Swati Gautam

Inspirational

5.0  

Swati Gautam

Inspirational

चाबी वाला

चाबी वाला

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यह वही फुटपाथ की दुनिया थी, जहाँ लोग अनचाही चीजें फेंक दिया करते हैं। इस दुनिया को उसने इस तरह अपनाया था, जैसे इस दुनिया को गंदगी छूकर भी नहीं गुजरती। दो कदम की दूरी पर पड़ा कूड़े का ढेर, जिसमें सामने वाले ढाबे पर बनाई जाने वाली सब्जी के छिलके, जूस वाले के फेंके हुए कचरे के साथ थे कुछ दवाइयों के पैकेट, जो मेडिकल स्टोर के लिए कोई मुनाफा पैदा करने में अक्षम थे। इस दुनिया में शामिल है वह गाय जो रोज सुबह-सुबह मुँह मारकर, अपने लिए खाना ढूँढने का नाकाम प्रयास करती है लेकिन इस दौरान वह आधी से ज्यादा तो पालीथिन ही खा जाती है।

गोबर, जो लगता है, जैसे कीचड़ है। वही गोबर, जो कहीं-कहीं मिट्टी के संग मिलकर घर को चमका देता है, वही गोबर जो ईंधन है कितने चूल्हों का। इसी गोबर से बने उपलों को संग्रहित करके रखा जाता है बड़े-बड़े बिटोरों में। बिटोरों की गिनतियाँ होती हैं, जिसके पास जितनी ज्यादा होंगी, वो उतना ही धनवान माना जाएगा। कितनी नक्काशियां काढी जाती हैं, उन्हें सुंदर बनाने के लिए। कभी-कभी गोबर भी पड़ोसियों से उधार लिया जाता है। आज महत्वहीन, बेरंग पड़ा है, किसी साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल या पैर के नीचे आ जाने पर, लोगों की घृणा का कारण बनता। पॉश इलाकों की तो इज्जत ही खराब हो जाती है, अगर वहाँ गोबर दिख जाए तो ।

उसको भी वहीं बैठे देखा जाता। आसपास निकलते हुए लोग उस पर कभी ध्यान नहीं देते थे। वो ध्यान देने के लिए बना ही नहीं था। एक छोटी सी ताले-चाबी की दुकान थी उसके पास। नहीं दुकान नहीं कह सकते, बल्कि एक छोटी सी तख्ती जिसपर लटके हैं 20, 25 ताले। एक काला सा बोर्ड जिस पर लिखा है- तालों की चाबियाँ बनाई जाती हैं। किसे कहें दुकान, उन गिनती के तालों को या उस काली तख्ती को? मुश्किल से कितनी चाबी बना पाता होगा पूरे दिन में? फुटपाथ ही उसका घर था। इस ताला-चाबी के रोजगार में अपने लिए कहीं रहने का इंतजाम कर पाना नामुमकिन ही था। उससे केवल पेट ही भर सकता था।

यह गरीबी थी, जिसने बुढ़ापे से पहले ही उसे बुड्ढा बना दिया था। अभी उम्र ही क्या थी, 50 साल में ही 70 का लगता था। आज से दस साल पहले ही, उसने अपने लिए 'बाबा' सुन लिया था। गरीबी, गरीबी नहीं है, गाली है। 'बिचारा' और साला में बहुत अन्तर है। सुक्कन पान वाले से वो अक्सर कहता," मेरे बापू जी जब भी अपने खेत पर जाते, तो हाथ जोड़कर खेत से यही प्रार्थना करते, ख़ेत सारौ कहलवयियो पर बिचारों मत कहलवयियो। मैंने तो सुक्कन गाँव से आने के बाद अपने लिए बिचारा ही कहलवाया है।" सर्दियों की बढ़ती ठंड में रातें भयानक गुजरती हैं, जब रास्ते पर चलने वाली मोटरगाड़ियों की गर्मी कम हो जाती है, तो सर्दी का एहसास बढ़ जाता है।

नहीं उधर मत देखो। कॉलेज के सबसे बदनाम लड़कों की टोली है। दारु, जुआ, सिगरेट, शराब और चरस, यही सब करने के लिए वो कॉलेज आते हैं। रोहन बडे बाप की औलाद उस ग्रुप का लीडर, साला।

रात को 2:00 बजे इंडिया गेट पर खुली जीप दौड़ रही है। रोहन जीप के अंदर खड़ा, खुली हवा के साथ, शराब-सिगरेट की 'खुशबू' का आनंद लेता हुआ, हवा में हाथ फैलाए खड़ा है। जन्नत सी दुनिया, समय का किसको होश? रात के 2:00 बजे भी, आंखों में सुबह के 12:00 बजे ही जैसा खुमार है।

राघव ने कहा," घर की तरफ मोड़ दूँ ?"

