STORYMIRROR

Swati Gautam

Inspirational

4  

Swati Gautam

Inspirational

दीपावली

दीपावली

5 mins
522

चाक अपनी गति से घूम रहा है। बाबू जी के हाथ चाक के साथ ऐसे घूमते हैं कि हर निराकार को, आकार दे देते हैं। गुड्डी बहुत गौर से अपने पिता के हाथों को देखती है, कैसे मट्टी से बाबू जी दिया बना देते हैं। सारी दियों को आँगन में सुखाने की जिम्मेदारी उसी की है। गाँव में तो दो के चार ही बिकेंगे लेकिन शहर में अच्छा मोल मिलता है। पाँच के दो। बडा दिया तो अधिकतर लोग खरीदते ही हैं। नई नई डिजाइन के बडे दिये उतारने के बाद, रंगे जाते हैं जिससे दिए आकर्षक लगें। उसपर थोड़ा सा रंग लगा और आकर्षक बना देती है गुड्डी की अम्मा। इस बार सोच लिया है बाबू ने की सुबह ही निकल जाएंगे, शहर के लिए। 50 किलोमीटर ही तो है।

दो बोरिया में दिए भरकर शहर की तरफ रूख किया पूरे परिवार ने। गुड्डी के लिए तो मेला सा ही है।अम्मा, बापूजी के साथ। हाँ और देखने के लिए रंग बिरंगी चीजें। लखन थोड़ा सा शैतान है। दोनों भाई बहनों की एक मिनट नहीं बनती। लखन बहुत ही चतुर है। मजाल है, जो कोई एक चीज भी फालतू ले पाए उससे। हिसाब किताब का बड़ा पक्का है। एक बार को अम्मा पैसे गिनने में गलती कर सकती है लेकिन लखन नहीं।पैसिंजर की बोगी किसी एरोप्लेन से कम नहीं लगती, लखन और गुड्डी को। ट्रेन में बैठने का भी कमी ही मौका मिलता है। दोनों अगर कुछ भी शैतानी करते हैं तो अपनी साड़ी के पल्लू को संभालकर सलोचना आँखें दिखा देती है," आराम से बैठो।" लेकिन आँखो आँखो में शैतानियाँ और एक दूसरे को पैर मारने का सिलसिला बंद नहीं होता।

दिल्ली भी आ गया इतना बड़ा शहर है कोई जगह तो चुननी पड़ेगी। कहाँ दिए बेचने हैं? बड़ी-बड़ी कोठियों वाली कॉलोनी में तो नहीं जाना। वहाँ तो कोई झाँकता तक नहीं है घर से बाहर। पिछले साल का अनुभव है सारे दिये वापस लाने पडे। समय खराब हुआ वो अलग।

बोरी में से निकालकर दियों को दो टोकरों में सजाया। कॉलोनी के बाहर खड़े होकर निश्चित किया कि दो गलियों में एक साथ चक्कर लगाएंगे। एक गली में गुड्डी की अम्मा लखन के साथ जाएगी। दूसरी में बाबा गुड्डी के साथ जाएंगे। चक्कर लगाने के बाद दोनों यही मिलेंगे।दिये से लेकर सोने के हार तक सबको बेचने के लिए कला चाहिए। कोई यूँ ही तो दो रूपये भी खर्च नहीं करता और ऐसा उनके दिये में क्या है ? जो बाहर बाजार में मिलने वाले दीयों में नहीं। हाँ बाजार तक जाने का आलस जरूर दीये खरीदने के लिए मजबूर कर सकता है। लगभग हर घर के सामने सुलोचना ने आवाज़ लगाई," दीए ले लो, दीए। माटी के दिए।"

कोई खास बिक्री हुई नहीं। इस साल भी पिछली बार की तरह आधे ही दीये ही बिक पाए। इतनी दूर आने का कोई फायदा भी नहीं हुआ और पूरा परिवार परेशान हुआ वो अलग। हर साल दिवाली यूँ ही निकल जाती है। त्योहार भी शायद अमीरों के लिए ही बने हैं। गरीबों के लिए तो त्योहार भी बोझ ही है। मनाने के लिए भी तो पैसा ही लगता है। 1 किलो मिठाई ₹200,250 से कम नहीं आती।

