गोकुल की यात्रा
गोकुल की यात्रा
मुझे यात्रा करना बहुत पसंद था। मैं बचपन से ही इन सब में दिलचस्पी रखती थी। मैं हर अलग-अलग जगहों की यात्रा करती थी। मुझे अलग-अलग जगह पर जाना और वहां की जानकारी प्राप्त करना बहुत पसंद था जिस कारण से मुझे हर जगह की जानकारी मिलती थी मैं किसी को भी जानकारी देने में सक्षम थी। यात्रा जो हमें अलग-अलग जगहों से परिचित करवाता है जिन जगहों को हम नहीं जानते उस जगह पर ले जाता है और समझा जाता है कि इन जगहों का इतिहास क्या है।
मैं एक महीने पहले ही अयोध्या जो श्री राम की जन्मभूमि है वहां गई थी, वहां के बारे में बहुत कुछ जाना। मैं शेर नारायण के छठे अवतार परशुराम के वंशज हूं। और और मैं कुछ वक्त पहले मथुरा गई थी जो श्री कृष्ण की जन्मभूमि है जहां उन्होंने माता देवी की के गर्भ से जन्म लिया था जहां से भगवान वासुदेव ने उन्हें गोकुल मेला मां यशोदा के और नंद बाबा के यहां छोड़ गए थे नंद बाबा जो नंद भवन में रहते थे उसे देखने कि मुझे जिज्ञासा हुई इस कारण में गोकुल गई जहां श्री कृष्ण की बाल लीला को जानने का मुझे अवसर प्राप्त हुआ।
मथुरा से गोकुल 14 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ था। गोकुल जो श्री कृष्ण का निवास स्थान था, जहां श्री कृष्ण अपने बाल लीला रची थी। गोकुल या गांव 5000 सालों से बसा हुआ है जो श्री कृष्ण के निवास स्थान है। मैंने गोकुल के बारे में जानकारी ले तब मुझे पता चला कि अगर मैं दूर से आती हूं तो मुझे फ्लाइट से आगरा आना पड़ेगा और वहां से मथुरा मथुरा से कोई बस तो नहीं मिलेगी रोड गाड़ी जैसे टेंपो रिक्शा इन सब से मैं गोकुल जा सकती हूं। पर मैं अपनी ड्राइवर के साथ खुद की गाड़ी से आई थी इसलिए मुझे इन सब का कोई झंझट नहीं हुआ। मैं सीधे गोकुल आई गोकुल में आने के बाद मैंने वहां के बुजुर्गों से बातचीत की और वहां के जगह के बारे में जाना। वहां का एक इंसान था जो पूरे गोकुल के बारे में अच्छे से जानता था और वह नौजवान था इसलिए मैंने उसे कहा कि आप बुजुर्ग नहीं है आपको ज्यादा परेशानी नहीं हुई क्या आप मुझे पूरा गोकुल घुमा सकते हैं तो वह बोले ठीक है आइए मैं आपको श्री कृष्ण के जगह पर ले जाता हूं और पूरा गोकुल घुमाता हूं।
उसने मुझे कहा सबसे पहले आप कहां जाना चाहेंगे यहां पर रमन रही थी जहां श्री कृष्ण ने अपने बाल शाखाओं के साथ खेला करते थे वह जगह आप देखना चाहेंगे तो मैंने कहा हां मुझे श्री कृष्ण की बाल लीला जहां अपने मित्रों के संग खेला खुदा करते थे उस रमणरेती जगह पर ले चलो मैंने सुना है कि रमणरेती एक ऐसी जगह है जो हमारे कपड़ों में उसकी रेट जरा भी नहीं सकती वह बहुत ही शांति सके और वहां पर भक्तों की कतार बहुत ज्यादा लगी रहती, हो वह बोले आप सच कह रहे हैं। रमन रेती के यहां पर एक बड़ा सा मंदिर भी है राधे कृष्ण का वहां पर राधा और कृष्ण की बड़ी सी मूर्ति स्थित है वहां पर