"ईश्वर हैं यहीं-कहीं"
"ईश्वर हैं यहीं-कहीं"
तीन दिन से मामा जी को पेशाब नहीं आ रहा था। उनका पेट फुलकर कुप्पा हो गया था। उनको डाक्टर ने अपनडिक्स बता दिया था। उन्होंने कहा की आपरेशन करना पड़ेगा। यह वह जमाना था जिसमें लोग आपरेशन के नाम से ही घबरा जाते थे। उनको लेने अम्बुलेन्स आ चुकी थी। जैसे ही हास्पिटल के लिये उन्हें स्ट्रेचर पर लिटाया, मेरी नानी जो कि अनपढ़ थी वो कभी भी रोहतक से बाहर नहीं गई थी, जिन्हें डाक्टर्स के बारे में कुछ भी नहीं पता था। उन्होंने स्ट्रेचर को पकड़ लिया। कहने लगी इसे मेडिकल में नहीं दिल्ली - ताराचन्द डाक्टर के यहाँ लेकर जाओ, सब हैरान परेशान थे। वो कहने लगी - यदि ये वहाँ जायेगा तो वापिस नहीं आयेगा जैसा कह रही हूं वैसा करो।
डॉक्टर तारा चन्द जी के बारे में किसी को भी पता नहीं था। पता किया तो पता चला वास्तव में ही दिल्ली में डॉक्टर तारा चन्द जी हैं और वह सर्जन हैं। मेरे मामा जी को दिल्ली ले जाया गया। उन्होंने देखते ही कहा - अगर इनका इस हालत में आपरेशन किया जाता तो इनकी मौत निश्चित थी, उन्होंने पहले उनको दवाइयाँ देकर नार्मल किया, जिससे की उनको पेशाब की हाजत हुई और उनका फूला हुआ पेट कुछ कम हुआ। फिर तीन दिन बाद उनका आपरेशन किया गया। सब मेरी नानी की सुझबुझ की तारीफ कर रहे थे और हैरानी ये की उनको ये कैसे पता चला। ईश्वर को जब परिस्थितियों को हमारे अनुकूल करना होता है, तो वह अपने दूत भेज देते हैं इसलिये में कहती हूँ - "ईश्वर है यहीं कहीं " - बस समझने की देर है।