ईश्वर का अस्तित्व
ईश्वर का अस्तित्व
हर समय माला लेकर बैठे रहते हो। लड़की की कोई चिंता ही नहीं है। कुछ पैसे धेले का इंतजाम करो, लड़की के लिए लड़का नहीं देखना?" निर्मला ने रोज की तरह सुबह से ही बड़बड़ाना शुरु कर दिया है और शाम हो चली है।
"अरे! क्यों चिंता करती हो? ईश्वर पर विश्वास रखो, समय पर सब हो जाएगा।" चौबे जी ने अपना गमछा संभालते हुए कहा।
" ईश्वर तो जैसे घर बैठे ही लड़का भेज देंगे, आपकी लड़की के लिए उनके पास तो कोई काम धाम है नहीं, सिर्फ आपका ध्यान रखने के अलावा?"
"अरे! क्यों पूरा दिन चिकचिक करती रहती हो?" चौबे जी कभी गुस्सा नहीं होते। वो तो पूरा दिन बस लड्डू गोपाल के बारे में ही सोचते हैं।
"जयपुर वाली मौसी बता रही थी, उनके रिश्तेदारी में एक लड़का है। अब देखकर तो जब आओगे, जब जेब में हजार, दो हजार रुपए होंगे? जो पैसा होता है दान-दक्षिणा में खर्च कर देते हो। उसके बाद को जो दो चार रुपए बचते हैं, उन्हें अपने दोस्तों को उधार दे देते हो। आज तक लौटाए हैं किसी ने समय पर? अपने भविष्य की कभी नहीं सोचते, बस भगवान भरोसे चल रहा है, हमारा घर तो, दिन भर पूजा-पाठ ही खत्म नहीं होता तुम्हारा, चार घंटे सुबह चार घंटे शाम।"
"आज तक किसी चीज की कोई कमी हुई है? आगे भी नहीं होगी ईश्वर की कृपा से, मेरी पूजा पाठ से तुम्हें क्या परेशानी है ? लोग बुरी आदत के लिए परेशान रहते हैं, तुम तो मुझे भजन भी नहीं करने देती?"
"भजन ही करना था तो शादी क्यों की, किसी आश्रम में या हिमालय पर चले जाते ना, भगवान को ढूंढने। अब वो बैठे-बिठाए तुम्हारी लड़की की शादी भी कर जाएंगे।मैं ना बोलूं, तो इस घर में कोई काम ही ना हो, आठ दिन में आधा किलो घी का डब्बा खर्च कर चुके हो, ज्योत के लिए, पता है; घी कितने रुपए किलो है ?"
"अरे! तुम भगवान के लिए मत कुछ कहो।"
"हां चाहे हम बिना चुपड़ी रोटी खा ले, उसके पास तो सब कुछ है, उसे किसी चीज की क्या जरूरत? वह तो बस भाव का भूखा है, दुनिया कहती है।"
"श्रद्धा भी तो कोई चीज होती है ना निर्मला?" चौबे जी ने फिर शांति से जवाब दिया।
"हां रहने दो बस, लो थैला पकड़ो और जाओ सब्जी ले आओ और हां; जिस लड़के के बारे में मैंने बात की है, उसके बारे में जरा सोचना, परसों जाना है तुम्हें, मैंने बात कर ली है मासी से, लड़का देखने के लिए थोड़ी बहुत पैसो का भी इंतजाम होना चाहिए। अब थोड़े बहुत पैसों के लिए एफडी तो तुडवाओगे नहीं। जो यार दोस्तों को उधार दे रखे हैं उनसे जरा मांग लो , तुम्हारे ही हैं, मांगने में इतना संकोच मत किया करो।" निर्मला ने गुस्से में चौबे जी को समझाते हुए कहा ।
थैला लेकर निकल तो गए लेकिन विचार यही है मन में, आखिर लड़की की शादी तो करनी है। पैसों का इंतज़ाम कैसे होगा ? दिखाते नहीं है , इसका मतलब ये नहीं है कि उन्हें चिंता नहीं है। सोचे सब्जी लेने से पहले जरा अपने दोस्त से अपने पैसों की बात कर ली जाए। जिस शोरूम में काम करता है, वो भी पास ही है। शोरूम के दरवाजे पर पहुंचे , भला कपड़ों का भी इतना बड़ा शोरुम होता है? पूरा चार मंजिल बना हुआ। सारा एसी, घुसते ही सारी थकान मिट जाए। भाई बड़ी अच्छी जगह काम करता है , राकेश? चौकीदार से कहा राकेश से मिलना है। उसने थैला बाहर रखवाया और कहा ," अंदर जाइए ।"
अंदर गए तो पता चला वो ऑफिस बैठता है। राकेश ने अपने मित्र को देखा तो गले लगा लिया," चौबे कैसे आना हुआ?"
"कुछ ना भैया कुछ समस्या आन पड़ी है। पैसों की सख्त जरुरत है?" अपने ही पैसे चौबे जी ऐसे मांग रहे हैं, जैसे उधार मांग रहे हों।
"हां, हां, क्यों नहीं? कितने पैसे चाहिए तुम को?" राकेश ने पूछा।
"जो तीन साल पहले दिए थे तुम को, लौटा दो तो अपना भी काम बन जाए, लाली के लिए लड़का देखना है।"
"लेकिन ऐन टाइम मांगोगे तो हम कहां से लाएंगे पैसे? देखता हूं, साहब से मांगता हूं। ऐसे छह शोरूम है उनके पास। बात करके तुम्हें बता दूँगा। रात को तुम्हारे घर आता हूं और बताओ, चाय पानी पी लो?"