"घर में क्या रखा है ?" रोहन का नशा सर चढकर बोल रहा है। "तेरा दिल जहाँ हो वहाँ छोड़ दे, मेरी जान, वहीं चले जाएंगे।" कहकर रोहन आँख बंदकर पीछे वाली सीट पर पड़ गया।

 रवि ने झकझोरकर उठाया,"रोहन उठ ! यार इससे आगे नहीं जा सकते। पुलिस पकड़ लेगी।"

"डोंट वरी मैं चला जाऊँगा ।" आँखों को जबरदस्ती खोल लड़खड़ाते हुए रोहन ने कहा।

सडक से गुजरते हुए रोहन की नजर ठंड में ठिठुरते हुए योगिंदर चाबी वाले पर पडी। बहुत देर तक ध्यान से देखने के बाद उसने अपनी जैकेट उतारी और उसके कंधों पर डाल दी। उसके पास जाकर बैठा, एक सिगरेट जलाने ही वाला था, लाइटर हाथ से छूट कर नाली में गिर गया, जिसके ऊपर फुटपाथ बना था। नाली की असहनीय बदबू, जिसका एहसास तक ना था रोहन को। नशे में खुशबू और बदबू का एहसास कहाँ होता है? झुक कर वह लाइटर निकालने की कोशिश कर रहा था, योगिंदर की आँख खुल गई।

घबराते हुए उसने पूछा," क्या हुआ साहब ?"

रोहन ने अपने चेहरे को उसके चेहरे पर केंद्रित करते हुए कहा, "साहब, कौन साहब ?"

"आप साहब।"

"साला, हम साहब हो गए क्या ?" एक अजीब सी मुस्कुराहट रोहन के चेहरे पर थी।

जैकेट को उतारते हुए योगिंदर ने कहा,"साहब ये आपका है।"

"अरे, तुम्हारे पास है तो तुम्हारा ही है।" रोहन ने नाली की तरफ झाँकते हुए कहा, "हमारा लाइटर गिर गया। अगर लाइटर होता, तो एक सिगरेट पी लेते।"

" मेरे पास माचिस है।"

"वाह तुम्हारे पास माचिस है, क्या बात है। अब दोनों यार बैठकर सिगरेट पिएंगे, साथ में।"

"मैं, सिगरेट नहीं पीता।"

"क्यों ? खैर छोडो।" सिगरेट जलाई और धुआँ छोड़ते हुए पूछा," ये बताओ, फुटपाथ पर क्यों सोते हो? घर क्यों नहीं जाते?"

"साहब ! घर है ही नहीं।"

"है ही नहीं।" रोहन थोड़ी सोच में पड़ गया जैसे बहुत ही अजीब सा कुछ सुना हो। क्या काम करते हो?"

"साहब ! चाबी बनाता हूँ।"

"तुम्हारी नींद खराब कर दी मैंने।"

"नहीं, साहब ! ऐसा नहीं है ।"

"तुम सो जाओ, सो जाओ तुम, हाँ तुम सो जाओ।" रोहन बार-बार शब्दों को दुहरा रहा था। उठकर चल दिया, थोड़ी दूर पहुँचा था,  वापस आया।

योगिंदर लेटने ही वाला था, रोहन को दुबारा आते देख कर बैठ गया। रोहन सड़क पर आलथी-पालथी मारकर बैठा और पूछा," कितना कमा लेते हो?"

"साहब दिन का 20,25 रुपए कमा लेते हैं।"

"बस ?" रोहन अपने लड़खड़ाते हाथों से अपने पस॔ से पाँच-पाँच सौ के नोट निकालकर चाबी वाले के हाथ में रख दिए ।

"मैं भीख नहीं लेता, साहब! मैं बेचारा नहीं हूँ ।"

"भीख नहीं है, मैं मर्जी से दे रहा हूँ।" 

"नहीं साहब, मैं नहीं लूंगा।"

"यार, तुम बड़े अजीब आदमी हो।" एक हाथ उसके कंधे पर रखते हुए और दूसरे हाथ से इशारा करते हुए कहा," सामने जो कॉलनी है ना। बड़ा सा गेट, मैं वहीं रहता हूँ। वर्माज हाउस, सबसे पहला मकान है। कल सुबह आ जाना। मैं अपने मकान के सारे ताले निकलवा-निकलवा कर दुबारा लगवाऊंगा। अब तुम सो जाओ। गुड नाइट।" रोहन उठने वाला था, दुबारा बैठ गया," तुम्हें लोरी सुनाऊँ, लोरी? अरे मेरी माँ सुनाती थी मुझे। जब मैं छोटा था। मेरी माँ की फोटो मेरे पस॔ में रहती है हमेशा। रोहन ने पर्स निकाला। "मेरी माँ, ये मेरी माँ हैं। देखो ये मैं छोटा था तब। मेरी माँ बहुत अच्छी है बहुत अच्छी।"

"साहब ! आपके घरवाले आपका इंतजार कर रहे होंगे। अभी आप घर जाओ।"

"हाँ, माँ इंतजार कर रही होगी। मुझे जाना चाहिए। ओके बाय, गुड नाइट एंड टेक केयर। कल आ जाना, ठीक है?"

