Swati Gautam

Inspirational

1.9  

Swati Gautam

Inspirational

एक झूठ

एक झूठ

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आदेश ने ऋषभ के पैर छुए,"नमस्ते अंकल।" ऋषभ आदेश को पार्क में देखकर हैरान था, " अरे ! बेटा तुम यहां ?"

" मुझे आपसे कुछ बात करनी थी।"

 "अगर बात करनी है, तो घर चलते हैं; घर बैठ कर बात करते हैं।"

" नहीं अंकल मैं घर नहीं जाऊंगा।"

" क्यों क्या हुआ ?"

" अंकल काव्या मुझसे नाराज है,समझ नहीं पा रहा हूं एक छोटी सी बात के लिए वो मुझसे इतना नाराज हो गई कि बात तक नहीं कर रही, मुझसे मिलना तक नहीं चाहती। सब कुछ खत्म कर देना चाहती है।"

"ऐसी क्या बात हो गई ?अभी तो काव्या ने मनाया था मुझे, तुम दोनों पसंद करते हो एकदूसरे को शादी करना चाहते हो। अगर ! मैंने परमिशन दी तो उसकी वजह से।"

" मैंने गलती तो की, लेकिन इतनी बड़ी नहीं कि कि उसकी इतनी बड़ी सजा उसने मुझे सुना दी। उसकी माफी भी मांग चुका हूं आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा।अचानक माॅल के बाहर मेरा,मम्मी और काव्या का सामना हो गया। मैंने मम्मी से कहा कि काव्या मेरी फ्रेंड है। उसकी और मेरी बात में पापा से कर चुका हूं उन्हें कोई एतराज भी नहीं है हमारी शादी से लेकिन मम्मी को मनाने में थोड़ा समय लगेगा वो कास्ट सिस्टम को थोड़ा मानती हैं और अचानक से मुझे कुछ सूझा भी नहीं अगर मैं सच बोलता तो शायद बात बिगड़ जाती वो ये कहकर सब कुछ खत्म कर देना चाहती है," झूठ पर रिश्तों की बुनियाद नहीं रखी जाती। तुम्हें सच बोलना चाहिए था।"

 ऋषभ गंभीर भाव से मुस्कुराया," उसका एक कारण है। वो तुम्हें दूसरा ऋषभ बनते हुए नहीं देखना चाहती। आज से बाइस साल पहले की एक घटना, जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।"

सुनैना को अपनी मौसी के घर जाना था ,"मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है, दस दिन के लिए तुम्हें आज तक छोड़कर नहीं गई कभी ? "

" कोई बात नहीं सुनैना, मैं सब कर लूँगा।मैं खुद को संभाल लूँगा।"

" तुम भी चलते तो ?"

" मैं कैसे चल सकता हूं ? ऑफिस इतने दिन की छुट्टी नहीं मिलती, कोई शादी ब्याह थोड़ी है ? मिलने ही तो जा रही हो अपनी मौसी से, वैसे भी वो बीमार हैं मेरे जाने से परेशान होंगी, दामाद की आव भगत भी तो करनी पड़ती है" कहते हुए मैं थोड़ा मुस्कुरा दिया।और तुम तो जानती हो किसी और के घर में मैं घुलमिल नहीं पाता।"

" ठीक है !" सुनैना सोफे से उठकर रसोई की तरफ हाथ में कप लिए बढ गई।मैं एक पैर को दूसरे पैर पर रखकर सोच रहा हूं, सुनैना कितनी बदल गई है ? पहले वो बहुत सुंदर नहीं दिखती थी, लेकिन इतनी ख़राब भी नहीं दिखती थी; खराब क्या; उसने सजना, सवरना बनना सब छोड़ दिया है। उसकी पतली नाजुक सी कमर पर छोटा सा तिल अब आकर्षक नहीं लगता, भरी-भरी सी हो गई है। साड़ी का पल्लू बेवजह लुढकता है, उसे कोई होश नहीं रहता। अभी शादी को इतने दिन भी नहीं हुए, महज पाँच सालों में उसकी रुपरेखा कितनी बदल गई।सुनैना से मेरी शादी, मेरे साथ पिता जी की जबरदस्ती ही थी, कहां मैं हमेशा हॉस्टल में पढ़ने वाला लड़का, मुंबई की दुनिया देखी थी मैंने, वहां की लड़कियां ! किसी खूबसूरत परी के सपने, मैंने भी अपने लिए सजाए थे। मुझे नहीं पता था मेरा भविष्य सुनैना के साथ लिखा जाएगा; पर अब मैं उससे बहुत प्यार करता हूं।वो एक आदर्श पत्नी है। पति का हमेशा ध्यान रखने वाली,उसकी हर छोटी मोटी चीजों को संभालकर रखने वाली, सोते हुए जगा दो, कभी गुस्सा नहीं करती। हमेशा नाहने से पहले टॉवल हाथ में देने वाली, काव्या को जान से ज्यादा चाहने वाली।