दुपहर बीती, साँझ हो चली। 4:00 बजे की पैसेंजर पकड़नी है। उससे पहले स्टेशन तो पहुँचना होगा। सुबह से कुछ खाया भी नहीं है, अम्मा ने अपनी रोटी की पोटली खोल दी। पूरे परिवार ने आम के अचार से पराठे खाए। मेहनत के बाद भूख बहुत लगती है। सामने सड़क पर रंग बिरंगी दुकानें हैं। दिवाली के उपलक्ष में, कई जगह सेल ही लगी है। खिलौने, कपड़े मिठाइयाँ सब चीजें दुकानों के बाहर तक लगी हैं तख्तों पर।

 जहाँ गुड्डी उस गुलाबी फ्रॉक को बड़े चाव से देख रही है, वहीं दूसरी तरफ लखन की नजर बंदूक वाले खिलौने पर है और सुलोचना की नजर दुकान पर रखी चद्दरों पर। अगर! इस दिवाली नई चद्दर, खाट पर दरी के ऊपर बिछाई जाती, तो दिवाली पर घर की रौनक ही अलग होती। बाबूजी सबकी आँखें पढ़ रहे हैं। काश! उनके सारे दीये बिक जाते वो अपने परिवार के सपनों को साकार कर, अपने सपने साकार कर लेते।

जो चीज ना मिले, उसे सपनों का नाम देना ही उचित होता है। चाहे! वो सो रुपए की फ्रॉक ही क्यों ना हो? हम उठ कर चल देते हैं, उनसे मुँह मोड़ कर लेकिन दिल में कहीं न कही उन्हें पूरा करने की इच्छा तो रह ही जाती है। 4:00 बजने में तो समय है, पर ! स्टेशन पर ही बैठ कर इंतजार कर लिया जाए तो बेहतर होगा। यहाँ बैठ दुकानों की तरफ देखकर तो जी ही ललचाता है।

 मन को पहले ही समझा चुके थे, अमीरों की कॉलोनी में तो जाना ही नहीं है। वहाँ कौन दिए खरीदता है? फिर, भी समय है तो एक चक्कर लगा लें इसमें क्या हर्ज है। गली के बाहर से चारों निकल ही रहे थे आवाज लगाते हुए कि पीछे से भागकर आते हुए चौकीदार ने कहा," साहब बुला रहे हैं।" कोठी के अंदर साहब अपनी कुर्सी पर बैठे हैं। मैम साहब का आवाज लगाते हुए साहब ने कहा," राखी! सुनो, इस बार इलेक्ट्रिक लाइट नहीं जलाएंगे। सारी कोठी पर दिये लगेंगे।"

" आप जैसा कहें।" राखी ने हाँ में हाँ मिलाते हुए उत्तर दिया। साहब ने बाबूजी की तरफ इशारा करते हुए पूछा," कितने के दिए ?"

" साहब !5 के 2"

" कितने हैं ? गिनो।"

 लगातार गिनते हुए 200 दिए 5 मिनट में गिन डाले। "₹500 साहब।" बडे दियों की तरफ इशारा करते हुए साहब ने कहा," इन्हें क्या घर लेकर जाओगे ?"

" नहीं, साहब !ये भी बेचने ही है।"

 "कितने के ? "

"एक साहब 10 का है 20 दिये हैं " 

 साहब ने पर्स में से ₹700 निकालकर बापूजी के हाथ में पकड़ा दिए।

 पकड़ते हुए पूरे परिवार की आँखों में दिवाली चमक रही है। गुड्डी गुलाबी फ्रॉक पहन कर नाच रही है। लखन बंदूक चलाकर दोस्तों में अपनी शान दिखा रहा है और आँगन में खाट पर बिछी हुई नई चद्दर घर की शान बढ़ा रही है।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Inspirational