चार घंटे

चार घंटे

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वो सबसे अलग दिखती थी। बिल्कुल! अलग उसकी सादगी जैसे उसकी पहचान थी। पिंक टीशर्ट और ब्लू कलर की जींस। पैरों में चमड़े की जूती। छोटी सी पोनी टेल। खिलखिलाती हुई बेपरवाह हँसी। उसको ऐसे ही बस दूर से कभी कभी देखता था। पार्क में बच्चों से साथ खेलते, ऑफ़िस से आते टाइम। धीरे-धीरे उसे रोज देखने की इच्छा बढ़ती चली जा रही थी। हमारी बिल्डिंग में ही रहती थी शायद। एक दो बार लिफ्ट में मिली थी। ऐसा क्या था उसके अंदर ? कुछ भी तो खास नहीं थी।

आज वीकेन्ड में मैं सबकुछ भूल जाना चाहता हूँ। ऑल टाइम फेवरेट शेक्सपियर की ये बुक आज खत्म कर दूँगा। हल्की धूप अच्छी है, बिल्डिंग की छत पर। छत पर सभी का आना अलाउड नहीं है, क्योंकि टॉप फ्लोर जिसका होता है, छत भी उसी की होती है। पर शर्मा आंटी कभी मुझे मना नहीं करतीं। बेटे जैसा प्यार करती हैं। यहाँ बैठना मुझे पसंद है। किताब खोलकर पहला ही पन्ना पढ़ा था कि वो जाने कहाँ से आ गई। वहीं पिंक टीशर्ट, ब्लू जींस। पूछना चाहता था ," हमेशा यही पहनती हो?" उससे पहले ही उसने पूछ लिया," क्या मैं बैठ सकती हूँ ?" शिट ये भी कोई पूछने की बात है। तुम कहो तो मैं खड़ा हो जाता हूँ," बैठ जाओ।" 

"आज, मूड ऑफ है यार।"

 यार! मैं तुम्हारा यार कब से हो गया ? हम तो पहली बार मिले हैं। क्या तुम पहली बार मिलने पर ही किसी को यार बोल देती हो ? क्या हम दोस्त हैं।" क्यों क्या हुआ ?" ये तो मुझे पूछना ही था, क्योंकि, पूछने के लिए ही बताया गया था।

"आज शॉपिंग करने जाना था और ऑटो स्ट्राइक सब प्लान कैंसिल हो गया।"

तुम यहाँ मेरा टाइम खराब करने आई हो। हाँ मुझे तुम्हारा साथ अच्छा लगता है। मैं छुप-छुपकर तुम्हें देखता हूँ, लेकिन! ये गलत बात है, मेरा आज का टारगेट पूरा नहीं हो पाएगा। पहला तो मुझे शेक्सपियर को पढ़ना है, दूसरा मुझे तुमसे दूर रहना है।

"अच्छा, बताओ !तुम्हारे पास गाड़ी है ना। तुम चलो न मेरे साथ।"

 पागल लड़की हो क्या तुम? ऐसे ही किसी अनजान की साथ चली जाओगी क्या ?

 "बताओ चलोगे ?" मैंने इधर उधर नजर दौडाई और किताब को हाथ में लेकर कहा," मुझे आज ही खत्म करनी है।"

"किताब ही तो है, कल खत्म कर लेना प्लीज! चलो ना।" प्लीज ना कहो, इसके लिए मैं छत से छलाँग लगा सकता हूँ। बिना किसी जान-पहचान के तुम इतना हक कैसे जता सकती हो।


"बहुत इंपॉर्टेंट है, वेट नहीं कर सकते स्ट्राइक के खुलने का। सारा शेड्यूल बिगड जाएगा।" अगले 10 मिनट बाद, मैं गाड़ी पार्किंग से निकालकर उसका वेट कर रहा था। वाओ का रिक्शन देने का दिल हुआ, वो सामने से आ रही थी। रेड कलर के सूट में क्लासी लगती थी। मैं कहना चाहता था कि आज तक कोई बराबर वाली सीट पर बैठी नहीं है। ट्रैफिक और बाहर तेज धूप, सामने गाड़ी चलाने वाला अनट्रेंड ड्राइवर आज किसी पर भी गुस्सा नहीं आया था। जैसे उसने मुझे सम्मोहित का दिया हो। पहुँच गए उसके साथ मॉल। सारे दोस्त जिनकी शादी हो चुकी है। क्यों कहते हैं, शॉपिंग बोरिंग काम है। हालांकि अपने लिए भी कभी इस शिद्दत से शॉपिंग नहीं की थी, ये मुझे बोरिंग ही लगाता था। हर कपड़े को अपने ऊपर लगाकर पूछना," कैसा लग रहा है।" क्या कहता कि तुम्हारे ऊपर हर चीज सूट करती है लेकिन कैसे बोल सकता हूँ पहली मुलाकात में ही।


ऑलमोस्ट आधी दुकान ख़रीद कर कंफ्यूज सी मेरे मेरे साथ लौटी। तब भी शायद बहुत कुछ रह गया था, जो नहीं ख़रीदा था। इन दी एंड उसने मुझे ऐसे घूर कर देखा, जैसे मैं उसे अपने साथ ज़बरदस्ती शॉपिंग के लिए लाया हूँ। लौटते हुए पता चला शायद वो मेरे किसी ऊपरवाले फ्लोर पर रहती है। अपने बैग मेरे हाथ से लेते हुए, थोड़ी सी मुस्कुराई और बोली," अच्छा! तुम यहाँ रहते हो?"