"अभी यहीं बैठे हो ? सुबह जल्दी उठना है, मुझे स्टेशन छोड आओगे क्या ?"

" हां, क्यों नहीं छोड़कर आऊंगा ?"

" पूछ रही हूं, ऑफिस के लिए देर तो नहीं हो जाएगी ?"

" क्या हुआ थोड़ी लेट चला जाऊंगा। तुम काव्या के साथ कैसे जाओगी अकेले ?"

" ठीक है मैं उठा दूंगी सुबह जल्दी, पर उठ जाना, कहीं मुझे भी लेट करा दो।"

" ठीक है मैमसाब; आप इतना गुस्सा क्यों करती हैं ? " मैंने छेड़ते हुए उसके गाल खींच लिए। जब आँख खुली सुनैना मुझे हिला हिलाकर उठा रही थी, वो और काव्या पहले से ही तैयार थे। बस में ही था जो अब तक सोया था। उसने मुझे नहीं उठाया, उसे भी पता है कि सुबह की नींद मुझे कितनी प्यारी है ? मैं ऑफिस जाने से एक घंटा पहले ही उठना पसंद करता हूं, तो आज उसने डेढ घंटे पहले उठा दिया, उसे कोई बात समझाने की जरुरत नहीं पड़ती, सब कुछ खुद ही समझती है। चाहे ! उसे स्टेशन पर गाड़ी के इंतजार में बैठना पड़े लेकिन उसे पता है कि मुझे ऑफिस लेट जाना पसंद नहीं। इन बातों के लिए मैं कभी उसका कृतज्ञ नहीं होता, होना भी नहीं चाहिए, वो पत्नी है मेरी। आज थोड़ी बनी संवरी सी लगती है, गहरा रंग उसके ऊपर जचता भी है, रानी कलर की साडी और उस पर अगर वो काले रंग की बिंदी लगाए, तो उसकी सादगी और उभरकर आती है।हालांकि बिंदी उसने सिर्फ लगाने के लिए लगाई है, मुझे रिझाने के लिए नहीं, कहीं स्टेशन पर मिलने वाली मौसी की बहू उसे देखकर ये ना कह दें," दीदी बिंदी तक नहीं लगाई ?" मुझे उसकी बिंदी पर ही प्यार आ रहा है, मैं उसे आलिंगनबद्ध करके चूम लेना चाहता हूं पर उसका ध्यान इस तरफ नहीं है। मैंने उसका हाथ पकड़ा भी लेकिन उसने घूरकर मुझे देखा, मुझे इतनी जल्दी है तुम्हें ये सब सूझ रहा है और बोली," देर हो जाएगी, जल्दी तैयार हो जाओ।"