"जी साहब मैं कल आ जाऊँगा ।"

"साहब ? हां हां तुम साहब बोलते हो मुझे। साला मैं तो साहब बन गया, साहब बन के कैसा तन गया। गाना सुना तुमने। मैं तुम्हें गाना सुनाऊँ।"

"नहीं साहब आप घर जाइए।"

रोहन अपनी धुन में गाना गुनगुनाते घर की तरफ चल पड़ा। नशा इतना सर चढ़ चुका था कि कुछ भी सुनना, समझना नामुमकिन ही लगता था। खाली सड़क पर तेज रफतार में गाड़ी चलाने वालों की कोई कमी नहीं थी। मर्सडीज रोहन को टक्कर मारती हुई आगे निकल गई। चारों तरफ खून।

 योगिंन्दर भागा, उसने रोहन को उठाने की कोशिश की, "साहब! साहब !" रोहन बेहोश हो चुका था, समझ नहीं आया वो क्या करे? किससे मदद माँगे? यहाँ कोई नहीं आसपास।फोन और पर्स उठाया, कालोनी की तरफ भागा।

पहला घर ! पहले घर का दरवाजा खटखटाया। चौकीदार गहरी नींद में था। चौकीदार ने चिढ़ते हुए पूछा,"कौन हो, क्या काम है ?" खून में लथपथ उसके कपड़ों को देखकर चौकीदार दुविधा में था।

"वर्मा जी का घर यही है ?"

"हाँ, यही है।"

"उनका बेटा, उनका बेटा।" हाँफते हुए योगिंदर ने चौकीदार से कहा।

"रोहन बाबा ?"

योगिंदर ने पर्स और फोन निकालकर दिखाया,"उन्हें फुटपाथ पर, किसी ने पीछे से टक्कर मार दी। वो बेहोश पड़े हैं, वहाँ।" पर चौकीदार कुछ समझ नहीं पा रहा था, वो क्या करे? फोन और पर्स को देखकर अंदर रोहन के पिता को फोन मिलाया। रोहन के माता-पिता सुनकर भागे, वो बिल्कुल भी देर नहीं करना चाहते थे, बिना ये जाने की घटना सच भी है या नहीं। चौकीदार की आंखों में एक बार शक था, लेकिन माता-पिता की आंखों में शक का कहीं बिंदु नजर नहीं आता था।

रोहन के पिता ने बताए गए स्थान पर पहुँच कर तुरंत बिना देर किए एंबुलेंस बुला कर रोहन को हॉस्पिटल पहुँचाया। कुछ समय बाद, जब उसे होश आया और उसे बताया गया, चाबी वाले ने यह सूचना दी थी, तो उसने अपने पिता से पूछा।

"पापा चाबी वाला कहाँ है ?

"बेटा उस दिन के बाद वो दिखा ही नहीं। मैं गया था वहाँ कोई नहीं था, जहाँ वो बैठा करता था।"

10 दिन बाद डिस्चार्ज होने पर रोहन सीधा फुटपाथ पर पहुँचा, जहाँ चाबी वाले से उसकी मुलाकात हुई थी, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। आसपास पूछा," यहाँ एक चाबी वाला बैठता था ?"

तो एक पान वाले ने बताया," कुछ दिन हुए, शायद 8 दिन पहले नगर पालिका वालों ने उसकी तख्ती फेंककर, उसे भगा दिया।"

"कुछ पता है कहाँ गया ?"

"नहीं साहब ! इस बात की तो कोई खबर नहीं है मेरे पास, पर साला चोर था। मैंने तो कानाफूसी सुनी है। यही आगे वाली गली में पर वर्मा जी रहते हैं बड़े रहिस लोग हैं। उनके यहाँ चोरी कर लिया रात में,  सबूत के तौर पर वर्मा जी के बेटे का पर्स और मोबाइल उसी के पास निकले। बड़ी महंगी सी जैकेट पहन रखी थी। दरोगा जी बता रहे थे 12,000 तक की होगी। बताइए जिसकी रोज की कमाई 20, 25 रुपए है उस पर 12,000 की जैकेट कहाँ से आई ? अब यहाँ तो शरीफ लोग रहते हैं। पुलिस ने तो दो चार दिन बाद छोड़ दिया था। अच्छा हुआ साला खुद ही चला गया है। हम तो बेचारा, गरीब समझते रहे।"

आज भी रोहन की गाड़ी हर चाबी वाले को देखकर रूक जाती है। रोहन की वजह से जिंदगी में एक बार ही सही, उसने अपने लिए, साला भी सुन ही लिया। 

लेकिन वह केवल साला ही नहीं रह पाया। वह बिचारा भी नहीं रह पाया। वह 'चोर, साला' बन गया। 

खेत से 'उसके' पिताजी ने कभी यह नहीं कहा था, "खेत ! सारो कहवाईओ, चोरो न कहवाईओ।"


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