भक्तों का राधे श्याम का जयकारा बहुत ही ज्यादा घूमता रहता है, वहां भक्त बड़े खुशहाल झूमते नाचते रहते हैं। मैं पहले मंदिर में गए और भगवान श्री कृष्ण के दर्शन की पुजारी जी का आशीर्वाद लेकर आई थी उसके बाद में रमणरेती में गए और वहां पर खेलकूद किया और वहां पर बहुत ही अच्छा लगा उसके बाद में उसके बाद रमन रेती के पास जो भंडारा लगता है वहां पर गए वहां पर भक्तों के लिए भोजन होते हैं भंडारे का प्रसाद बहुत ही स्वादिष्ट था मैंने खाने के बाद में निकली और फिर वहां पर एक हिरण अभ्यारण भी है वहां मैं वहां पर जाने के बाद मैंने देखा कि अलग-अलग प्रजाति के बहुत सारे हिरण वहां पर थे। रमन रेती के पीछे की तरफ एक कुंड है जहां पर सारे भगवान करते हैं मैंने भी उसमें एक-दो डुबकियां लगाई और उस कुंड का आनंद लिया। रमणरेती से देर से 2 किलोमीटर की दूरी पर थार नंद भवन अब मैं नंद भवन की ओर निकल पड़ी थी नंद भवन वह जगह जहां श्री कृष्ण ने अपना बचपन बिताया था मां यशोदा और नंद बाबा के साथ रहते थे खेलते थे कुदते थे। नंद भवन जाने के उन अनूठे रास्तों पर चली जहां श्री कृष्ण के कुत्ते अपने घूमते थे अपने मित्रों के साथ मां यशोदा उन्हें ढूंढने के लिए गलियों गलियों में जाती थी वह जगह को देखकर मेरा मन मंत्र मुक्त हो गया था। नंद भवन जिसको 84 खंबा नाम के मंदिर से जाना जाता है यह नाम उसे इस कारण से दिया गया है क्योंकि मंदिर में 84 खंभे हैं जिस पर वह पूरा मंदिर टिका हुआ है। इस मंदिर में श्री कृष्ण के बाल रूप को दर्शाया गया है, उस मंदिर के खंभों को अगर हम गिरना चाहे तो भी नहीं गिन पाएंगे। मैंने वहां श्री कृष्ण के बाल रूप के अलग-अलग कथाओं को चित्र के रूप में देखा श्री कृष्ण के दर्शन करने के बाद आगे की तरफ एक गर्भगृह मौजूद था उसे गर्भगृह मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह वही जगह है जहां पर श्री कृष्ण को वासुदेव जी ने यमुना पार करके पहली बार रखा था। उस मंदिर में मैं एक सुकून सा महसूस कर रही थी इसलिए मैं उस मंदिर में काफी वक्त रुचि और मैंने सोचा कि इधर-उधर रखने से अच्छा इसी मंदिर में रात के समय में रुक जाऊं और मैंने पुजारी जी से पूछा क्या मैं रात के समय में रुक सकती पुजारी जी बोले कोई समस्या नहीं है आप रुक सकते हैं। फिर मैं आगे की यात्रा पर निकल पड़ी, उसके पश्चात में ब्रह्मांड घाट पहुंची जहां श्री कृष्ण ने मिट्टी खाई थी और अपने मुख में पूरा ब्रह्मांड दिखाया था। ब्रह्मांड घाट यमुना नदी के किनारे पर ही है। यहां पर बाजार ए हैं जहां पर प्रसाद भगवान श्री कृष्ण के मूर्तियां वस्त्र सारी चीजें बिकती हैं। ब्रह्मांड घाट के मंदिर के दर्शन से पहले मैंने यमुना नदी में स्नान करके उसके बाद ब्रह्मांड घाट के श्री कृष्ण के मंदिर में गई और दर्शन करके प्रसाद के वहां से सारे 8 किलोमीटर की दूरी पर बलदेव गांव बसा हुआ था। जहां भगवान दाऊजी