 स्टेशन पर पहुंचते ही गाड़ी मिल गई, ज्यादा देर नहीं लगी। मैंने काव्या के साथ सुनैना को बिठाया। काव्या को प्यार किया। मैं बोगी से उतरकर खिड़की पर आया और सुनैना से कहने के लिए कहा," काव्या का ध्यान रखना।" उसने सहजता से गर्दन हिला दी, उसकी यही सादगी मुझे बेहद पसंद है, जबकि वो ये जानती है, मेरे ना कहने पर भी ऐसा तो नहीं होगा कि वो उसका ध्यान ना रखे। स्टेशन से सीधा में ऑफिस निकल गया; ऑफिस से आकर सूना घर थोड़ा अखरा जरूर पर बहुत दिनों बाद आज अकेले रहने का मौका मिला है। ऐसे में मुझे सुमित की बहुत याद आई, काश ! वो मेरठ ना गया होता तो पहले की तरह आज भी साथ में पुरानी यादें, जगजीत सिंह के साथ ताजा करते, वो नहीं है तो खुद ही कुछ ग़ज़लें सुननी चाहिएं, पर अकेले में वो मजा नहीं, मैं जल्दी बोर हो गया। सुनैना को मैं दिन में चार फोन कर लेता हूं। ऑफिस में होता हूं तो दिमाग में भी यही चलता है, वो घर पर नहीं है। वो भी मेरे पूरे दिन फोन पर रहने से परेशान सी हो जाती है।

 आज पांचवा दिन है, मैं बाजार में कुछ ऐसा खरीदना चाहता हूं जो कि जल्दी बन जाए, तभी एक लड़की से मेरी टक्कर होती है, लड़की नीचे झुककर सामान उठाने व्यस्त है। मैं चेहरा देख नहीं पाया, बाल खुले हैं। जैसे ही वो उठी,"ओह, कामिनी ?"

 " ऋषभ, कैसे हो ?"

 " चलो ! बड़े लोगों ने मुझे पहचाना तो सही ? तुम दिल्ली में कैसे ? मुंबई से यहां कब आईं ?"

"हां, यहां हूं कुछ दिन के लिए और तुम ?"

" बस मैं भी यहीं हूं।"

" आज भी एसे ही दिखते हो ।" मैं हल्का सा शरमा गया, ऐसी लड़की से तारीफ सुनकर जो कॉलेज की शान थी। आज सात साल बाद थी बिल्कुल ऐसी ही दिखती है जैसी पहले दिखती थी, मुझे तो लगता है कुछ ज्यादा अच्छी दिखती है। ऐसा कौन लड़का था, जो कॉलेज उससे बात नहीं करना चाहता था। वो जल्दी में थी उसने मेरे घर का फोन नंबर लिया बताया कि यही पास वाले होटल में रूकी है। यहां वो एक हफ्ते के लिए आई है नौकरी के सिलसिले में। मैंने भी मौका देखकर बोल ही दिया, क्या एक कॉफी पी सकते हैं साथ में, शाम को ?"

" बिल्कुल; शाम 6:00 बजे।" जगह निर्धारित कर हम अपने अपने रास्ते चल दिए।

मैं 6:00 बजे से कुछ पहले ही उसका इंतजार करता हुआ पहुंच गया था, खाली समय भी था कुछ करने के लिए था भी नहीं। वो जब सामने से आई काले रंग का सूट और काले की ही छोटी सी बिंदी लगाकर; कितना अंतर था उसकी बिंदी और सुनैना की बिंदी में, उसने वो बिंदी अच्छी देखने के लिए लगाई थी।करीने से कढे हुए बाल अगर एक उंगली बाल में डालो तो पूरी ऊँगली नीचे तक फिसल जाए; लेकिन सुनैना के बालों में उँगली डालो तो बीच में ही अटक जाती है,सुनैना के बाल इतने उलझे होते हैं। कामिनी की आंखों में मोटा मोटा काजल, उसकी आवाज़ में ही माधुर्य छुपा है, वो लोगों खींच लेती है अपने बोलने के तरीके से ही। उसको देख कर मैं खड़ा हो गया, उसने मेरे पेट में उंगली मारते हुए कहा," स्पोर्ट्स की जान, आज भी बिल्कुल फिट दिखते हो।" वो एसी बातें करती है जिनके ऊपर सुनैना ने कभी ध्यान ही नहीं दिया, कभी नहीं कहा, तुम्हें फिट रहना चाहिए वो तो बस मुझे अच्छा खिलाना चाहती है।मुझे कामिनी के साथ आज से सात साल पहले जैसा लगने लगा था। वो बार बार बात करते हुए अपनी उंगली कान के पीछे करती तो उसके हाथों पर मेरी नज़रें टिक जाती। मैंने उससे पूछा," शादी हो गई ?"

