सुबह उठकर जब हम उस मंदिर में गए तो हमने वही देखा जो रमेश ने हमें बताया था। पंडित जी पुजारी की जगह वहां गुरुजी बैठे थे जो शिक्षकों को श्री कृष्ण के बारे में बताते और अलग-अलग चीजें दिखा रहे थे उन्होंने श्रीमद्भागवत गीता से निकले संस्कार और बड़ी-बड़ी बातें भी उन्हें समझा रहे थे। मैं उसके बाद वह सब मंदिर के दर्शन वर्शन गांव यह सब घूमने के बाद अपने घर के लिए रवाना होते वक्त उन्होंने मुझे कुछ चीजें दिखाने की वस्तुएं वहां की चीजें और श्रीकृष्ण की एक प्यारी सी मूर्ति भागवत गीता की एक पुस्तक उसके बाद हमने उनसे विदा लिया और अपनी यात्रा शुरू की।
उस गांव में जाने के बाद मुझे ईश्वर कौन है यह सवाल का जवाब मिला इस बात से मैं बहुत परेशान थी मैं अपने घर आने के बाद अपने माता-पिता से यह बातें बताएं तो वह बहुत खुश हुए। उसके बाद मैं जिस संस्था से जुड़ी हुई थी ईश्वर के प्रति श्रद्धा वह बताते थे ईश्वर मानने के लिए नहीं पूजा मंदिर में होती है ईश्वर मन में होते हैं यह बातें समझाना हमारे संस्था का एक छोटा सा काम है। मैं उस संस्था से जुड़ी हुई हूं जो यह काम करता है उसके बाद मैंने उस संस्था में जाकर यह सब बातें बता वह बहुत खुश हुए और उन्होंने उस गांव में जाकर रमेश की हालत देखिए उसके बाद उन्होंने उसकी मदद की और पूरे गांव में जो संस्कार मिलते थे वहां पर उन्होंने हर नई नई चीजों की उत्पत्ति करके उन्हें दी जिस कारण से वह गांव के लोग बहुत प्रसन्न हूंए।
तो फिर से मैं उस गांव में कुछ वक्त के बाद गई तो मैंने वह संस्कारों का गांव फिर वैसा ही पाया जैसा मैं उसे देख कर गए थे बस कुछ गरीबों की मदद हुई यही मेरी कामना थी सो मैंने किया वह गांव के लोगों ने मेरा धन्यवाद किया और फिर मैं उनसे विदा लेकर वहां से निकल गए उस गांव से मुझे यह सीख मिली कि जिससे हम देखते हैं उसी को ईश्वर मानना चाहिए जो दिखावा करता है उसे नहीं हमें कभी भी अपने जीवन में दिखावा नहीं करना चाहिए दिखावा करने से हम अपने मन में एक अलग ही दुनिया बना लेते हैं जो दुनिया से दिखावा करना जानती है वह जो हमारी असलियत है वह तो हमको ही बैठते हैं जैसे हम भूल गए थे कि ईश्वर कौन है और किसी को भी ईश्वर मानने लगे थे वैसे ही दिखावा करने से हम भूल जाते हैं कि हमारी असली पहचान क्या है दिखावा ना करने में ही अच्छी और इस दुनिया में अलग पहचान मिलेगी क्योंकि जो दुनिया में पहचान बनी हुई है उससे भी अलग पहचान बनानी चाहिए।
मन में बसे हैं ईस्ट सामने बसे हैं भाव ना पड़े इस माया की दुनिया में क्योंकि भूल गए सब अपनी पहचान। मात पिता से बड़ा न कोई ईस्ट बने इस दुनिया में चाहूं मैं सूर्य साथी जी और चंद्र सी शीतल छाया वायु से तेज चाहूं अग्नि सा जोत पांऊं।