का मंदिर स्थित है। वहां पर जाने के बाद मैंने दाऊ भगवान का दर्शन श्री कृष्ण लोगों का दर्शन किया उसके बाद मैं वहां से निकली हां यह बात मुझे पता थी कि वहां दाऊजी के मंदिर के खुलने और बंद होने का वक्त होता है पर मैं खुलने के वक्त पर गई थी जिसके कारण मैं उनके दर्शन कर पाए। मैं वहां भगवान दाऊजी के दर्शन अर्थात भगवान बलराम के दर्शन करने और माता रेवती के दर्शन करने के बाद जो मेरे साथ गोकुल का एक निवासी था उसने कहा कि यहां पर एक बड़ा बाजार भी है जहां खाने पीने की व्यवस्था है। पेशाब है वहां अलग-अलग चीजें मिलती है और मेरी तो आदत ही थी जहां जाओ वहां की बहुत सारी यादें अपने साथ लेकर आ मैंने वहां पर बहुत कुछ खाया और बहुत कुछ खरीदा वहां से मैंने सब कुछ ले कर घर जाने का सोचा और मैंने इसलिए बहुत सारी चीजें वहां से मैंने वहां से श्री कृष्ण की मूर्ति कपड़े बैग प्रसाद मिठाइयां बहुत सारी चीजें खरीद के रख ली। रात का वक्त हो चुका था फिर मैं श्रीकष्ण के उसी मंदिर में चली गई जहां मैं रुकने वाली थी मैंने यह भी सुना था कि श्री कृष्ण कि सच्चे मन से जो भी प्रार्थना करते हैं उन्हें भगवान श्री कृष्ण का आशीर्वाद जरूर मिलता है और मैंने बहुत ही इच्छाओं के साथ वहां गई थी अब मेरी सारी मनोकामनाएं पूरी हो गई इस बात को मैं बहुत खुश थी कि मुझे घूमना फिरना तो पसंदीदा अलग-अलग जरूर की जानकारी पाने के साथ श्री कृष्ण की बाल लीला के दर्शन भी हो चुके थे मंदिर में ठहरने के बाद सुबह का वक्त हो चुका था सुबह के वक्त में पूजा अर्चना आरती होने के बाद प्रसादी खाकर मैं वहां से निकली इतने सारे सामान को लेकर मैं गाड़ी में बैठ कर फिर अपने घर आ गई और उन यादों को बहुत ह ताजा रखने के लिए मैंने अपनी किताब में जो जो बातें लिखी थीं। उन्हें देखने लग गया मने मेरे पूरे परिवार को सारी तस्वीरें दिखाई जो मैंने गोकुल में खींची थी माता-पिता बहुत खुश हूं, कि घूमने फिरने का शौक रखने के साथ अपने परंपराओं और रीति-रिवाजों का भी मैं मान रखती थी मुझे हर चीजों से बहुत लगाव था इस कारण आज भी मैं अलग-अलग जगहों की यात्रा करती हूं यह तो अभी की गई यात्रा गोकुल की थी बाकी बहुत सारी यात्रा थी कुछ मैंने बताई कुछ नहीं पर गोकुल की यात्रा मेरी जिंदगी की बहुत ही प्यारी यात्रा थी अब मैं चाहती हूं कि मैं निधिवन जाऊं वहां भी कभी जा पाएं। यह थी मेरी गोकुल की यात्रा मेरी जिंदगी की प्यारी सी यात्रा जिसने सुकून भरी जिंदगी दी मुझे एक अलग ही एहसास दिया जिंदगी जीने का एक नया मोड़ सिखाया गोकुल ने मुझे श्री कृष्ण के बाल लीलाओं को दिखाएं इस यात्रा में मैं बहुत ही पसंद थी श्री कृष्ण जो मुझे बहुत ही बातें हैं मन मोह लेते हैं उनकी गोकुल की यात्रा बड़ी ही प्यारी लगी मुझे। उसके बाद में अपनी आगे की जिंदगी में लग गई और अब सोच रही हूं कि दूसरी यात्रा निधिवन की जाए वह करना चाहूंगी मैं।