" कहां अभी शादी की उम्र कहां है ? अभी तो बहुत कुछ करना है मुझे लाइफ में और तुमने शादी कर ली क्या ? लगता तो नहीं, तुम इतनी जल्दी शादी करोगे ?" मैं बता देना चाहता था कि मैं शादीशुदा हूं। मेरी बहुत सुलझी हुई, प्यारी सी, अच्छी सी बीवी है।एक प्यारी सी गुडिया है, उन दोनों को मैं बहुत प्यार करता हूं। कॉफी रखते टाइम, वेटर की गलती की वजह से थोड़ी सी कॉफी मेरी शर्ट पर टपक गई। जिसपर मेरी तो नजर नहीं पड़ी लेकिन उसने उठकर, सामने से मेरी शर्ट को अपने हाथों से साफ किया। मैं उसके चेहरे को देख रहा था, कितनी अकेली है वो, क्या करेगी इतने पैसे का ? क्या पैसा ही सब कुछ है। शायद ! उसे किसी साथी की तलाश है जो उसका ध्यान रख सके। आखिर हर इनसान कभी न कभी अपने आपको अकेला महसूस करता ही है। जो लड़का घंटों उसके लिए खड़ा रह सकता था, आज वो उसे इतना महत्व दे रही है। कुछ तो कारण होगा,कुछ भी बेवजह नहीं होता।जरूरत से ज्यादा अपनापन ? हम तो अच्छे दोस्त भी नहीं थे, बस एक साथ पढते थे।हम ज्यादा समय रुके नहीं, कॉफी पीनी थी। बस अपनी जॉब के बारे में बातें करते हुए ही सारा समय निकल गया। मैं लौटते टाइम गाड़ी में बैठा सोच रहा था, मैंने क्यों नहीं बताया कि मैं शादीशुदा हूं ? इस बार मिलेगी तो जरुर बता दूंगा, मुझे बताना चाहिए था।

 दो दिन दो सालों से बीते थे, उसका काला सूट, उसकी आंखें, उसका मेरी शर्ट को साफ करना मैं भूल नहीं पा रहा था। तीसरे दिन उसका फोन आया उसने मुझे खाना पर लिए बुलाया था। जो मेरे दिमाग में चल रहा था, शायद वही सच था। वो मैं बिना देर किए पता करना चाहता था। मैंने अपनी चैक की शर्ट निकाली, जो तीन साल पुरानी थी। सभी कहा करते थे, मैं बहुत अच्छा दिखता हूँ उसमें।