किसी गधे की तरह मैंने अपना दरवाज़ा खोला और अपने फ्लैट में एंट्री ली। अजीब लड़की है। पूरा दिन खराब कर दिया। नाम तक नहीं बताया। मैंने ही कौन सा पूछा। कॉफी बना लेता हूँ। शायद थकान थोड़ी मिट जाए। शेक्सपियर मुझे टेबल से घूर रहा था," मेरा क्या? एक दिन तो खराब कर दिया तुमने।" खराब नहीं किया, यार ! अच्छी लड़की है। अपनी फेवरेट कॉफी हल्की सी चीनी, कम दूध और रॉकिंग चेयर। पूरे दिन खराब होने पर, गुस्सा आ जाना चाहिए था, पर नहीं आया। ये फ्लैट इसमें कितना सुकून है। कोई शोर शराबा नहीं। सब कुछ मेरी पसंद का। मेरी पसंद की कॉफ़ी, मेरी पसंद की रॉकिंग चेयर, मेरी पसंद का शेक्सपीयर। क्यों आज खाली खाली लगता है। जब तक कोई आए ना लाइफ में तब तक ऐसा क्यों लगता है, खालीपन नहीं है। जब आने के बाद जाए तब पता चलता है कि कुछ तो था जो खाली था। शादी ना करने का मूड बना चुका मैं, अचानक! क्यों चाहता हूँ, किसी से लेट आने पर झगड़ा हो, कोई गीला तौलिया बैड पर रखने से चलाए, कोई लेट हो जाने पर फोन कर करके इतना परेशान कर दे कि फोन को तोड़ने का दिल करे, जरा सी लगने पर, प्यार जताने की वजह कोई डाँटे इतने बड़े हो गए अपना ध्यान नहीं रख सकते, मैं कब तक ध्यान दूँगी? कॉफी हाथ में है, लेकिन कोई साथ कॉफी पीने वाला भी चाहिए।


 शाम के 6:00 बजे। कौन होगा दरवाज़े पर ? काश वो हो। कुछ और माँग लेता तो अच्छा होता," तुम ?"

" हाँ, क्यों ? किसी और के बारे में सोच रहे थे ?"

" नहीं, नहीं। सॉरी तुम्हारा नाम नहीं जानता ना।"

 "दिव्या, माय नेम इस दिव्या।" उसे हाथ बढाया।

"आदेश ।"

"हाय! आदेश, बिना बोले ही वो अंदर आ गई," कॉफी तुमने बनाई?"

"हाँ, मैंने बनाई।"

"सब कुछ बना लेते हो।"

"हाँ।" अकेला रहूँगा तो बनाना पड़ेगा ना।

"जिससे तुम्हारी शादी होगी उसकी लॉटरी लग जाएगी।"

"लेकिन! मैं शादी नहीं करना चाहता।"

"क्यों, शादी जरुर करनी चाहिए।"

"क्यों ?"

"जब तक करोगे नहीं,  तुम्हें पता कैसे चलेगा बीवी कितना परेशान करती हैं।" आँख मारते हुए दिव्या ने कहा। मैं बस थोड़ा सा मुस्कराया। तुम हाँ करो, तो हम कल ही कर लें।

"अकेले रहते हो ?"

"नहीं एक रूम पार्टनर और रहता है। उसकी मीटिंग है। तो वो कलकत्ता गया हुआ है, सुबह आएगा।"

"ओके, मैं इसलिए आई थी, मुझे तुम्हें थैंक्स बोलना था।"

"नहीं, उसकी जरुरत नहीं है।"


"तुम्हारा इतना टाइम खराब किया। दरअसल मेरे लिए थोड़ा इंपॉर्टेंट था। परसों मेरी इंगेजमेंट है और एक महीने बाद शादी। परसों के लिए शॉपिंग ज़रुरी थी।" इसके बाद मैंने कुछ सुनकर भी नहीं सुना। जाओ यार! मैं धक्के मारकर भगा देना चाहता था। 4 घंटे में शिद्दत वाला प्यार हो जाता है क्या ? उसने बहुत कुछ बताया, वो कौन से फ्लोर पर रहती है ? उसके पापा क्या करते हैं? उसका मंगेतर क्या करता है? 

पूरी रात आँखों में गुजारने के बाद सुबह आँख नहीं खुली। दरवाज़े तक जाने का दिल नहीं था। राहुल दरवाज़ा खोलते ही बरस पड़ा," सुनाई नहीं देता क्या ? कब से दरवाज़े पर खड़ा हूँ। क्या हाल बना रखा है?"

"आँख लग गई थी। रात भर शेक्सपियर को पढ़ता रहा।"

 "चेहरे से तो लग रहा है, प्रेमिका की शादी होने वाली है।"

"तुझे तो पता है, जिसे शादी नहीं करनी उसकी प्रेमिका कैसे हो सकती है ?"



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