शिक्षा

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कुमुद के निडर और साहसी होने पर, प्रफुल्ल को हमेशा ही गर्व रहा है, लेकिन कल स्कूल से आए एक फोन से थोडा चिंतित है ,"आप एमिडीएटली स्कूल आइए। प्रिंसिपल आपसे मिलना चाहती हैं, उन्हें कुमुद को लेकर कुछ बात करनी है।"

प्रफुल्ल ने बहुत प्यार से गोद बिठाकर कुमुद से पूछा," बेटा, मैम! ने कुछ बोला। क्या आपने कोई गलती की?"

"नहीं तो पापा! मैंने तो कुछ भी नहीं किया।" आठ साल की कुमुद ने मासूमियत के साथ, प्रफुल्ल के सवाल का जवाब दिया।

प्रिंसिपल के कमरे तक पहुँच प्रफुल्ल आने की अनुमति माँगी ,"मे आई कमिन मैम।"

आइए! "मिस्टर प्रफुल्ल।"

"गुड मॉर्निंग" मैम।"

"गुड मॉर्निंग। आप नहीं जानते होंगे। हमने आपको यहाँ क्यों बुलाया है? एक्चुली, मैं आपको बताना चाहती हूँ, कि कुमुद कितनी ब्रेव है। वी आर प्राउड ओफ हर।"

 "मैम" मैं कुछ समझा नहीं।"


" अभी 3 दिन पहले कुमुद के सेक्शन का लड़का "आदेश" होस्पीटलाइज हो गया लेकिन उसका रीजन समझ नहीं आ रहा था। स्कूल से जाने के बाद, अचानक उसे चक्कर आए और वो गिर गया। हम जान नहीं पा रहे थे, इसमें हमारी कोई ग़लती है। ऊपर से इतना प्रेशर था, हमें ये पता लगाना था, स्कूल में कुछ तो नहीं हुआ। बहुत कोशिशों के बाद जब कुछ पता नहीं लगा पाए, तो हमने काउन्सलिग की। किसी भी बच्चे ने सच नहीं कहा, सिर्फ कुमुद ने बताया, कैसे? राघव सर ने, मैथस के एक क्वेश्चन का आंसर ना आने पर। आदर्श को 3 दिन तक क्लास में मुर्गा बना कर रखा। आदर्श के बीमार हो जाने पर, सारे बच्चों को उन्होंने ये धमकी दी ,"अगर, ये बात किसी ने, किसी को बताई, तो उन से बुरा कोई नहीं होगा कि मैंने आदर्श को मुर्गा बनाया था।" 

"शी इज सच अ ब्रेव गर्ल। मुझे हैरानी इस बात की है, कि 45 बच्चों की क्लास में एक भी बच्चा ऐसा नहीं था, जो सच बोलने की हिम्मत कर पाता। अच्छी शिक्षा के साथ-साथ, अच्छी परवरिश भी जरूरी होती है। एक अच्छे व्यक्तित्व के निर्माण के लिए। उसमें आप कामयाब है। आशा करती हूँ और निश्चित ऐसा होगा, आगे भी हमेशा निर्भीकता के साथ वो सच का साथ देगी।"


कुमुद आज फिर एक बार सीना चौड़ा होने का कारण बनी थी, प्रफुल्ल के लिए। रात को सोते समय प्रफुल्ल ने अपने पास लिटा कर बड़े प्यार से पूछा," बेटा जब सब सच नहीं बोल पा रहे थे, कि सच क्या है? आपको डर नहीं लगा।"

 कुमुद ने अपने सर पर हाथ मारा," पापा "आप भी कितने बुद्धू हो, आपको पता नहीं है, जब मैंने वो डरावना सपना देखा था। आपने मुझे उस दिन बताया था।"

क्या बताया था?

अब मैं नहीं बताऊंगी। आप खुद याद करिए। आपकी मेमोरी बिल्कुल भी अच्छी नहीं है।


चारों तरफ काले साए हैं। एक साया, जो हाथ पकड़ कर खींच लेना चाहता है, अपनी तरफ, कुमुद जाना नहीं चाहती। ज़िद करती है, "नहीं" उसे नहीं जाना है। वो अपनी पूरी ताकत के साथ अपना हाथ हटा लेना चाहती है। वो भाग रही है, घने जंगलों में कहीं और अचानक एक शेर दहाड़ते हुए सामने से आता है। शेर की आँखों में आँखें डाले "कुमुद" देख रही है, लेकिन उसकी आँखों में डर नहीं है। साए कहीं गुम हो गए हैं। उसी अंधेरे में। शेर अपनी दबी हुई चाल के साथ, कुमुद के और पास आता जा रहा है लेकिन वो हिलने का नाम नहीं ले रही। पास आता हुआ शेर, उसके पास से होकर निकल जाता है। अब चारों तरफ उजाला है। दूर खड़े हुए सायों को वो स्पष्ट देख सकती है। शेर के जाने के बाद, एक परछाईं से, फिर सामना होता है। इस बार एक चीख के साथ आँख खुल जाती है। कुमुद पसीने से तरबतर है। कुमुद माँ को उठाकर अपना सपना सुनाना चाहती है," माँ, माँ उठो ना! मुझे डर लग रहा है।"

माँ बहुत गहरी नींद में सोई है लेकिन लेकिन प्रफुल्ल की नींद खुल गई, कुमुद की एक आवाज़ से," क्या हुआ बेटा ?"

"पापा! मैंने अभी, बहुत डरावना सपना देखा।"

"क्या देखा ?मेरी बिटिया ने।"

"भूत!..... भूत देखा।"

अरे! बाप रे, कैसा होता?

"काला। मैंने उसका चेहरा नहीं देखा। और पता है?" पापा" उसके बाद मेरे सपने में एक शेर आया।"

फिर तो, मेरी बेटी डर गई होगी।

"नहीं पापा! मैं डरी नहीं थी। वो मेरी हेल्प करने के लिए आया था।"

"अच्छा।"

"हाँ, उसको देखकर सब भाग गए।"

"आप तो बड़ी बहादुर हो। आप शेर से भी नहीं डरे।"

लेकिन पापा मुझे भूत से डर लग रहा था। पापा, एक बात बताइए। जब शेर आया तो भूत क्यों भाग गए?

"क्योंकि, बेटा! बुराई कितनी भी मजबूत हो। तुम्हें कितनी भी शक्ति से अपनी तरफ खींचे लेकिन अच्छाई से हमेशा डरती है। शेर सच्चाई और अच्छाई का प्रतीक था। जिसके सामने तुम्हारे भूत भी नहीं टिक सके। और तुम मेरी सबसे प्यारी और सबसे बहादुर, हमेशा सच्चाई के लिए लड़ने वाली गुड़िया रानी हो ना? तो तुम कैसे डरती शेर से। क्योंकि तुम तो हमेशा सच बोलती हो और किसी से नहीं डरती हो।"


प्रफुल्ल अपनी प्यारी बेटी से एक-दो प्यारी-प्यारी बातें और सुनना चाहता है, लेकिन वो अपने पापा के गले लग कर गहरी नींद में सो चुकी है। और वो सोच रहा है, बच्चे हर बात को कितना गंभीर लेते हैं। अपने लेवल के अनुसार उन्हें समझने की कोशिश भी करते हैं। उसके लिए ये भी जरूरी है कि हम उन्हें समझाते रहें।



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