फूलों का गुलदस्ता लिए, हां उसको रजनीगंधा पसंद हैं, कॉलेज टाइम से ही, रवि ने बताया था। ना चाहते हुए मैंने उसके लिए रजनीगंधा का गुलदस्ता बनावा, हमेशा की तरह आज भी समय से पहले ही मैंने उसकी डोर बेल बजा दी, उसने दरवाजा खोला, वो इतनी खूबसूरत कैसे हो सकती थी ? आज उसने साड़ी पहनी थी। इतनी खूबसूरत लड़की मैंने देखी नहीं थी या फिर मेरी आंखों में अब तक वो बात नहीं थी, इतनी खूबसूरती किसी के अंदर से निकाल लें।उसने हाथ पकडकर मुझे कमरे के अंदर खींचा,"टाइम से आ गए ?" जैसे उसे मेरा जाने कब से इंतजार हो। खाने का सामान देखकर मैंने कहा," इतना सब कुछ, मैं कैसे खाऊंगा ? उसने हंसते हुए कहा," तुम अकेले थोड़ी हो, मैं भी तो हूं। तुम्हें पता नहीं है, मैं कितनी बड़ी खद्दू हूँ।"वो जोर से हंसी। उसकी हंसी किसी मछली के जाल से कम नहीं थी, उसमें से शिकार कभी निकल नहीं सकता था। उस होटल के रूम से ज्यादा सुंदर जगह मैंने आज तक कभी देखी नहीं थी।वो सामने बैठी खाना खा रही थी और फिर वही कॉलेज की पुरानी बातें। मैं उसे चुप करके बोल देना चाहता था 'चुप करो' जो कहना चाहती हो वो कहो, कह दो कि तुम मुझे कॉलेज टाइम से ही पसंद करती हो लेकिन जब तुम कह नहीं पाईं। पसंद के बार में कभी भी किसीको कहा जा सकता है,इसमें कुछ गलत नहीं। काश ! तुमने पहले कहा होता, तो आज हम दोनों साथ होते। तुम हर किसी को तो यूं ही अपने होटल के रूम में बुलाकर खाना नहीं खिलाती हो ना ? उसकी उल्टी सीधी बातें खत्म ही नहीं हो रही थीं। कॉलेज, कॉलेज, कॉलेज ? कब 11:00 बज गए पता ही नहीं चला और उसने मुझे टोकते हुए कहा, तुम्हें सुबह ऑफिस जाना होगा और मुझे भी सुबह जल्दी निकलना है, मैं भी उठ गया।उसकी आंखों में कई सवाल थे जैसे कह रही हो, शुरुआत मैं ही करूं लेकिन मैं क्यों करूं ? कहना तो तुम चाहती हो। तुम ही मेरी लाइफ में ऐसे बिन बुलाए आई हो,मुझे किसीकी जरूरत नहीं, मैं अकेला नहीं। अकेली तो तुम हो, साथ की जरूरत तुम्हें है; फिर शुरुआत मैं क्यों करूं ? वैसे मैं बता दूं मैं शादीशुदा हूं, शायद तुम मुझे अनमैरिड समझ रही हो ?पर मैं अपनी बीवी से बहुत प्यार करता हूं।

 घर लौटकर नींद नहीं आई। ओह ! सुनैना कहां हो तुम ? तुम मुझे भूल गईं, कितने दिन हुए ? 12:00 बजे तो तुम सो भी गई होंगी। ये मुझे क्या हो रहा है ? जब भी सुनैना के बारे में सोचता हूं, मुझे कामिनी क्यों याद आती है ? क्या पाँच साल का रिश्ता, पाँच दिन पर भारी पड रहा है ? जो भी है मैं इस कशमकश में नहीं जी सकता। दिन निकलते ही मैं कामिनी के होटल जाकर उसे बता दूंगा कि मैं शादीशुदा हूं, अगर तुम मेरे बारे में कुछ सोचकर मुझसे मिल जुल रही हो, मेलजोल बढा रही हो, तो बता देना चाहता हूं, इसका कोई भविष्य नहीं है। मेरे जाने से पहले ही कामिनी का फोन आया, उसने मुझे तुरंत बुलाया था; ऐसा क्या काम आ गया ? मैं तैयार होकर होटल पहुंचा, तो वो अपने कमरे के बाहर खड़ी थी, बैरा उसका सामान नीचे ले जा रहा था। उसने कहा," अच्छा ! ऋषभ मैं जा रही हूं।"

" तुम तो परसों जाने वाली थीं ?"

" नहीं काम हो गया, इसलिए मैंने तुम्हें फोन करके बुलाया; पता नहीं लाइफ में फिर कभी मुलाकात होगी या नहीं। इतने पुराने क्लासमेट से एक बार मिलना चाहिए। तुमसे मिलकर अच्छा लगा।संपर्क में रहना " कहते हुए वो मेरे गले लग गई।मेरी सारी समस्या का समाधान हो गया था।अब सच बताने की कोई जरूरत ही नहीं थी मैं समझ नहीं पाया था क्यों मैं सच नहीं बता पाया," चलो तुम्हें स्टेशन छोड दूँ।"