"ना भैया, शाम का समय है। सब्जी लेकर घर जाना है।"
"और बताओ ललिया ठीक है?"
"हां, बिल्कुल ठीक है।"
"कैसा चल रहा है उसका योगा क्लास?"
"बढ़िया चल रहा है सुबह पांच बजे जाती है ,पूरा पांच हजार कमाती है।" चौबे जी ने बड़े गर्व से कहा।
"तो लड़का देखने में कोई परेशानी नहीं होगी। ट्रेनिंग ले रखी है तुम्हारी लड़की ने तो, योगा क्लास की।" राजेश ने कहा।
"सो तो है, सर्वगुण संपन्न है हमारी लाली।" कैबिन से बाहर निकले ही थे , एक जगह नज़र टिकी गई। नजर हटने का नाम ही नहीं ले रही, इतनी सुंदर मूर्ति लड्डू गोपाल की? चौबे जी अपलक देख रहे थे, जैसे अभी बात करने लगेगी। तभी राकेश ने ध्यान भंग करते हुए कहा ," बड़े साहब ने आर्डर पर बनवाई है। बाहर से बनकर आई है, ऐसी तीन बनवाई है।"
"दुर्लभ दर्शन है कितनी सजीव मूर्ति है जो इनका भजन करना भी ना चाहे, वो भी करने लगे।" चौबे जी ने भाव विभोर होकर जवाब दिया।
रास्ते भर मूर्ति की छवि उनकी नजरों से ओझल नहीं हो पाई। काश! वो मूर्ति उनके पास होती। भूल नहीं पा रहे हैं प्रभु के चेहरे को, पता नहीं क्या-क्या सोच लिए? अगर उनके पास होती कैसे निहलाते, क्या क्या खिलाते, कब सुलाते, कब उठाते, घर कब आया पता ही ना चला लेकिन घर के सामने इतनी भीड़ क्यों है? गाड़ी तो काफी महंगी लग रही है? अपने घर के दरवाजे में घुसने ही वाले थे कि थैला हाथ से छीनकर निर्मला ने मुस्कुराकर उनका स्वागत किया। ऐसे तो निर्मला कभी नहीं मुस्कुराती? कौन आया है? अंदर सूट बूट में एक आदमी बैठा है। चौबे जी को देखते ही वो हाथ जोड़कर खड़ा हो गया।" राधे राधे " कहकर हाथ के इशारे से चौबे जी ने कहा "बैठिए, क्षमा कीजिए मैंने आपको पहचाना नहीं।"
"अरे! आप कैसे पहचानेंगे? हम पहली बार मिल रहे हैं।" उसने बड़ी शालीनता के साथ जवाब दिया "आपसे काम है?"
"जी कहिए , मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? मुझ गरीब से आपको क्या काम है?"
"अरे! ऐसा न कहें, आप गरीब हैं, सबसे बड़ी दौलत है आपके पास, दरअसल मैं आपसे आपका कुछ मांगने आया हूं।"
" सीधा-सीधा बताइए।' चौबे जी सोच में पडे थे, जाने क्या मांग ले? आजतक कभी किसी को मना नहीं कर पाए हैं। इतने बड़े आदमी को मुझसे क्या चाहिए?
"आज से लगभग एक महीना पहले मैं मॉर्निंग वॉक के लिए गया था। मैं हमेशा ही मॉर्निंग वॉक पर जाता हूं। साढ़े पांच बजे तक मैं अपने घर वापस आ जाता हूं। उस समय ज्यादा भीड़ भी नहीं होती। कोई सड़क पर दिखता ही नहीं, लेकिन उस दिन मेरे साथ एक दुर्घटना हुई। मुझे हार्टअटैक आ गया। आसपास कोई नहीं था, मदद के लिए, ना मैं कुछ बोल पा रहा था, ना कुछ कह पा रहा था। तभी एक लड़की स्कूटी पर आती दिखी। मुझे सड़क पर पड़े हुए देखकर उसने अपनी स्कूटी रोकी। अकेली वो मुझे उठा नहीं सकती थी। फिर अपनी स्कूटी से दूर की दुकान पर जाकर एक आदमी को बुलाकर लाई। उसकी मदद से उसने मुझे अपनी स्कूटी पर बिठाया और मुझे हॉस्पिटल लेकर गई अगर थोड़ी सी भी देर हो जाती शायद मेरा अन्त निश्चित था और वो लड़की को और नहीं, आपकी बेटी थी।"
उस आदमी ने हाथ जोड़ते हुए कहा ,"अगर हो सके, अगर आप इस लायक समझें, तो मैं अपने बेटे के लिए आपकी बेटी का हाथ मांगता हूं जो अनजान की मदद कर सकती है, वो अपने परिवार का कितना ध्यान रखेगी ।"
चौबे जी एक दम जड़ हो गए, विश्वास नहीं कर पा रहे थे क्या यह सच में ये हो रहा है ? ईश्वर ने सच में ऐसा चमत्कार किया है कि मुझे किसी के दरवाजे पर ना जाना पड़े? इस स्थिति से बाहर नहीं निकले थे कि तभी उन्होंने अपने पास रखे हुए बैग में से, एक बड़ा सा बक्सा निकाला, इसमें वही मूर्ति थी, जिसे अभी शोरूम में देखकर आए थे, जो आँखो के सामने से ओझल नहीं हो रही थी, जिसे देखते ही मन में ये ख्याल आया था कि मेरे मंदिर में होती। उसने प्रमाणित दिया मुझे उसका जितना ख्याल है, उसे मेरा मुझसे ज्यादा है।