"नही होटल वाले टैक्सी मँगा देंगे, तुम परेशान मत हो।"उसकी बात पर ध्यान ना देकर बैरा से समान मेरी गाडी में रखवाने को कहा।मेरे गेट खोलने पर वो आगे वाली सीट पर बैठ गई,"कही से एक खट्टी मीठी गोली का पैकिट ले लेना सफर में जी खराब हो जाता है।"मुझ जाने क्यों कुछ छूटता सा दिखता था, कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। मैं बहुत उदास था। हमारी कोई बात नही हो रही थी, वो खिडकी के बाहर देख रही थी। उसका दुपट्टा उडता हुआ कभी कभी आँखों के सामने आ जाता तो मुस्कुराते हुए समेट लेती।रेड लाइट पर मैं गाडी साइड में लगाकर उसके लिए बताइ गई गोली लेने लेने के लिए उतरा। मैं लेकर लौट ही रहा था कि पीछे से किसी ने मुझे चौंका दिया," पापा !" काव्या के पीछे पीछे सुनैना मुस्कुराती हुई आ रही थी। मेरे चेहरे का रंग उड़ गया, जैसे उसने मेरी कोई चोरी पकड़ ली हो। मैं भूल कैसे सकता था, आज सुनैना आने वाली है। मैंने काव्या को गोदी में उठाया तो सुनैना ने कहा," तुम लेने नहीं आए। तुम्हें काव्या ने ऑटो से देख लिया। सोचा हमें लेने ही जा रहे होगे, हम नहीं मिलेंगे तो परेशान हो जाओगे इसलिए मैं उतर गई। इतनी देर में कामिनी गाड़ी से उतर कर बाहर आ चुकी थी। सुनैना ने मुझे सवालिया नजरों से देखा," सुनैना ये कामिनी है, हम काॅलेज में साथ थे।" मैंने हाथ के इशारे से बताया, दोनों ने हाथ जोड़कर एक दूसरे का स्वागत किया। अब मेरी बारी थी सुनैना का परिचय देने की," मेरी वाइफ सुनैना।" मैंने नजरें झुकाते हुए कहा," ये मेरी बेटी है काव्या।"

 कामिनी ने चौंकते हुए पूछा," तुमने बताया क्यों नहीं, तुम शादीशुदा हो ?"

" मैं बताने ही वाला था तुम्हें।"

" तुम ऐसे कैसे कर सकते हो, तुम्हारे पास इतना समय था बताने के लिए, तुमने क्यों नहीं बताया ? झूठ बोलने की क्या जरूरत थी।" कहते हुए गुस्से में कामिनी दूसरा ऑटो पकड़ कर निकल गई। बात छोटी थी सिर्फ मेरे लिए। बताने ना बताने से क्या होता है ? मैं प्यार तो सुनैना से ही करता हूं लेकिन सुनैना ने मुझे कभी माफ नहीं किया। उसके बात भी सही थी," अगर मैं कुछ और दिन के लिए चली जाती या कामिनी कुछ और दिन रुक जाती, तो इस बात की क्या गारंटी है, तुम हमें भूल नहीं जाते ? सीधी सुलझी हुई सुनैना बहुत कठोर निकली। काव्या को लेकर अपने मायके चली गई। छह साल लगे मुझे अपनी एक भूल की माफी मांगने में।उसकी गैरमौजूदगी ने ये एहसास दिया कितना प्यार करता हूं मैं उसे और उस रिश्ते को छुपा रहा था जिससे मेरी साँसे जुडी थीं। आज के समय की लड़की होती और अपने पैरों पर खड़ी होती तो शायद कभी लौट कर नहीं आती। मां-बाप के गुजरने के बाद, भाभी और भैया का बढ़ता हुआ दबाव और काव्य के भविष्य की चिंता ने उसे दोबारा मेरे दरवाजे पर लाकर खड़ा कर दिया। आज भी हम दोनों के बीच वो प्यार नहीं है, जो एक पति पत्नी के बीच होना चाहिए। काव्या यही सब देखते हुए बड़ी हुई है, एक छोटा सा झूठ पूरी जिंदगी बदल सकता है। किसी भी रिश्ते की बुनियाद झूठ से नहीं होनी चाहिए। विश्वास का टूट जाना बहुत तकलीफ देता है। काव्या बहुत अच्छी लड़की है तुम मनाओगे जरूर मान जाएगी। इमानदारी सबको पसंद होती है, इमानदारी से बोलो और सच बोलो एक दिन काव्या तुम पर विश्वास करेगी और आज के बाद झूठ का कभी सहारा मत लेना और ना ही सच को छुपाने की कोशिश।


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